गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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कोरोना काल की कहानियां : सिर्फ सकारात्मकता से कुछ नहीं होता...

कोरोना काल की  कहानियां : सिर्फ सकारात्मकता से कुछ नहीं होता... - corona time stories
हरीश,दुर्लभ इंसानों में से एक, जो अपने नाम के अनुरूप खुद में ईश कृपा को महसूस करते हैं और उसी के भरोसे अपने कर्मों को अंजाम देते हैं। जैसे नाम है हरि/हर+ईश अर्थात् शिव और विष्णु का संयुक्त नाम। उसे कोरोना हो गया। रिश्ते में मेरा छोटा भाई। हम उस दौर के लोग हैं जो मोहल्ले के भाईचारे के अटूट बंधन को आज भी दिलों में बसाए जी रहे हैं। यह भी उन्हीं में से एक है जिसने हमें कभी सगे भाइयों के अभाव को महसूसने नहीं दिया।

बहनों को क्या चाहिए? मान  और प्यार-दुलार। उसके लिए हम हमेशा सौभाग्यशाली हैं। इन्होने खूब दिया और भरपूर दिया। लॉक डाउन के कारण आप फोन, इन्टरनेट के आलावा मुलाकात तो नहीं कर सकते। जीवन के पांचवे दशक में कदम रखा ही है और कोरोना से विजयी हो लौटा है। उससे बात करने पर उसने जैसा बताया, जस का तस आप पढ़िए-
 
“मैं हरीश शुक्ला, 8 से 25 अप्रैल तक कोरोना होने एवं आक्सीजन स्तर 85 हो जाने से सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में अच्छे  इलाज उपरांत अब घर पर पूर्ण आराम कर रहा हूं। ‘बिल्कुल भी न घबराएं क्योंकि मैंने अस्पताल में कुछ युवाओं को डर से जल्दी मरते देखा है एवं उम्रदराज लोगों को मेरी तरह खुशी-खुशी अपने घर जाते देखा है।’ प्रभु एवं स्वयं पर हमेशा विश्वास रखें। 
 
मैंने डॉक्टर्स के निर्देशों का पूर्ण पालन किया। 6 रेमडिसीवर लगे। पेट भर खाना खाया, फल, दूध प्रोटीन पावडर वाला लिया। महामृत्युंजय जाप सुनता रहता। पुराने पसंदीदा गाने सुनता। आईसीयू वार्ड में अन्य मौतों से जरा भी नहीं घबराया। उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रभु से तुरंत प्रार्थना कर लेता। मुझे परमपिता पर विश्वास था वह मुझे अच्छा कर देंगे। जीवन में निस्वार्थ किए काम एवं सभी के भले की भावना एवं स्नेहियों की प्रार्थनाओं ने नया जीवन दिया। प्रभु की कृपा बनी रहे। मेरा सु़झाव है जांच के बाद सरकारी अस्पताल में ही जाएं। वहां बहुत अच्छा फ्री इलाज है। इलाज का तरीका सही है। अस्पताल में भी आक्सीजन मास्क बिल्कुल न हटाएं। खाने का कौर मुंह में रखकर चबाएं और मास्क फिर लगा लें। पूरा खाना धीरे धीरे ऐसे ही खाएं।’’
 
ये हरीश की जुबानी आपबीती है। शुरू से ही जीवन के प्रति आशान्वित, और आस्थावान होना उसका स्वभाव रहा है। आस-पास के मरीजों को धीरज बंधाना, अपने घर के खान-पान से हिस्सेदारी करना, और खुद खतरे में होने के बाद भी दूसरों के मन में जीवनदीप जलाना शायद उसके ठीक होने की एक वजह रही है।
 
 केवल सकारात्मकता होने से कुछ भी नहीं होता, हौसला, इच्छाशक्ति, परिस्थितियां भी तो काम करतीं हैं। प्री कोरोना, पोस्ट कोरोना के दौर में मात्र ठीक हो जाना ही मायने नहीं रखता, कैसे ठीक हो सकते हैं ये जानना भी तो जरुरी है और उससे ज्यादा जरुरी है उसका अमल करना। बस यही भाई हरीश ने किया। पत्नी, बेटे व परिजनों की हिम्मत, साथ, प्रार्थनाओं का प्रतिफल है हरीश का ठीक होना। 
 
“प्रशासन और व्यवस्थाओं की निंदा और कोसीकरण के बीच हरीश का उनके प्रति आभार कहना उम्मीदों और विश्वास के दीपक के जगमगाने जैसा है कि इस भय, दहशत, अनहोनी के अंधियारे में आशा की किरण आज भी जिन्दा है जो निर्ममता, क्रूरता, बेईमानी, कालाबाजारी, मक्कारी को मुंह चिढ़ा रही है।”