आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
चारों तरफ आग ही आग है। कहीं बसें जल रही हैं तो कहीं पुलिस चौकी राख है। जिन सड़कों से चलकर मासूम बच्चे स्कूल जाते हैं, वे धू-धू करती आग से तप गई हैं। बसें जलकर कालिख में तब्दील हो गई हैं। ऑटो वाले कहीं जाने को तैयार नहीं। यही दृश्य अगर देश की आजादी यानी 1947 के पहले का होता तो हम उस स्वतंत्रता के लिए 'इसी आग' में अपनी जान झोंक देते, लेकिन व्यथा यह है कि यह सब 70 साल पहले आजाद हो चुके एक परिपक्व देश में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर हो रहा है।
मुझे नहीं पता एनआरसी क्या है और नागरिकता कानून से भविष्य में क्या होगा। लेकिन, इस वक्त मेरे और मेरे परिवार का औसत जीना भी थम गया है। हमारी जीवन रेखा रुक गई है।
प्रधानमंत्रीजी मेरा नाम रामआधार है और आपकी तरह ही 'मन की बात' कहने के लिए आपको चिट्ठी लिख रहा हूं। सुबह उठकर मुझे 7 साल की मासूम बेटी को अस्पताल ले जाना था, ताकि उसे थेलेसीमिया का रक्त चढ़वा सकूं। उसकी सांस हफ्ते में एक बार लगने वाले इसी रक्त से चलती हैं, लेकिन यही सब चलता रहा तो इस हफ्ते उसे कैसे जिंदा रख पाऊंगा? उसके मासूम चेहरे को देखकर तो मेरा दिल 'अनहोनी' लेकर बैठा जा रहा है। क्या इस सवाल का कोई जवाब है इस आग के पास और आपके पास भी।
मुझे नहीं पता आपके कानून से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान। मुझे इतना पता है कि इस वक्त मेरी बेटी की जान जा सकती है। सड़कों पर बह रहा यह खून ही अगर मेरी बेटी के कुछ काम आ सकता है तो इतनी ही व्यवस्था करवा दीजिए। हम अपनी जिंदगी में पहले ही खून के आंसू रो रहे हैं तो फिर सड़कों पर ये आंसू गैस के गोले क्यूं।
कल रात को मेरे पड़ोस में रहने वाले मोहम्मद इकबाल भाई का छोटा बेटा समीर बहन को स्कूल से लेने जा रहा था तो पुलिस ने उसे प्रदर्शनकारी आततायी समझकर लाठियों से पीट डाला। इसमें उसकी क्या गलती थी, इकबाल भाई और हम एक साथ दिवाली की मिठाइयां खाते हैं, वे ईद पर हमें सिवैयां भेजते हैं। हमको कभी नहीं लगा कि वो मुसलमान हैं और वो कभी हमें हिन्दू नहीं समझते। हम पड़ाेेसी हैं, लेकिन भाइयों की तरह रहते हैं।
प्रधानमंत्री जी, मैं आपसे पूछना चाहता हूं, एक कानून से आखिर कैसे हम हिन्दू-मुसलमान में बंट गए? हम एक साथ रहते हैं, त्योहार भी मनाते हैं। हमारी भाषा एक है। फिर कैसे धर्म के नाम पर बंट गए? अभी कुछ दिनों पहले कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तब कुछ नहीं हुआ, इसके बाद अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया, तब भी किसी ने कोई खाई पैदा नहीं की। पूरी सद्भावना और गंगा-जमनी तहजीब के साथ ये फैसले सरआंखों पर रखे गए। तो इस बार एनआरसी और सीएए से कैसे बंट गया देश।
क्या आपसे कोई चूक हुई या हम यह समझ नहीं रहे? या हम पॉलिटिकली समझ नहीं पा रहे हैं? समझाइए, अपने मन की बात कीजिए। अब किसे आजादी चाहिए और किससे आजादी चाहिए? क्या जिस आजाद देश में हम रह रहे हैं यह वही आजादी है जिसके लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां और रोशन सिंह आज ही की तारीख यानी 19 दिसंबर को क्रांति के गीत गाते- गाते फांसी पर झूल गए थे।
अगर इतना कुछ न बता पाएं तो इतना ही बता दीजिए कि इस हफ्ते मैं अपनी बेटी को जिंदा रखने के लिए रक्त कहां से लाऊं, क्योंकि जो रक्त सड़कों पर बह रहा है वो तो मेरी बेटी की जिंदगी के किसी काम का नहीं है।
आपकी चिट्ठी के इंतजार में
आपका रामआधार,
दिनांक 19 दिसंबर, गुरुवार