शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
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  4. India's hunger report flawed

हंगर इंडेक्स त्रुटिपूर्ण

Hunger
ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) रिपोर्ट स्वीकार कर लें तो मानना पड़ेगा एक देश के नाते हम स्वयं को भले भविष्य की महाशक्ति घोषित करें, पोषण के मामले में हमारी स्थिति उन देशों से भी खराब है जिनकी संसार में कोई हैसियत नहीं। इस रिपोर्ट में भारत को कुल 121 देशों में 107वें क्रम पर रखा गया है। लेकिन क्या यह रिपोर्ट वास्तविकता को दर्शाने वाली है? 
 
ध्यान रखिए भारत को उत्तर कोरिया, इथियोपिया, सूडान, रवांडा, नाइजीरिया और कॉन्गो जैसे देशों से भी पीछे रखा गया है। आप नरेंद्र मोदी सरकार या राज्यों की भाजपा सरकारों के चाहे जितने बड़े आलोचक हो, क्या इसे स्वीकार कर लेंगे कि हमारा देश इन देशों से भूख सूचकांक के मामलों में पीछे हैं? निश्चित रूप से इस रिपोर्ट से भारत की छवि धूमिल हुई है। हमारे देश की समस्या है कि गहराई से तथ्यों और आंकड़ों के छानबीन की जगह आनन-फानन में राजनीतिक सोच के अनुसार प्रतिक्रियाएं दे दी जाती है। अगर आप पूरी रिपोर्ट को ठीक से पढ़ें और उसमें देखें कि इनके आंकड़ों का स्रोत क्या है, इन्होंने गणना कैसे की है और देशों का क्रम कैसे निर्धारित हुआ है, तो आप इस रिपोर्ट को अस्वीकार करने के लिए सहज ही तैयार हो जाएंगे।
 
 
जीएचआई रिपोर्ट दो एनजीओ आयरलैंड की कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की वेल्थुंगरहिल्फे मिलकर तैयार करते हैं। यह तो नहीं कह सकते कि ये दोनों अप्रामाणिक हैं और इनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। किंतु इसके पहले इनके कई कार्यों पर प्रश्न खड़े हुए हैं। इन्होंने जानबूझ कर भारत को नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया है या नहीं इस पर निश्चित रूप से दो राय हो सकती है। 60 पृष्ठों के पीडीएफ दस्तावेज की तस्वीरें, रंग आदि इतने आकर्षक हैं कि कोई भी इस पर मुग्ध हो जाए। किंतु क्या इतनी ही आकर्षक इसकी रिपोर्ट के तथ्य और रैंकिंग भी हैं? 
 
इस सूचकांक को बनाने के लिए इन्होंने 3 डायमेंशन के 4 पैमानों को आधार बनाया है। अंडरनरिशमेंट यानी एक स्वस्थ व्यक्ति को दिनभर के लिए जरूरी कैलोरी नहीं मिलना। इसे हम कुपोषितों की संख्या कह सकते हैं। बाल मृत्यु दर यानी एक हजार जन्म पर 5 वर्ष की उम्र के भीतर मृत्यु को प्राप्त होने वाले बच्चों की संख्या। चाइल्ड अंडरन्यूट्रिशन यानी पांच वर्ष के ऐसे बच्चे जिन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिलता। 
 
चाइल्ड अंडरन्यूट्रिशन में दो श्रेणी हैं- चाइल्ड वेस्टिंग और चाइल्ड स्टंटिंग। चाइल्ड वेस्टिंग यानी 5 वर्ष के बच्चे का अपनी उम्र और कद के हिसाब से बहुत दुबला या कमजोर होना, दर्शाता है कि उन बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिला इस वजह से वे कमजोर हो गए। चाइल्ड स्टंटिंग का मतलब ऐसे बच्चे जिनका कद उनकी उम्र के लिहाज से कम हो। कद का संबंध पोषण से माना गया है। इन तीनों आयामों को बराबर अंश के अनुसार 100 पॉइंट का स्टैंडर्ड स्कोर दिया जाता है। 
 
स्कोर स्केल पर 0 सबसे अच्छा स्कोर होता है और 100 सबसे खराब। भारत का स्कोर 29.1 है। इसे गंभीर स्थिति कहा गया है। पाकिस्तान का स्कोर 26.1 है और वह भी 'गंभीर' स्थिति में है। बांग्लादेश का स्कोर 19.6, नेपाल का 19.1 और श्रीलंका का 13.6 है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत की 16.3% आबादी अत्याधिक कुपोषित है। 19.3% से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं, जिनका वजन उनके कद के हिसाब से कम है। 35.5% बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से काम कद के हैं।

 
इनके चार मानकों में से तीन तो बच्चों से जुड़े हुए हैं। तो इसे संपूर्ण आबादी के संदर्भ की रिपोर्ट कैसे मान लिया जाए? इनमें भी जिसे चाइल्ड स्टंटिंग रेट कहा गया है उसका आधार आसानी से गले नहीं उतरता। स्टंटिंग क्या है? जैसा ऊपर बताया गया पांच साल के किसी बच्चे के लिए निर्धारित ऊंचाई से दो स्टैंडर्ड-डेविएशन पॉइंट कम वाले बच्चों का प्रतिशत। वहीं चाइल्ड वेस्टिंग रेट यानी पांच साल के किसी बच्चे के लिए निर्धारित वजन से दो स्टैंडर्ड-डेविएशन पॉइंट कम वाले बच्चों का प्रतिशत। 
 
अब बच्चों के निर्धारित ऊंचाई के मायने क्या है? विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों की उम्र के अनुसार एक ऊंचाई निर्धारित की है और उसके आधार पर तय कर दिया गया है कि यह बच्चा कुपोषित है या नहीं। यानी बच्चे का कद निर्धारित नहीं है और वजन भी अपर्याप्त है तो यह राष्ट्रीय भूख का द्योतक मान लिया गया है। इसी को आधार बनाकर कहा गया है कि भारत की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। हालांकि इसमें भारत का भी कुछ दोष है। 
 
ग्लोबल हंगर इंडेक्स बनाने के लिए इनने भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-2021 यानी एनएचएस-5 के आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया है। यह सर्वेक्षण रिपोर्ट भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का तैयार किया हुआ है। इसमें छः लाख घरों से नमूने एकत्रित करने की बात है। इसमें ही लिखा है कि भारत के 36% बच्चे स्टंटेड और 19% बच्चे वेस्टेड हैं। जीएचआई पर हम हाय-तौबा मचाएं और अपने रिपोर्ट को स्वीकार करें यह कैसा आचरण है? 
 
जाहिर है, हमें हमारे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के रिपोर्ट को कटघरे में खड़ा करना चाहिए था। कारण, इसने भी डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित बच्चों के कद के मानक को स्वीकार कर अपनी रिपोर्ट बना दी। डब्ल्यूएचओ एक चार्ट बनाता है जिसमें बताता है कि किस उम्र के बच्चों की कितनी ऊंचाई और वजन होना चाहिए। इसी में वह स्टैंडर्ड-डेविएशन कट-ऑफ के दो पॉइंट भी देता है। उदाहरण के लिए डब्ल्यूएचओ पांच साल के बच्चे का कद 110.3 सेंटीमीटर बताता है। दो स्टैंडर्ड-डेविएशन पॉइंट काटने के बाद यह 101.6 सेंटीमीटर हो जाता है। स्पष्ट है कि इससे किसी बच्चे का कद यदि कम है तो स्टंटेड माना जाएगा। तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह एक विचित्र मानक है। यह सामान्य समझ की बात है कि ऊंचाई या कद के निर्धारण में भौगोलिक परिस्थितियां, नस्ल, जाति, अनुवांशिकी आदि की प्रमुख भूमिका होती है। 
 
वास्तव में अंतरराष्ट्रीय मानक एकरूप नहीं हो सकता। अलग-अलग क्षेत्रों, नस्लों, जातियों आदि के हिसाब से इनका निर्धारण किया जाना चाहिए। स्वयं भारत के राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण में इसका ध्यान नहीं रखा गया है। जीएचआई पर स्वाभाविक प्रश्न उठाने और इसका विरोध करने के साथ भारत को डब्ल्यूएचओ के मानकों को भी नकारना चाहिए। डब्ल्यूएचओ के मानक नए सिरे से निर्धारित हों तो भूख सूचकांक बनाने वालों के लिए भी उसे स्वीकार करने की विवशता हो जाएगी। 
 
इसके अलावा भी कई ऐसी बातें हैं जो इस रिपोर्ट को खारिज करने के योग्य बनाती है। आप पूरी दुनिया के लिए एक दृष्टिकोण अपना लीजिए और उसके अनुसार मन मुताबिक रिपोर्ट बनाकर उसे पेश कर दीजिए तो यह वैश्विक रिपोर्ट नहीं हो सकती। हम नहीं कहते कि भारत के समक्ष स्वास्थ्यकर आहार यानी पोषण की समस्या नहीं है और हमने संतोषजनक अवस्था प्राप्त कर लिया है। पोषण के मामले में भारत को काफी कुछ करना है। किंतु भूखमरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने के पहले स्वयं को संपूर्ण विश्व के एक-एक कोने के बारे में जानकारी होने का दावा करने वालों को रुक कर सोचने की आवश्यकता है। 
 
किसी भी पैमाने यह कहना कि भारत भूखों का देश है, गले नहीं उतर सकता। हमारे यहां राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तरों पर गर्भवती महिलाओं से लेकर बच्चा जनने वाली मां, बच्चे आदि के पोषण के लिए कई कार्यक्रम चल रहे हैं। विद्यालयों में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था है। इससे संबंधित जितने कार्यक्रम भारत में हैं, उतने कम ही देशों में होंगे। 
 
पिछले वर्ष यानी 2021 में 116 देशों की रैंकिंग में भारत का नंबर 101वां तथा 2020 में भारत का स्थान 94वें नंबर पर था। कहने का तात्पर्य कि लगातार यह रिपोर्ट भारत को भूखों का देश बताता रहा है। एशिया में सिर्फ अफगानिस्तान ही है, जो भारत से पीछे है। वह 109वें पायदान पर है। पाकिस्तान 99वें, बांग्लादेश 84वें और नेपाल 81वें नंबर पर है।


आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका को इसमें 64वें नंबर पर रखा गया है। अब अपने आपसे प्रश्न करिए कि क्या वाकई हम इतने गए गुजरे हैं कि इनसे भी पीछे हैं? आपको उत्तर मिल जाएगा। इसलिए यह प्रश्न उठाना ही पड़ेगा कि आखिर कौन लोग हैं, जो इस तरह भारत को नीचा दिखाने वाली रिपोर्ट दिखलाते हैं?
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
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