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Written By Author शरद सिंगी
Last Updated : सोमवार, 23 सितम्बर 2019 (15:39 IST)

विश्व उत्सुकता से सुनेगा मोदीजी को ह्यूस्टन में

विश्व उत्सुकता से सुनेगा मोदीजी को ह्यूस्टन में - Howdy Modi Narendra Modi Houston
आज विश्वभर के सारे भारतीयों की निगाहें ह्यूस्टन में होने वाले मोदीजी के 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम पर गड़ी हैं। पिछले कुछ वर्षों की कूटनीतिक उपलब्धियों में यह एक और महत्वपूर्ण कड़ी होगी जब भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति वहां एक ही सार्वजनिक मंच को साझा करेंगे।
 
यह भारत सरकार की सफल कूटनीति का ही परिणाम है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ही नहीं वरन उनके साथ अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के महत्पूर्ण नेता भी इस कार्यक्रम में शिरकत करने वाले हैं।
 
साथ ही, बधाई के पात्र वे सभी प्रवासी भारतीय भी हैं जिन्होंने वर्षों से कड़ी मेहनत करके और बड़ी शिद्दत के साथ विदेशों में अपने देश भारत का नाम ऊँचा किया है।
 
सच तो यह है कि मोदीजी ही पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने हर देश में जाकर प्रवासी भारतीयों के इन प्रयासों को मान्यता दी और सराहना की। यही कारण है कि मोदीजी प्रवासी भारतीयों के बीच इतने लोकप्रिय हैं।
 
यह भी उल्लेखनीय है कि वे ही पहले प्रधानमंत्री हैं जो विदेशों में आम भारतीयों से मुखातिब होते हैं। मोदीजी से पहले के प्रधानमंत्री भी भारतीय समुदाय से मिलते तो थे, किंतु उनका मिलना एक अत्यंत सीमित समूह से और मात्र औपचारिकता निभाने भर के लिए होता था।
 
यहां जानने योग्य बात यह भी है कि अमेरिका में संसार के कई देशों की सरकारें भारी रकम देकर अमेरिकी सलाहकारों और अमेरिका के पूर्व राजनयिकों को नियुक्त करती हैं ताकि वे अमेरिकी सरकार के समक्ष उन देशों का हित रखें और अमेरिकी सांसदों को उनके पक्ष में जोड़ें।
 
पाकिस्तान भी उन देशों में से एक है। अब सोचिए कि ह्यूस्टन के इस प्रोग्राम के बाद भारत को क्या आवश्यकता होगी कि भारी पारिश्रमिक पर किसी सलाहकार को नियुक्त करे जो भारत के पक्ष को अमेरिका के सामने रखे। वहां तो पूरा अमेरिका उठकर आ रहा है भारत की बात सुनने को।
 
हर एक प्रवासी भारतीय, अमेरिका में या दुनिया में कहीं भी हो वह भारत का प्रतिनिधित्व करता है और अपने आचरण और उपलब्धियों से उस देश पर अपने देश की मुहर लगाता है।
 
दुबई में भी यहां के शेखों के मुंह से हमने भारतीय नागरिकों के लिए अनेकों बार तारीफें सुनी हैं यह कि भारतीयों से बेहतर अनुशासित और कानून का सम्मान करने वाली कोई और कौम नहीं है, वहीं पाकिस्तान एवं कुछ अन्य देशों के नागरिक तो ड्रग्स, स्मगलिंग, चोरी आदि के धंधे में लिप्त होते हैं जो विदेशी सरकारों के लिए सिरदर्द तो होते ही हैं, अपने देश के लिए भी शर्मिंदगी का एक सबब होते हैं। 
 
प्रधानमंत्री के लिए ह्यूस्टन का यह मंच पाकिस्तान को आड़े हाथों लेने के लिए एक विस्फोटक मंच साबित हो सकता है, किंतु यदि वे एक विश्व नेता के रूप में सम्बोधित करें तो शायद ऐसा नहीं करें क्योंकि अभी तक उन्होंने पाकिस्तान को जिस तरह से नज़रअंदाज़ किया है और इमरान के बयानों की जिस तरह घोर उपेक्षा की है उससे इमरान खुद ही बेइज्जत हो चुके हैं।
 
उनकी ओर से हो रही निरंतर अपशब्दों की बौछार भी प्रधानमंत्री को डिगा नहीं पाई। यद्यपि इमरान खान की जितनी भर्त्सना की जाए उतनी कम है क्योंकि उन्होंने राजनयिक मर्यादाओं और अभद्र भाषा के सारे मानदंड तोड़ दिए हैं। कायर और हिटलर से लेकर न जाने कितने आपत्तिजनक विशेषणों से वे उन्हें संबोधित कर चुके हैं।
 
दूसरी ओर मोदीजी की तरफ से अभी तक इमरान के लिए कोई अपशब्द नहीं निकला है। यही वजह है कि इमरान की तड़प बढ़ती जा रही है और वे जरासंध की तरह लगातार जहर उगल रहे हैं।
 
हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि पाकिस्तान का वजीरे आजम होते हुए भी उन्हें न झूठ बोलने का खौफ है न खुदा का। वे हर नुक्कड़ पर परमाणु युद्ध की धमकी दे रहे हैं और हाल यह है कि भारत सहित दुनिया के किसी देश में उनके बयानों को कोई तवज्जो नहीं मिल रही।
 
 
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे इमरान के एक लेख को विभिन्न देशों के अख़बारों ने छापा था। इस लेख में उन्होंने तथ्यों को तोड़ मरोड़कर कर प्रस्तुत किया था। उस लेख की कवरेज को लेकर इमरान बड़े उत्साहित थे और उम्मीद कर रहा थे कि इस पुलंदे के जरिए वे दुनिया में अपने झूठ को पैर लगा देंगे, किन्तु जब भारत के विदेश मंत्री जयशंकर से इमरान के इस लेख पर प्रतिक्रिया पूछी गई तो उन्होंने कहा कि मुझे समय ही नहीं मिला उसे पढ़ने का। इससे अधिक बेइज्जती और क्या हो सकती थी। अतः साफ है यदि मोदीजी ने ह्यूस्टन के मंच से इमरान के लिए मुंह खोला तो उनकी दुर्गति निश्चित है और यदि नहीं खोला तो उनकी बेइज्जती सुनिश्चित है।
 
मोदीजी से आज उम्मीद तो यही की जा रही है कि वे एक विश्व नेता की तरह अमेरिका सहित विश्व को संबोधित करेंगे। सन् 1893 में नरेंद्र (विवेकानंद) ने अमेरिका के शिकागो में भारतीय अध्यात्म की अमिट छाप जिस तरह छोड़ी थी उसे आज भी दुनिया भूली नहीं है। वैसा ही मौका आज नरेंद्र भाई के पास है। हम आश्वस्त हैं कि भारत के राजनीतिक दर्शन और कौशल को आज विश्व सुनेगा, उसकी गहराई को जानेगा और उस दर्शन के मंथन से स्फुटित हुए इस लोकनायक की सादगी पर कौतूहल भी करेगा।