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14 जनवरी से सूर्य उत्तरायण

14 जनवरी से सूर्य उत्तरायण -
- योगेशचंद्र शर्मा

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पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रजापति ब्रह्मा ने जब सृष्टि निर्माण की कामना की तो उन्होंने अपने दाएँ अँगूठे से दक्ष को और बाएँ से उसकी पत्नी को पैदा किया। ब्रह्मापुत्र मरीचि के बेटे कश्यप के साथ दक्ष की तेरहवीं पुत्री अदिति का विवाह हुआ। यही दोनों आगे चलकर देवताओं के माता-पिता बने।

उन दिनों देवताओं और दैत्यों में अक्सर युद्ध होते थे। जब देवता पराजित होने लगे तो अदिति को दुःख हुआ। उसने सूर्य की कठोर तपस्या की और उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने की कामना की ताकि उनके नेतृत्व में देवता, दैत्यों पर विजय प्राप्त कर सकें। तदनुसार सूर्य अपने एक हजारवें अंश में अदिति के गर्भ से पुत्र रूप में प्रकट हुए।

आदि सूर्य की उत्पत्ति के बारे में पुराणों का कथन है कि ब्रह्मा के मुख से 'ओम' प्रकट हुआ। यह ओम ही सूर्य का सूक्ष्म रूप है। ओम से भी पूर्व ब्रह्मा के मुख से भूः, भुवः और स्वः उत्पन्न हुए थे। इनसे मिलकर सूर्य का रूप स्वरूप शनैः-शनैः स्थूलतर होता चला गया और उसकी प्रखर कांति से दसों दिशाएँ प्रकाश से जगमगाने लगीं। पुराणों के अनुसार सृष्टि के आदि में उत्पन्ना होने के कारण सूर्य को आदित्य कहते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार अदिति के पुत्र होने के कारण उन्हें आदित्य कहा जाता है। सूर्य का एक नाम मार्तंड भी है। इनके अतिरिक्त भी सूर्य के अनेक नाम हैं जिनकी निश्चित सूची बनाना कठिन है।
  उन दिनों देवताओं और दैत्यों में अक्सर युद्ध होते थे। जब देवता पराजित होने लगे तो अदिति को दुःख हुआ। उसने सूर्य की कठोर तपस्या की और उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने की कामना की ताकि उनके नेतृत्व में देवता, दैत्यों पर विजय प्राप्त कर सकें।      


पौराणिक साहित्य में सूर्य के तीन विवाहों का उल्लेख है। तदनुसार उनकी पत्नियाँ थीं- संज्ञा, राज्ञी और प्रभा। ऋग्वेद में त्वष्टा की पुत्री शरायु के साथ भी सूर्य के विवाह की चर्चा है। संभव है कि संज्ञा और शरायु मूलतः एक ही रही हैं। राज्ञी से सूर्य को रेवत नामकपुत्र प्राप्त हुआ और प्रभा से उन्हें प्रभात नामक पुत्र प्राप्त हुआ। संज्ञा के साथ उनका वैवाहिक जीवन काफी घटनाप्रधान रहा।

संज्ञा सूर्य के तेज को सहन नहीं कर पाती थी। इससे वह अपनी छाया घर में स्थापित करके कहीं दूर चली गई। बाद में विश्वकर्मा ने सूर्य का तेज कम करके उससे विष्णु का चक्र, शिव का त्रिशूल, यम का दंड और देवताओं के सेनापति कार्तिकेय के शक्तिपाश की रचना कर दी। इसके बाद ही सूर्य और संज्ञा सामान्य जीवन बिता सके। संज्ञा से भी सूर्य को कई संतानें प्राप्त हुईं। कुल मिलाकर सूर्य के दस पुत्र तथा तीन पुत्रियाँ हुईं।

प्राचीन साहित्य में यत्र तत्र प्रभा, छाया, उषा, प्रत्यूषा और निक्षुभा आदि को भी सूर्य की पत्नी के रूप में बतलाया गया है परंतु इनके बारे में विस्तृत विवरण नहीं है। ये नाम आपस में भी एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। कतिपय विद्वानों के विचार हैं कि इनमें से कुछ नाम निश्चित हीआर्येतर सभ्यताओं से आए हैं और इसलिए सूर्य की मूल कथा से ये मेल नहीं खाते।

सूर्य के सबसे बड़े पुत्र का नाम था वैवस्वत मनु, जो उन्हें संज्ञा से प्राप्त हुआ था। इसके बाद संज्ञा से ही उन्हें जुड़वाँ संतान प्राप्त हुई थी- पुत्र यम तथा पुत्री यमुना। वैवस्वत मनु ने बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त की। उन्होंने ही मानव संस्कृति को जन्म दिया और समन्वय की प्रवृत्ति की आधारशिला रखी। वैवस्वत मनु को ही पृथ्वी का प्रथम राजा कहा जाता है। कुछ विद्वान प्रभु को प्रथम राजा मानते हैं। वैवस्वत मनु के दस पुत्र हुए। उनके एक पुत्री भी थी इला, जो बाद में पुरुष बन गई। पुत्रों में इक्ष्वाकु ने विशेष ख्याति अर्जित की।

इक्ष्वाकु के बाद ख्याति प्राप्त करने वाली वंश परंपरा इस प्रकार चली- ककुत्स्थ, पृथु, युवनाश्व, श्रावन्तक, बृहदश्व, कुबलाश्व, दृढ़ाश्व, हर्यश्व, निकुम्भ, सेहताश्व, रणाश्व, युवनाश्व, मान्धाता, पुरुकुत्स, सम्भूत, सुधन्वा, त्रिधन्वा, तरुण, सत्यव्रत, हरिश्चंद्र (सत्यवादिता के लिए प्रसिद्ध), रोहिताश्व, वृक, बाहु, सगर, असमंजस, अंशुमान, दिलीप, भगीरथ (गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए प्रसिद्ध), नाभाग, अम्बरीष, सिन्धुद्वीप, श्रुतायु, ऋतुपर्ण, कल्माषपाद, सर्वकर्मा, अनरण्य, निघ्र, दिलीप, रघु, अज और दशरथ। यही दशरथ श्रीराम के पिता थे। ये चार भाई थे- राम लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। राम केलव और कुश दो पुत्र थे। इनमें कुश की ही वंश परंपरा का उल्लेख मिलता है।

कुश, अतिथि, निषध, नल, नभ, पुण्डरीक, सुधन्वा, देवनीक, अहिनाश्व, सहस्राश्व, चंदलोक, नारपीड़, चंद्रगिरि, भानुरथ, श्रुतायु आदि। कुश की 31वीं पीढ़ी में राजा बृहदल हुए जिन्होंने महाभारत युद्ध मेंकौरवों की तरफ से युद्ध लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुए। राजा बृहदल की 22वीं पीढ़ी में राजा संजय हुए और इन्हीं के वंश में आगे चलकर महाराज शुद्धोदन हुए, जिनके पुत्र सिद्धार्थ ने गौतम बुद्ध बनकर विश्व को अहिंसा की विचारधारा दी। सिद्धार्थ के पुत्र राहुल हुए और उनका वंश आगे चला प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुंडल, सुरथ और सुवित्र आदि।