गुरु नानक देव की वाणी - जिंदगी झूठ, मौत सच!
एक पैसे का सच और एक पैसे का झूठ
एक बार गुरुनानक सिलायकोट पधारे। लोगों से उन्हें पता चला कि हमजागौस नामक एक मुसलमान पीर लोगों को तंग करता है।
नानकदेव ने हमजागौस को बुलाकर लोगों को तंग करने का कारण पूछा। वह बोला - यहां के एक व्यक्ति ने पुत्र प्राप्ति की कामना की थी। मैंने उससे कहा कि तुम्हें पुत्र होगा, किंतु वह मेरी कृपा से होने के कारण तुम्हें उसे मुझे देना होगा। उसने उस समय तो यह शर्त स्वीकार कर ली, पर बाद में वह उससे मुकर गया। इसलिए मैं इस झूठी नगरी के लोगों को उसका दंड देता हूं। नानक देव ने हंसते हुए पूछा, 'गौस! मुझे यह बताओ कि क्या उस व्यक्ति के लड़का वास्तव में तुम्हारी कृपा से ही हुआ है?'
'
नहीं, वह तो उस पाक परवरदिगार की कृपा से हुआ है' - उसने उत्तर दिया।
नानक देव ने आगे प्रश्न किया - फिर उनकी कृपा को नष्ट करने का अधिकार तुम्हें है या स्वयं परवरदिगार को? खुदा को सभी लोग प्यारे हैं।
गौस ने कहा - मुझे तो इस नगरी में खुदा का प्यारा एक भी आदमी दिखाई नहीं देता। यदि होता, तो उसे मैं नुकसान न पहुंचाता।
इस पर संत नानक ने अपने शिष्य मरदाना को बुलाकर दो पैसे देते हुए एक पैसे का सच और एक पैसे का झूठ लाने को कहा।
मरदाना गया और जल्दी ही एक कागज का टुकड़ा ले आया, जिस पर लिखा हुआ था, जिंदगी झूठ, मौत सच!
गौस ने इसे जब पढ़ा तो बोला- केवल लिखने से क्या होता है?तब नानक देव ने मरदाना से उस व्यक्ति को लाने को कहा। उसके आने पर वे उससे बोले - क्या तुम्हें मौत का भय नहीं है?
अवश्य है - उसने जवाब दिया। तब माया जंजाल में तुम कैसे फंसे हो? - नानक बोले।
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अब मैं अपना कुछ भी नहीं समझूंगा। यह कहकर वह व्यक्ति चला गया। गौस को भी सब कुछ समझ में आ गया।