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Written By WD

धन्य हो गुरु नानक!

गुरु नानक देव
- सतमीत कौर
 
गुरुजी दुनिया का भला करते हुए बहुत से शहरों और गाँवों में जाते रहें। एक बार वो एक गाँव के बाहर जाकर रुक गए। गुरुजी के साथ उनका एक सिक्ख भाई मरदाना भी था। मरदाना ने गुरुजी से विनती की, 'महाराज बहुत जोर से भूख लगी है आप कहे तो गाँव में जाकर खाने के लिए कुछ ले आऊँ।'

गुरुजी ने कहा- 'ठीक है जाओ।' मरदाना जैसे ही गाँव में पहुँचे और भोजन माँगा तो वहाँ के लोगों ने उन्हे बहुत बुरा-भला कहा और वहाँ से निकाल दिया। मरदाना भूखे ही गुरुजी के चरणों में पहुँचे और सारी बात बताई। भाई मरदाना का पीछा करते हुए लोग गुरुजी तक पहुँच गए और कहने लगे यहाँ से चले जाओ... वरना हम आपको धक्के मार कर निकाल देंगे।

गुरुजी ने शांति से कहा-'चले जाते है भाई! हम वैसे भी यहाँ रहने नहीं आएँ। जाते-जाते गुरुजी ने आशीर्वाद दिया बसते रहो।'फिर आप एक दूसरे गाँव के बाहर पहुँचे। जैसे ही वहाँ के लोगों को पता चला कि गाँव के बाहर एक संत आए हुए है तो उन्होंने अपने साथ भोजन लिया और गुरुजी के दर्शन करने आए। उन लोगों ने गुरुजी को गाँव में चलने की विनती की। गुरुजी उनके साथ गाँव में गए। वहाँ उस गाँव के हर इंसान ने गुरुजी की बहुत सेवा की।

कुछ दिन बाद जब गुरुजी वहाँ से जाने लगे तो उस गाँव के लोगों को आशीर्वाद दिया 'उजड़ जाओ।' मरदाना ये सुनकर हैरान हो गए कि जिन्होंने हमारी इज्जत नहीं की, हमें भोजन नहीं दिया उन्हें तो गुरुजी ने आशीर्वाद दिया कि बसते रहो और इस गाँव के लोगों ने इतनी सेवा की तो इन्हे आशीर्वाद दिया कि उजड़ जाओ। उनसे रहा न गया। उन्होंने गुरुजी से कारण पूछा।

गुरुजी ने उत्तर दिया अगर वो मन्द बुद्धि के लोग उजड़ जाएँगे तो हर जगह फैल जाएँगे और अपने जैसे कई लोग बना लेंगे इसलिए वो एक जगह ही ठीक है। ताकि उनकी संगत से और लोग ना बिगड़े और इनके जैसे अच्छे लोग अगर एक ही जगह रहेंगे तो दूसरो को कौन सुधारेगा? इसलिए ये फैल जाएँगे तो और भी कई लोगों को अपने जैसा अच्छा बना लेंगे।