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RIP Siddharth Shukla : Perfect Body के चक्कर में Life से खिलवाड़ न करें

RIP Siddharth  Shukla : Perfect Body के चक्कर में Life से खिलवाड़ न करें - Siddharth Shukla RIP
डॉ. मोनिका शर्मा
 
इस उम्र में यूं अचानक जाने वालों में सिद्धार्थ अकेले नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि फिल्म-टीवी की दुनिया से जुड़े लोगों के साथ ही कम उम्र में यू  दुनिया से विदा होने  के वाकये हो रहे हैं। महानगरों में ही नहीं अब तो गांवों-कस्बों में भी दिल के दौरे या दूसरी कई सेहत से जुड़ी जानलेवा परेशानियां बढ़ रही हैं। इन मामलों को देखते हुए कुछ बातें हैं- जिनपर ध्यान दिया जाना हम सभी के लिए जरूरी है - 
 
पहली बात-  फिटनेस फितूर ना बने। किसी जमाने में यह पागलपन केवल जाने-माने चेहरों में होता था, पर अब लड़कों में फिटनेस के मायने सिर्फ बॉडी बिल्डिंग और लड़कियों में हद से ज्यादा दुबला होना समझ लिया गया है। वजन  घटाना हो या तयशुदा नापतौल के मुताबिक़ बॉडी बनाना इसके लिए कई तरह के सप्लीमेंट्स भी लिए जाते हैं। वर्क आउट अच्छा होता है पर ऐसे लोग ओवर वर्क आउट भी करते हैं। कभी दो-चार दिन लगातार खाना-पीना, पार्टी और फिर घंटों जिम में लगे रहना। यह तरीका भीतर से बहुत कुछ बिगाड़ता रहता है। पता तब चलता जब टेस्ट करवाए जाए या यूं अचानक कभी सांस ही रुक जाए, दिल धड़कना ही बंद कर दे। 
 
सिद्धार्थ जैसा शरीर बिना सप्लीमेंट्स और हार्ड कोर वर्क आउट के नहीं बनता। समझ सकते हैं कि वे जिस क्षेत्र में थे एक दबाव भी होता है- जितना हो सके हीरोइक बनने-दिखने का। पर आम लोग तो चेतें। परफैक्ट बॉडी पाने के इस फेर में आज हर उम्र के लोग फंसे हैं, खासकर युवा। 
 
दूसरी अहम वजह मन की अशांति है- लाउडनेस, जो आज के युवा चेहरों में बहुत ज्यादा है। बिग बॉस में सिद्धार्थ को देखते हुए कई बार लगा जैसे वे काफी गुस्सैल और लाउड रहे होंगें व्यक्तिगत जीवन में भी। बोलते बोलते हांफ जाना, गुस्से में हाथ पैर हिलते रहना, आमतौर पर ऊंची आवाज़ में ही बोलना। यह सब देखते हुए सिद्धार्थ तब भी थोड़े असहज से लगे थे।  
 
कहा जा सकता है कि यह तो रियलिटी शो था -  शो में यह जानबूझकर भी किया जाता है। हाँ, किया जाता है पर इस कार्यक्रम के अलावा भी उनको पत्रकारों से बात करते हुए देखा तो सहज आवाज या ठहराव नहीं दिखा कभी ( उनके मामले में मैं गलत हो सकती हूं ) पर आजकल हर कोई इसी असहजता को जी रहा  है। जरा कुछ मन को नहीं जमा और बस यह उग्रता मन को बीमार करती है। शरीर के पोर पोर को नुकसान पहुंचाती है। 
 
हमारी हर बात कहीं भीतर तक असर करती है। जाहिर है कि यह असर मन और शरीर दोनों की ही सेहत बिगाड़ता है। मुझे तो लगता है बच्चों को शुरू से ही थोड़ा शांत-सहज व्यवहार और ठहराव के साथ जीना सिखाना चाहिए। 
 
तीसरी बात आज ग्लैमर की दुनिया ही नहीं आम लोगों की लाइफस्टाइल भी अजीबोगरीब है। अजीब सा असंतुलन है खाने-पीने,सोने जागने, बोलने -बतियाने और यहां तक कि समझने स्वीकारने में भी। इन सब बातों से बनी जीवनशैली को थोड़ा बाजार ने तो थोड़ा खुद के कम्फर्ट ने 'ट्रेंड' का नाम दे दिया है। अब, घर में, कमरे में, हमारे आस-पास बिखरा सामान, ट्रेंड है- जंक फ़ूड खाना, ट्रेंड है - कुछ भी काम खुद न करके जिम में वेट्स उठाना, ट्रेंड है - रिश्तों में, घर में चुप्पी और सोशल मीडिया पर बहस, ट्रेंड है... और भी बहुत कुछ...अंतहीन लिस्ट है यह। 
 
पर हम समझते ही नहीं कि यह सारी बातें स्वास्थ्य से जुड़ी हैं और बहुत गहराई से जुड़ी है। चारदीवारी में घर बना बैठी चुप्पी और बाहरी दुनिया में दिखावे की आदत तनाव की बड़ी वजह है आज। कुछ भी औरों के मुताबिक ना कर पाने (भले ही वे अपने घर के बड़े ही क्यों ना  हों?) डिप्रेशन का अहम कारण है।
 
 ऐसा सब कुछ बहुत हद तक दिल की सेहत बिगाड़ता है। धमनियों में कोलेस्ट्रोल के थक्के ही नहीं बनते.. यह सब भी वहीं कहीं दिल में ही जमता है।   
 
चौथी बात - रिश्तों में ठहराव जरूरी है। दोस्त, जीवन साथी या गर्ल फ्रेंड-ब्यॉय फ्रेंड -(कमाई, सुन्दरता, कामयाबी जैसे कई मापदंडों पर) कुछ बेहतर- और बेहतर और और बेहतर का कुचक्र भी स्ट्रेस और डिप्रेशन की ओर ले जाता है। कभी किसी से जुड़ना फिर टूटना। फिर किसी से जुड़ना फिर टूटना। 
 
  देखने में लगता है जैसे कोई बड़ी बात नहीं पर ऐसे मेलजोल मन-मस्तिष्क को बहुत प्रभावित करते हैं। आए दिन की उलझनें शरीर के अच्छे-बुरे हारमोंस पर प्रभाव डालती हैं। जीवन बचाने के लिए, सेहतमंद जिन्दगी जीने के लिए और जीते जी थोड़ी सहजता को साथी बनाने के लिए, एक ठहराव, सौम्यता और सहजता जरूरी है। थोड़ा ठहरिए और सोचिए 
 
(आमतौर पर सामजिक मनोवैज्ञानिक विषयों पर लिखती पढ़ती रहती हूं तो अपनी बात कही-  सिद्धार्थ का जाना वाकई मन व्यथित कर गया। उम्र के ऐसे पड़ाव पर दुनिया छोड़ने वाले बच्चों के माता-पिता के दुःख के बारे में सोचकर भी बहुत पीड़ा होती है)   
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