वेश्यावृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, नीमच-मंदसौर के 68 गांवों में 250 से अधिक वेश्यावृत्ति के डेरे, कैसे लगेगी रोक?
नीमच। सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़े व महत्वपूर्ण फैसले के तहत देश में वेश्यावृत्ति को वैध करार दिया है। उसने साफ शब्दों में कहा कि पुलिस इसमें दखलंदाजी नहीं कर सकती और न ही सहमति से यह कार्य करने वाले सेक्स वर्करों के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है।
अब इसका असर मालवा के नीमच मंदसौर और रतलाम में सीधा पड़ेगा, क्योंकि यहां करीब 68 गांवों में 250 अधिक वेश्यावृत्ति के डेरे है जहां बांछड़ा समुदाय में देहव्यापार को सामाजिक मान्यता मिली हुई है और यह काम अवैध रूप से खुलकर किया जाता है।
वहीं जहां वेश्यावृत्ति करने वाले सेक्स वर्कर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट खड़ा हुआ है तो वहीं दूसरी ओर अब इस इलाके में पुलिस के द्वारा कार्रवाई करना उतना ही मुश्किल हो चला है, क्योंकि आए दिन पुलिस वेश्यावृत्ति डेरों में छापेमार कार्रवाई करती और इनकी आंख-मिचौली का खेल लंबे समय से चला आ रहा था।
आपको जानकारी के अनुसार बता दें कि मालवा के माथे पर बांछड़ा समुदाय की वेश्यावृत्ति का बदनुमा दाग लगा है। मालवा के नीमच, मंदसौर और रतलाम जिलों के करीब 65 गांव में 250 डेरे हैं जहां खुलेआम वेश्यावृत्ति होती है। यहां मां-बाप के सामने बेटियों के दाम लगाए जाते हैं, जिसके चलते यह इलाका बदनाम है।
इस अवैध धंधे को रोकने के लिए कई बार पुलिस ने यहां छापेमार कार्रवाई भी की है और कई बार पुलिस पर रुपए लेने के आरोप भी लगे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले से एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि अब पुलिस इस कार्रवाई कैसे करेंगी और यहां हो रहे वैश्यावृत्ति को कैसे रोक जा सकेगा।
आज दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेक्स वर्कर भी कानून के समक्ष सम्मान व बराबरी के हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह अहम फैसला दिया। पीठ ने सेक्स वर्करों के अधिकारों की रक्षा के लिए 6 सूत्रीय दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।
कोर्ट ने इन सिफारिशों पर सुनवाई की अगली तारीख 27 जुलाई तय की है। केंद्र को इन पर जवाब देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि स्वैच्छिक वेश्यावृत्ति अवैध नहीं है। केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत दर्ज कराने वाली सेक्स वर्करों के साथ पुलिस भेदभाव न करे। यदि उसके खिलाफ किया गया अपराध यौन प्रकृति का हो तो तत्काल चिकित्सा और कानूनी मदद समेत हर सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्करों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है। ये ऐसे वर्ग के होते हैं, जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है, इसलिए उनके मामलों में संवदेनशील रवैया अपनाने की जरूरत है।
वहीं इस मामले को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता महेश पाटीदार से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इन लोगों को थोड़ी आजादी मिलेंगी क्योंकि यह इलाका इतना बड़ा नहीं है लेकिन फिर भी पहले यह डर-डर के इस धंधे को करते थे क्योंकि जो कुछ ये अपना जिस्म बेचकर कमाते थे उसे भी कुछ पुलिसकर्मी नोच लिया करते थे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से इनको थोड़ी राहत मिली है। रही बात सुप्रीम कोर्ट के इनके पक्ष में खड़े होने की तो धीरे-धीरे इनके बच्चे पढ़ेंगे-लिखेंगे तो यह अपने आप इस धंधे से बाहर निकल जाएंगे।
प्राजेक्ट मिशन मुक्ति कार्यक्रम के जिला संयोजक आकाश चौहान ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं कहा कि नाबालिग बच्चों से वेश्यवृत्ति कराना सहमति है। यहां पर अधिकतर नाबालिग बच्चियों से डेरों पर वेश्यावृत्ति कराई जाती है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि वेश्यालय चलाना भी गैरकानूनी है। इसलिए पुलिस यहां डेरों पर कार्रवाई कर सकती है।