Why hanuman jayanti is celebrated on narak Chaturdashi: नरक चतुर्दशी के दिन श्रीकृष्ण, यमदेव और भगवान हनुमानजी की पूजा होती है। हनुमानजी की पूजा विशेषकर होती है। महाबली हनुमान कलयुग के जीवित देवता कहलाते हैं। इन्हें दसों दिशाओं, आकाश और पाताल का रक्षाकर्ता कहा जाता है। भगवान हनुमान का मात्र नाम लेने से ही बड़े से बड़े संकट और परेशानियां दूर हो जाती हैं। दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी यानी नरक चतुर्दशी को हनुमानजी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन का खास महत्व माना गया है। कहते हैं कि चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में प्रातः 6:03 बजे हनुमानजी का जन्म एक गुफा में हुआ था। मतलब यह कि चैत्र माह में उनका जन्म हुआ था। फिर चतुर्दर्शी क्यों मनाते हैं? आइये जानते हैं।
चैत्र पूर्णिमा या कार्तिक चतुर्दशी कब हुआ था हनुमान जी का जन्म: दरअसल, यह दोनों ही तिथियां हनुमान जी के जीवन में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन दोनों का महत्व अलग-अलग है: अधिकतर मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मेष लग्न और चित्रा नक्षत्र में हुआ था। यह तिथि उनके अवतरण दिवस के रूप में पूजी जाती है।
वहीं कार्तिक चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी) इस दिन को उनका दूसरा जन्मोत्सव या विजय अभिनंदन महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कुछ दक्षिण भारतीय मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म इसी तिथि को हुआ था, जबकि एक अन्य कथा के अनुसार, माता सीता ने इसी दिन उन्हें अमरता का वरदान दिया था।
हनुमान जी के पुनर्जन्म की कहानी: नरक चतुर्दशी पर हनुमान जयंती मनाने की परंपरा को समझने के लिए, उनके बाल्यकाल की एक अत्यंत प्रसिद्ध कथा को जानना आवश्यक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान जी का बचपन का नाम मारुति था। एक बार, बाल मारुति नंदन को तीव्र भूख लगी। जब उनकी निद्रा टूटी, तो उन्हें आकाश में पूरब दिशा में उदय होता हुआ सूर्यदेव एक चमकदार लाल पका हुआ फल जैसा दिखाई दिया।
मारुति तुरंत उस फल को खाने के लिए आकाश की ओर उड़ चले। यह संयोग से अमावस्या का दिन था और राहु सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे। राहु कुछ समझ पाते, इससे पहले ही बाल मारुति ने सूर्य को एक ग्रास में निगल लिया। इससे तीनों लोकों में अंधकार छा गया और हाहाकार मच गया। जब इंद्रदेव ने अपने वज्र से हनुमान जी के मुख पर प्रहार किया, तो वे मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। वज्र के प्रहार से उनकी हनु (ठुड्डी) टेढ़ी हो गई, जिसके कारण उनका नाम 'हनुमान' पड़ा।
अपने पुत्र पर हुए इस प्रहार से पवनदेव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने तीनों लोकों में वायु का प्रवाह रोक दिया। सृष्टि पर आए इस संकट को देखकर सभी देवताओं ने पवनदेव को शांत किया। ब्रह्मा जी ने हनुमान जी को दूसरा जीवन प्रदान किया और उन्हें अनेक दिव्य शक्तियों से विभूषित किया।
नरक चतुर्दशी पर हनुमान पूजा का महत्व
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमान जयंती या उनका 'विजय अभिनंदन महोत्सव' मनाने के पीछे का मुख्य कारण उनकी संकट मोचक छवि है। नरक चतुर्दशी की रात्रि नकारात्मक ऊर्जाओं के सक्रिय होने का समय मानी जाती है। इस दिन बजरंगबली की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। व्यक्ति को शक्ति, निर्भीकता और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। सभी प्रकार के संकट और बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
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