रविवार, 8 दिसंबर 2024
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अपराधियों को नायक बनाने की खतरनाक प्रवृत्ति

Mukhtar Ansari,
मुख्तार अंसारी के घर नेताओं के जाने का सिलसिला जारी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के घर जाकर उसे महान और मसीहा साबित करने की उसे कोशिश को आगे बढ़ाया जो उसकी मौत के समय से ही चल रहा है। उन्होंने कहा कि जनता ने जेल में रहते हुए मुख्तार को पांच बार विधायक बनाया तो इसका मतलब है कि वह जनता के दुख दर्द में शामिल रहे और उसी का परिणाम है की जनाजे में इतनी अधिक भीड़ उमड़ी।

उन्होंने बांदा जेल में मुख्तार की मृत्यु पर सरकार को घेरा तथा उसकी तुलना रूस में विपक्ष के नेता एलेक्सी नवलनी की जेल में हुई मृत्यु से कर दी। उसकी मौत को राजनीतिक दलों, कुछ नेताओं, संगठनों आदि के द्वारा विवादास्पद बनाया जा चुका है। 
 
जेल में किसी भी कैदी की मृत्यु हो कानून के अनुसार उसकी न्यायिक दंडाधिकारी से जांच आवश्यक है। यह अंसारी के मामले में भी है और जांच रिपोर्ट आनी बाकी है। बांदा मेडिकल कॉलेज ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया है। बांदा जेल से भी समाचार यही था कि मुख्तार अंसारी को हार्ट अटैक आया और उसे अस्पताल ले जाया गया। 
 
मुख्तार अंसारी, पिछले लंबे समय से जब भी वीडियो में आया काफी कमजोर दिखता था। व्हील चेयर पर ही उसके बाहर निकलने या अंदर जाने की तस्वीरें आईं थीं। उसकी मेडिकल रिपोर्ट में अनेक बीमारियां लिखी हुई है। इतनी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की कभी भी किसी कारण से मृत्यु हो सकती है। स्वयं को बाहुबल और धनबल की बदौलत बादशाहत कायम करने की मानसिकता में जीने वाले व्यक्ति को जेल में आम अपराधी की तरह व्यवहार से मानसिक आघात लगना बिलकुल स्वाभाविक है। मानसिक तनाव, दबाव, हताशा मनुष्य को अनेक बीमारियों से ग्रस्त करती है। 
 
योगी आदित्यनाथ सरकार के कारण बांदा जेल में वह आम सजा प्राप्त कैदी की तरह ही था। हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी, संगठन, नेता, राजनीतिक पार्टियों आदि के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट का कोई मायने ही नहीं है। प्रचारित यह किया जा रहा है कि उसे मारा गया है। जिस तरह कुछ दिनों से उसके परिवार और वकील यह खबर फैला रहे थे कि उनको धीमा जहर दिया जा रहा है वह रणनीति का अंग था। 
 
ऐसा लगता था जैसे उसे जमानत देने या मन मुताबिक किसी जेल में शिफ्ट करने का आधार बनाया जा रहा था। मृत्यु से कुछ दिनों पहले अपने बेटे से बातचीत का उसका ऑडियो वायरल हुआ है जिसमें उसके काफी कमजोर होने का आभास मिल रहा था। वह कह रहा था कि काफी दिनों से उसे मोशन नहीं हुआ और यह भी कि शरीर चला जाएगा लेकिन रुह रहेगा। अंसारी का बेटा उसे दिलासा देते हुए कहता है कि पापा आपका शरीर रहेगा और आप‌‌ हज भी करेंगे। हम अदालत से गुहार कर रहे हैं और अनुमति मिलते ही आपसे मिलने आएंगे। उसके काफी अस्वस्थ व कमजोर होने के साथ गहरी निराशा में डूबे होने का पता भी ऑडियो से चलता है। 
 
सपा, बसपा, अन्य पार्टियों, मजहबी नेताओं आदि ने जिस ढंग का माहौल बनाया है उसने फिर देश के आम व्यक्ति को उद्वेलित किया है। जितनी संख्या में उसके नमाज ए जनाजा में लोग शामिल हुए वह किसी भी समाज के सामान्य अवस्था का द्योतक नहीं है। हमारे देश में कानून सबके लिए बराबर है और सजा देने का काम न्यायालय का ही है। 
 
जेल नियम के अनुसार किसी भी कैदी की हर प्रकार से देखभाल कानूनी तौर पर अपरिहार्य है। ऐसा कोई कारण नहीं दिखता जिससे प्रशासन या जेल या सरकार उसे तत्काल अवैध तरीके से मारने का कदम उठाए। इस समय उसकी मृत्यु से किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला था। ठीक इसके उलट लगातार उसे सजा मिल रही थी और अंतिम समय तक वह जेल में छटपटाते रहता तो इसका संदेश अन्य माफियाओं, बाहुबलियों, अपराधियों के बीच जाता कि ऐसे लोगों के साथ यही होना है। 
 
योगी आदित्यनाथ सरकार की दृष्टि से यह स्थिति ज्यादा अनुकूल थी। मृत्यु के बाद उसे गरीबों का मसीहा और नायक बनाया गया वह वाकई भय पैदा करता है। मुख्तार अंसारी न्यायालय द्वारा सिद्ध माफिया, हत्यारा, अपहरणकर्ता, सांप्रदायिक दंगा करने वाला बाहुबली था। 65 से ज्यादा मुकदमे उसके नाम पर थे जिनमें से आठ में उसे सजा दी जा चुकी थी। इनमें दो में उम्र कैद की सजा थी। यानी न्यायालय ने उसे अंतिम सांस तक जेल में रखने की सजा दी थी। तो न्यायालय द्वारा घोषित सजाप्राप्त अपराधी को मुसलमानों का नायक, गरीबों का मसीहा बताया जा रहा है तथा राजनीतिक पार्टियां और नेता उसके पक्ष में बयान दे रहे हैं इससे ज्यादा डरावना किसी देश के लिए कुछ नहीं हो सकता।‌ वे सरकार और पुलिस प्रशासन के साथ न्यायपालिका पर भी प्रश्न उठा रहे हैं। 
 
किसी उदारवादी, समाज हितैषी, हिंदू मुस्लिम एकता के लिए काम करने वाले मुसलमान की मृत्यु पर न ऐसी प्रतिक्रियाएं आतीं हैं न इतने लोग इकट्ठे होते हैं और न उनमें किसी तरह की भावविह्वलता और आक्रामकता देखी जाती है। इसके विपरीत चाहे मुख्तार अंसारी हो, बिहार का बाहुबली सैयद सहाबुद्दीन, अतीक अहमद या मुंबई बम विस्फोटों का आतंकवादी टाइगर मेनन …उनके जनाजे में इतने बड़े जन समूह का उभरना मुस्लिम समाज के अंदर बढ़ती ऐसी प्रवृत्ति है जिससे डरने और जिसको हर हाल में रोके जाने की आवश्यकता है।
 
2013 में मुंबई बम विस्फोटों के अपराधी टाइगर मेनन के जनाजे में मुंबई में उमड़ी भीड़ ने पहली बार देश को हैरत में डाला था। उस समय से यह एक स्थापित प्रवृत्ति दिख रही है। अतीक अहमद हत्या पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न था और उसका उत्तर देना कठिन था। लेकिन उसकी मृत्यु पर विशेष नमाज जगह-जगह अदा कर जन्नत की दुआ करना किस बात का द्योतक था? डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मृत्यु पर इस तरह का दृश्य नहीं था। वस्तुतः उनके जनाजे में हिंदुओं की संख्या सर्वाधिक थी।
 
राजनीति के अपराधीकरण के भयावह दौर में ऐसी अपराधी और बाहुबली हमारे नीति नियंता बने जिन्हें उस समय भी जेल में होना चाहिए था। यह राजनीतिक तंत्र की विफलता थी कि जिन्हें जेल में होना चाहिए वो हमारे माननीय विधायक और सांसद बनकर नीति-नियंता बन गए। अतीक, अंसारी या शहाबुद्दीन जैसों की एकमात्र योग्यता यही थी कि वो अपने अपराध के बल पर साम्राज्य कायम कर चुके थे तथा चुनाव जीतने जिताने में सक्षम थे। 
 
इसी कारण सपा-बसपा दोनों ने उन्हें महत्व दिया और कांग्रेस पार्टी का भी उन्हें समर्थन था। सैयद शहाबुद्दीन को भी अपराधी होने के बाद ही राजद ने सांसद बना दिया। माना जाता है कि इनके कारण इन पार्टियों को कुछ क्षेत्रों में मुसलमानों के बड़े वर्ग का वोट मिलता था। सांसद और विधायक बनने के बाद इनका अपराध तंत्र ज्यादा फैला और प्रशासन के लिए उनके विरुद्ध कार्रवाई हमेशा कठिन रही। आप सोचिए, भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या मुख्तार ने जेल में रहते हुए कराई और उनकी चुटिया तक काट वाली। एक हिंदू की टिक काटने से ज्यादा सांप्रदायिकता क्या हो सकती है? 
 
अतीक भी जेल से अपना पूरा तंत्र चलता था और पुलिस की तरह ही उसके पास इंटेरोगेशन जान देने के ढांचे बने हुए थे। शहाबुद्दीन की भी ऐसी ही स्थिति थी। मऊ दंगे में डीएसपी शैलेंद्र सिंह ने जब मुख्तार को गिरफ्तार किया तो उनका कहना था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने हर तरह उसे छुड़ाने की कोशिश की और उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। अपने त्यागपत्र में उन्होंने इसकी सार्वजनिक चर्चा की। गाजीपुर जेल में मुख्तार के साथ स्थानीय प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के बैडमिंटन खेलने तक के प्रमाण हैं। अगर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार नहीं होती तो अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, बाबू बजरंगी जैसे लोगों का कानून की गिरफ्त में इस तरह आना, मारा जाना या सजा देना कतई संभव ही नहीं होता। 
 
जरा सोचिए, मुख्तार अंसारी ने उत्तर प्रदेश के वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय की सरेआम हत्या करवाई और आज कांग्रेस पार्टी उसे अपने एक भी वक्तव्य में अपराधी तक कहने के लिए तैयार नहीं है। ऐसी पार्टियों के होते क्या उसे सजा मिल सकती थी? लेकिन ये पार्टियों भूल रही हैं कि देश ने राजनीति के अपराधीकरण के दौर को पीछे छोड़ दिया और जिन पार्टियों ने ऐसा किया उनकी जगह जहां भी दूसरी पार्टीयों और नेताओं ने जीत का विश्वास दिलाया उन्हें मत दिया। 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की केंद्र या फिर राज्यों में सरकार गठित होने के पीछे हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, विकास, जन कल्याण के साथ अपराध और भय मुक्त माहौल की उम्मीद भी बहुत बड़ा कारण रहा है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 2022 में भाजपा सरकार की वापसी का सबसे बड़ा कारण यही था कि अपराधी और माफिया के विरुद्ध कार्रवाई हुई है। योगी आदित्यनाथ  केवल उत्तर प्रदेश नहीं, बल्कि देश में आम लोगों के बीच अपराधियों व माफियाओं के विरुद्ध किसी भी दबाव से परे अडिग रहते हुए कठोरता से कार्रवाई करने वाले नायक के रूप में खड़े हुए हैं तो इसी कारण। 
 
उप्र में सभी समुदायों का आम आदमी कहता है कि हम अब निर्भय होकर सड़कों पर चल सकते हैं। इसलिए बसपा, सपा या कांग्रेस या अन्य पार्टी अगर मानती है कि ऐसे नेताओं के पक्ष में खड़ा होकर वे मुस्लिम वोटो से फिर विजय प्राप्त कर सत्ता पा लेंगे तो यह सपना अब पूरा नहीं होने वाला। इस व्यवहार के कारण सांप्रदायिक तत्वों द्वारा फैलाया गया खतरनाक झूठ कि मुसलमानों की चुन-चुन कर हत्याएं हो रही हैं- देश में सांप्रदायिक तनाव का वातावरण पैदा कर रहा है। इस तरह की राजनीति और एक्टिविज्म भयभीत करने‌वाली है। ऐसे अपराधियों ने न जाने कितने परिवार नष्ट किए, कितनों का जीवन बर्बाद किया और कहां-कहां, कौन-कौन इनसे प्रतिशोध लेने की फिराक में हो कोई नहीं जानता। इनमें से कोई अगर जेल में या जेल के बाहर उनकी हत्या कर दे, हमले कर दे तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 
 
प्रशासन उनकी रक्षा करे यह आवश्यक है किंतु इनके पाप और अपराध इनका पीछा छोड़ देंगे यह संभव नहीं। ऐसे लोग समाज के हीरो नहीं खलनायक हैं। खलनायक को नायक बनाने की सांप्रदायिक और विभाजनकारी प्रवृत्ति के व्रत कर खड़ा होने की आवश्यकता है। हमारे देश में न्याय का शासन है। माफियाओं और अपराधियों को सजा देना न्यायिक प्रक्रिया का अंग है। यह जितना मुसलमान पर लागू होता है उतने ही हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई सभी पर। 
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 
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