मन सुबह से ही उन्मन है।समाचार पढ़ा कि मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यसचिव, इकलौती महिला मुख्य सचिव श्रीमती निर्मला बुच नहीं रहीं।
मेरे नौकरी करने के अनुष्ठान का आरंभ उन्हीं के हाथों हुआ। मैंने भोपाल के सैफिया कॉलेज से एम ए इतिहास विषय में किया और विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम रहा।उन दिनों माध्यमिक शिक्षा मंडल में एक पद ट्यूटर का निकला।इस पद पर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना अनिवार्यता थी। आवेदन दिया,साक्षात्कार हुआ और वहीं कह दिया गया कि कल से कार्यालय आ जाओ। वे तब माध्यमिक शिक्षा मंडल की अध्यक्षा थीं। मैं उस समय बाईस बरस का कॉलेज से पढ़कर निकला नवयुवक ही था।
मंडल में उपस्थिति प्रतिवेदन दिया और कार्य सीखने लगा।कुछ दिन ही बीते थे कि बुलावा आया मैडम ने याद किया है।उनके कक्ष में पहुंचा तो मुस्कराते हुए बैठने को कहा ।फिर आदेश सुनाया कि अब तुम भोपाल में नहीं रहोगे,पूरे मालवा और निमाड़ के हायर सेकेंडरी स्कूल्स का अपने सीनियर ट्यूटर के साथ शैक्षणिक निरीक्षण करोगे और वहां क्या क्या आवश्यकताएं हैं उन्हें सूचीबद्ध करोगे और हर कक्षा में जाकर यह भी परखोगे कि कैसे पढ़ाया जा रहा है,पढ़ाने की गुणवत्ता कैसी है और विशेष रूप से आदिवासी स्कूलों में जाकर यह भी देखोगे कि उन बच्चों तक शासकीय सहायता पहुंच रही है या नहीं।यह सुनते ही मैं बैठा का बैठा रह गया।वे मेरी सूरत देखकर हंसने लगीं।
मैंने साहस बटोरकर कहा मैडम मैं तो अभी पढ़ ही रहा हूं,सीख ही रहा हूं , मैं कैसे अनुभवी शिक्षकों की गुणवत्ता परखूंगा।वे बोलीं इसीलिए भेज रही हूं क्योंकि तुम जो परखोगे वह निष्पक्ष होगा,आग्रह रहित होगा,तुम देख सकोगे कि पढ़ने के लिए क्या क्या आवश्यक होता है क्योंकि तुम्हारा पढ़ना ताज़ा है और तुम अभी भी सीख रहे हो। विद्यार्थी से सच्चा, शिक्षक का कोई परीक्षक नहीं होता।
फिर निकलते निकलते बोलीं कि तुम सीधे लौटकर मुझे एक अलग से स्कूलों की जरूरतों की रिपोर्ट दो और उस समय मानों पूरे प्रदेश में चमत्कार सा हुआ।वे मंडल की अध्यक्ष भी थीं और लोक शिक्षण आयुक्त भी इसलिए शिक्षण की गुणवत्ता और प्रशासन दोनों उनके पास थे।
एक रिपोर्ट जो शिक्षण की बनती थी उस पर मंडल में कार्रवाजी होती थी और स्कूल की आवश्यकताओं वाली रिपोर्ट पर डी पी आई कार्यालय से सीधी कार्यवाही होती थी।वहां से सीधे निर्देश संभाग स्तर पर,जिला स्तर पर पहुंच जाते थे।पूरे प्रदेश के स्कूलों की मॉनिटरिंग वे स्वयं करने लगीं जिससे प्रत्यक्ष परिवर्तन आया।
बहुत से संस्मरण हैं,अपनी विक्रय कर विभाग की नौकरी के जब उनके देवर स्वर्गीय गिरीश बुच हमारे प्रमुख सचिव हुआ करते थे तब प्राय:उनके घर जाना होता।अपनी पुस्तकें भेंट करने और उन पर उनकी राय पाने,प्रशंसा पाने का अपना सुख था। जब जब भी भोपाल पदस्थ रहा उनका स्नेह और आशीर्वाद सदैव मिला।
अपने चालीस वर्षों के कराधान के प्रशासकीय दायित्वों को निबाहते शीर्ष स्तर के वरिष्ठ और कनिष्ठ बहुत से आई ए एस अधिकारियों के साथ कार्य करने का अवसर मिला लेकिन मैडम निर्मला बुच जैसा प्रशासक केवल नौकरी के आरंभ में ही मिला।
उन्होंने कभी अपनी प्रतिबद्धताओं से समझौता नहीं किया,किसी के दबाव में वे कभी नहीं आईं,पूरी निष्पक्षता के साथ अपने कर्तव्य को निबाहा और आजीवन सेवा,शिक्षा और निर्धन छात्रों की सहायता के लिए,कार्य करती रहीं ,बिना किसी अपेक्षा के।
नर्मदा कहीं कहीं बहुत चुपचाप भी बहती हैं।आज मुझे नर्मदा के इसी प्रवाह की याद आ रही है,यहां इतनी मौन और मंथर गति से नर्मदा बहती हैं कि उनके प्रवाह की गति की कोई ध्वनि ही सुनाई नहीं देती और यहीं वे सबसे गहरी होती हैं।
मैडम बुच मौन प्रवाह की इसी गहनता की जीवंत प्रतिमा थीं।मैंने उनमें एक स्थितप्रज्ञता को स्पंदित होते हुए देखा,निष्ठा और कर्म के प्रति समर्पण की साकारता के उनमें दर्शन किए,एक अविचल ,अडिग और आश्वस्ति से भरपूर ऐसे व्यक्तित्व को देखा जिसने अपने इन गुणों से इस प्रदेश में उपलब्धियों के हरियाली से भरपूर सावन रोपे और यही सावन उनकी स्मृति देह में भी सजीव बने रहें इसलिए सावन में ही उन्होंने अपनी भौतिक देह को चिरविराम दे दिया। उनकी इसी स्मृति देह को प्रणाम।