मंगलवार को बाबा रामदेव ने प्रेसवार्ता कर के ‘कोरोनिल’ नाम की दवा लॉन्च की। जिसे कोरोना के इलाज की दवा बताई गई है। कहा गया है कि इसे कई लोगों पर ट्रायल के बाद अप्रूव किया गया है।
'कोरोनिल टैबलेट' और 'श्वासारि वटी' नाम की दो दवाएं लॉन्च कर उन्होंने दावा किया है कि 'ये कोरोना वायरस का आयुर्वेदिक इलाज हैं।
इधर पतंजलि कंपनी के चैयरमेन बालकृष्ण ने भी अपने ट्वीट में लिखा है-
‘यह सरकार आयुर्वेद को प्रोत्साहन व गौरव देने वाली है। क्लीनिकल ट्रायल के जितने भी तय मानक हैं, उन 100 प्रतिशत पूरा किया गया है’
इस प्रेसवार्ता के बाद पूरी दुनिया में हंगामा हो गया है। इस बात को लेकर कि जो पूरी दुनिया में कहीं नहीं हुआ वो भारत में एक बाबा ने कर दिखाया वो भी आयुर्वेद के दम पर।
ऐसे में बाबा की दवा पर विवाद होना तय है। विवाद लगभग शुरू भी हो गया है। आयुष मंत्रालय ने दवा के प्रचार पर रोक लगा दी है। जाहिर है सरकार सीधे तौर पर दवा पर सहमति जाहिर नहीं कर सकती क्योंकि बाबा रामदेव कहीं न कहीं मोदी खेमे में ही खड़े नजर आते हैं।
यह भी तय है कि एलोपैथी इस दवा को न तो स्वीकार करेगा और न ही उस पर कोई अपनी राय जाहिर करेगा, क्योंकि यह सीधे तौर पर आयुर्वेद का एलोपैथी को चुनौती जैसा है।
लेकिन जितना बड़ा हंगामा इस दवा को लेकर किया जा रहा है उतना लाजिम नहीं है। यह ठीक वैसे ही है जैसे कोई कंपनी गोरा होने या कोई बीमारी ठीक करने का दावा करने के साथ अपनी दवाई लॉन्च करती है, और लोग उसे खरीदने के लिए दौड़ पड़ते हैं। लेकिन आखिरकार इसके बाद यह मरीजों पर या उन लोगों की तादात पर ही निर्भर करता है कि यह उनके लिए कारगर साबित हुई या नहीं। या उसका इस्तेमाल करना है या नहीं करना है।
हालांकि मामला कोरोना जैसे संक्रमण का है इसलिए इसमें और ज्यादा सावधानी बरतना होगी क्योंकि यह सीधा आदमी के स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है।
बहुत सारे दावों के बाद हम भी हर महीने खरीदे जाने वाले उत्पादों की सूची में कोई एक उत्पाद शामिल करते हैं और अगर वो ठीक नहीं निकलता है तो अगले महीने उसे सूची से आउट भी कर देते हैं।
हां, जहां तक कोरोना की गंभीरता का सवाल है तो बाबा की इस दवा का हर मोर्चे पर हर एंगल से जांच होनी चाहिए। इस संदेह को दूर किया जाना चाहिए कि जिस वैश्विक त्रासदी से पूरी दुनिया जूझ रही है और अब तक
उसका कोई हल नहीं है, वहीं बाबा ने कुछ ही हफ्तों में यह कैसे कर दिखाया।
लेकिन चूंकि वो आयुर्वेदिक दवा है या वो बाबा रामदेव से जुडी कंपनी का प्रोडक्ट है और बाबा हरदम भगवा धारण किए रहते हैं इसलिए उसे सिरे से खारिज कर देना कोई बहुत ईमानदारी का काम नहीं है।
या यूं कहे कि दवा कंपनी का मालिक ‘सेफरॉन’ धारी है इसलिए ‘नो’ कह देना कोई बहुत बड़ी ईमानदारी का काम नहीं है।
दरअसल होना यह चाहिए कि बाबा के दावे की प्रमाणकिता जांचने के लिए सरकार के स्तर पर प्रयास होना चाहिए। बकायदा एक कमेटी गठित हो जिसमें आयुर्वेद और एलोपैथी की जांच की बड़ी एजेंसियां शामिल हों। इसमें एलोपैथी या आयुर्वेद को लेकर कोई पूर्वाग्रह न हो। संभव हो तो इन जांच कमेटियों में विश्वस्तर की विदेशी एजेंसियां शामिल की जाए।
इसके बाद अगर दावे में दम न हो तो सीधे तौर सरकार इसके लिए जवाबदेह हो और फिर सरकार बाबा के लिए अपना एंगल चुने। जाहिर है इस पूरी जांच में बाबा की दूसरी दवाओं की प्रमाणिकता और साख का भी सवाल है।