पिता कालू जब नानकजी को व्यापार करने के लिए प्रेरित करते हैं तो बेटा सारी राशि साधुजनों की सेवा में लगा देता है। संसारी जीव लुटा अनुभव करता है, लेकिन करतारी जीव की नजर में यही 'सच्चा सौदा' है। बहनोई के घर रहते और दौलत खां की नौकरी करते भी कुछ ऐसा ही घटता है।