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Written By WD

बालश्रम का जिम्मेदार कौन ?

बाल श्रम निषेध दिवस
प्रीति‍ सोनी
हर साल 12 जून को 'बाल श्रम निषेध दिवस' मनाया जाता है। इस विषय पर बात करने से पहले हमें बाल श्रम के विभि‍न्न पहलुओं को जानना आवश्यक है। अथक प्रयासों के बावजूद बाल श्रम के जारी रहने का एक सबसे बड़ा कारण गरीबी और आर्थि‍क असमानता है।


 
 
सामान्य नजरि‍ए से देखें तो आर्थि‍क रूप से देश की जनसंख्या को 3 वर्गों में बांटा जा सकता है- जिसमें से पहला है उच्च वर्ग जो आर्थि‍क रूप से मजबूत है और किसी भी प्रकार की कमी का मतलब भी नहीं जानता, दूसरा वह वर्ग जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति-भर करने में सक्षम है और तीसरा वर्ग वह है, जो अपने परिवार की निम्नतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी असक्षम है जिसे दो वक्त की रोटी भी आसानी से नसीब नहीं है।
 
इस वर्ग में ऐसी स्‍थिति में न तो परिवार का मुखिया शिक्षित होता है और न ही बच्चों को शि‍क्षा दिला पाने में समर्थ होता है। ऐसे परिवारों में बच्चों की मुख्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी असंभव होता है इसीलिए वे सरकारी शि‍क्षा की सुविधा होते हुए भी बच्चे को स्कूल भेजने से ज्यादा काम पर भेजना जरूरी समझते हैं ताकि आय का एक और स्रोत उनके लिए खुल सके और वे अपना भरण-पोषण कर सकें। गरीब तबके के पास इसके अलावा आय का और कोई साधन भी नहीं होता और बगैर शि‍क्षा के ये मजदूरी, मजबूरी बनकर रह जाती है।

हमारे देश की बात की जाए तो ऐसा नहीं है कि सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है, लेकिन आंकड़ों की विसंगतियां न तो मासूमों पर हावी होते बालश्रम के अस्तित्व को नकार पाती हैं, न ही सही न्याय कर पाती है। उदाहरण के तौर पर देखें तो सरकार प्रदेश में कुल बाल मजदूरों का पिछले सर्वेक्षण का आंकड़ा 94 है यानी हर जिले में 2 बाल मजदूर। लेकिन सच तो हमेशा आंकड़ों से भि‍न्न होता है, जो हमारे ही आसपास के परिवेश में दिखाई देने वाले 'चाय वाले छोटू' के रूप में हर चौराहे की किसी बड़ी दुकान में मिलता है।
 
सच के धरातल पर इनकी संख्या 2 या 4 नहीं बल्कि सैकड़ों में है, वहीं बाल अधि‍कारों के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता की बात करें तो अनुच्छेद 1 के अनुसार बच्चे की आयु सीमा 18 वर्ष से कम दर्शाई गई और कहा गया कि 18 वर्ष से अधि‍क उम्र के बच्चों को बाल श्रम की श्रेणी में नहीं रखा जाए, जबकि भारतीय संविधान में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को इस श्रेणी में रखा गया है और सरकार के आंकड़ों की गणना भी उसके अनुसार ही है। गौर करने वाली बात ये है कि सरकारी योजनाओं के अनुसार-
0 से 6 वर्ष के बच्चे की जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास विभाग के पास तथा 6 से 14 वर्ष की आयु वर्ग की जिम्मेदारी शि‍क्षा विभाग के पास है। 
लेकिन 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों की जिम्मेदारी आखि‍र किस विभाग की है? 
 
न तो सरकार इन्हें बाल श्रमिकों की श्रेणी में रखती है और न ही कोई सरकारी विभाग इनका जिम्मेदार है। ऐसे में बाल श्रमिकों की बढ़ती संख्या में इनका प्रतिशत कहीं ज्यादा है जिसका सरकारी सर्वेक्षण में कोई आंकड़ा नहीं है।जनगणना के आंकड़ों के आने तक देश की जनसंख्या का आंकड़ा भी काफी आगे पहुंच जाता है जिसके कारण सटीक आकलन करना और भी मु‍श्किल हो जाता है।14 वर्ष के बच्चे को अगर नि:शुल्क शिक्षा मिल भी जाती है तो उसके बाद उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी धन की आवश्यकता होगी और गरीबी के कारण परिवार की आय की जिम्मेदारी भी उस पर होगी। ऐसे में उसके लिए शिक्षा उतनी जरूरी नहीं, जितना कि पैसे कमाना।इसके लिए जरूरी है कि कोई बीच का रास्ता निकाला जाए। हालांकि सरकार द्वारा बाल श्रम को देखते हुए प्रभावकारी कदम भी उठाए गए, लेकिन फिलहाल व्यवस्था में जो कमी है उसे ढूंढकर उसका निराकरण करना बेहद जरूरी है तभी मासूम हाथों में काम की जगह कलम होगी और देश का भविष्य गरीबी की जगह शि‍क्षि‍त व उन्नत समाज होगा तथा तब ही जाकर मिट सकेगी आर्थि‍क असमानता।