साल 2014 से आम आदमी की ये हैं उम्मीदें...
नई दिल्ली। साल 2013 आम आदमी के लिए बेहद निराशाजनक रहा। खासतौर पर महंगाई, राजनीतिक भ्रष्टाचार, रेप, हत्या के मामले कमोबेश हर दिन सामने आए। अब आम आदमी को वर्ष 2014 से खासी उम्मीदें हैं। उम्मीदें न केवल समग्र विकास की हैं, बल्कि महंगाई जैसे दानव से निजात पाने की भी है। किचन में मिले राहत : साल 2013 तक आम आदमी को न केवल बाजार में महंगाई के रावण ने परेशान किया, बल्कि इस रावण ने रसोई में भी घुसपैठ कर दी। रसोई गैस सिलेंडर की न केवल कीमतें बढ़ीं, बल्कि रियायती सिलेंडरों की संख्या बेहद कम कर दी गई। दूसरी ओर सब्जियों ने जैसे आम आदमी के पेट पर लात मारने की ठान ली। पिछले वर्ष में प्याज, आलू, टमाटर सहित सभी सब्जियां गरीब की पहुंच से दूर हो गई। साल 2014 में आम आदमी रसोई से जुड़ी चीजों के दाम कम होने की उम्मीद लगाए बैठा है। चाहे बाकी चीजें पहुंच से बाहर हों, लेकिन दो वक्त की दाल-रोटी का जुगाड़ महंगा ना हो। यह हर आम आदमी की उम्मीद है।
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पैट्रोल, डीजल दामों पर रोक : 2013 तक पेट्रोल, डीजल के दामों में सरकार ने बेरहमी से बढ़ोतरी की। जब भी पेट्रोल, डीजल को लेकर कोई भी सरकारी घोषणा की गई, आम आदमी को निराशा ही हाथ लगी। एक तरफ जहां आसान ऋण सुविधा के साथ किफायती वाहन ऑटो कम्पनियों ने उतारे, वहीं दूसरी ओर आसमान छूते पेट्रोल, डीजल के दामों ने सड़क पर वाहन लाना मुश्किल कर दिया।
अब नए साल में इस आम आदमी को उम्मीद है कि सरकार उनका दर्द समझेगी और कम से कम उनका आवागमन का निजी साधन महंगाई के असर से दूर रहेगा। सोना-चांदी को लेकर क्या है उम्मीदें...पढ़ें अगले पेज पर...
सोना, चांदी भी हो पहुंच के दायरे में : पहले से ही आम आदमी के लिए महंगा सोना, चांदी 2013 तक और महंगा हो गया। यह आदमी पहले ही केवल शादी और उत्सवों में ही सोना, चांदी खरीदने की हिम्मत करता था, लेकिन बेजा कीमत वृद्धि ने इसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब शादियों और खास मौकों के लिए सोना, चांदी तो खरीदा जाता है, लेकिन वजन और संख्या में तालमेल बैठाना ही पड़ता है।
नए साल में सोना, चांदी के दामों में कमी की उम्मीदें जाग उठी हैं। आम आदमी को डर है कि कहीं सोना, चांदी सिर्फ अमीरों की ही बपौती बनकर न रह जाए। चाहे खास मौकों पर ही सही सोना, चांदी के आभूषण खरीदने की हैसियत हो ही जाए।
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वाईआईपी कल्चर खत्म हो : लाल बत्ती, बंदूकधारी कमांडो, स्पेशल पास, आम रास्ता नहीं है, जैसे प्रतीक आम आदमी को न केवल साल भर डराते रहे, बल्कि उसे नीचा दिखाने में भी सबसे आगे रहे। खासतौर पर राजनीतिज्ञों ने इस वीआईपी कल्चर का भरपूर मजा लिया और ऐसे-ऐसे नियम बनाए कि, आम आदमी और शर्मिदा हुआ।
देश की राजधानी दिल्ली में नए मुख्यमंत्री बने अरविंद केजरीवाल की पहल ने आम आदमी को उम्मीद की नई किरण दिखाई। आम आदमी को लगने लगा है कि वह अपने मुख्यमंत्री से सीधे मिल सकता है। उसके राज्य के नेता भी उसी की तरह एक आम इंसान है और वह उन्होंने ने ही चुनकर भेजा है। कुल मिलाकर वीआईपी कल्चर, पब्लिक कल्चर में बदले यह उम्मीद हर आम आदमी की है। ऐसा लगता है कि दिल्ली में इसकी शुरुआत हो भी गई है।
भ्रष्टाचार पर क्या है सोच... पढ़ें अगले पेज पर....
किसी भी तरह खत्म हो भ्रष्टाचार : राशन कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज से लेकर जमीन जायदाद जैसे बड़े मामलों तक आम आदमी को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। भारी-भरकम सरकारी योजनाओं के तो कहने ही क्या? सरकार की हर कल्याणकारी योजना का असली फायदा सिर्फ नेताओं और नौकरशाहों को ही मिलता रहा है।नववर्ष 2014 में आम आदमी को उम्मीद है कि नेता, अफसर, कर्मचारी भ्रष्टाचार छोड़कर उनका हक उन्हें दिलवाएंगे। साल 2013 में नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल ने जनता को काफी उम्मीदें बंधाई हैं। 2013 में कई बड़े नेताओं और अफसरों को भ्रष्टाचार के चलते जेल की हवा खानी पड़ी, इससे लोगों में कानून का भरोसा बढ़ा। केन्द्र में लोकपाल कानून के पास होने से भी उम्मीद बंधी है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। नए साल में यह भरोसा और मजबूत होने की उम्मीद है।
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परिवार रहे बेखौफ : वर्ष 2013 में रेप, गैंगरेप, हत्या, छेड़छाड़ जैसे मामलों ने जनता की नींद हराम कर दी थी। एक मामला निपटता नहीं कि दूसरे की खबर आ जाती। महिलाओं का घर से निकलना जैसे खतरे का का काम हो गया।कुछ मामले उठे, कुछ में न्याय मिला और कुछ राजनीति का शिकार हो गए। यह साल रेप के मामलों को लेकर ज्यादा खबरों में रहा। हालांकि राहत की बात यह रही कि बहुत से मामलों में त्वरित सुनवाई हुई और कई मामलों में दोषियों को सजा भी मिली।आम आदमी को भले ही ऐसे मामलों में न्याय मिलने से राहत मिली, लेकिन ऐसे अपराधियों में कानून का भय व्याप्त हो, ऐसे मामले सामने ही नहीं आए। यह उम्मीद रहेगी कि वर्ष 2014 में अपराधियों में कानून और सजा का डर होगा।