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Written By विशेष प्रतिनिधि
Last Updated : बुधवार, 10 नवंबर 2021 (19:05 IST)

कटनी स्टोन आर्ट फेस्टीवल में देश भर के शिल्पकार अपनी कलाकारी से बेजान पत्थरों में फूंक रहे जान!

कटनी स्टोन आर्ट फेस्टीवल में देश भर के शिल्पकार अपनी कलाकारी से बेजान पत्थरों में फूंक रहे जान! - Special Report on Katni Stone Art Festival
मध्यप्रदेश का ऐतिहासिक शहर कटनी इन दिनों शिल्पकला के रंग में गुलजार है। दरअसल कटनी स्टोन आर्ट फेस्टीवल‘आधारशिला’ में देश भर से आए शिल्पकार विश्व प्रसिद्ध कटनी के स्टोन व मार्बल से कलाकृतियां बना रहे है। शिल्पकारों की कला को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे है।

कटनी जिले के पुरातन किले, शानदार शिल्पकला के लिए पहचान रखने वाले मंदिर और उनमें की गई शानदार नक्काशी, देखकर लोग आज भी दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं। शिल्पकारों ने अपनी कला को जिले में निकलने वाले पत्थरों पर ही उकेरा और आज वे ऐतिहासिक कलाकृतियां हमारे पास धरोहर के रूप में मौजूद हैं। जिले का सेंड स्टोन उस समय शिल्पकला के कारीगरों के लिए जितना उपयोगी था, उतना आज भी है। 
 
कटनी जिले के स्टोन को प्रदेश सरकार के एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत चयनित किया है। कटनी का सेंड स्टोन आज देश-विदेश में पहचान बना रहा है लेकिन इसके इतिहास पर नजर डालें तो सदियों पहले भी कटनी का पत्थर शिल्पकारों के अनुकूल रहा है। राजाओं ने कला केन्द्रों की स्थापना अपनी राजधानियों को छोड़कर कटनी के आसपास की थी, उसका कारण था कि यहां के पत्थर में उनके मन के अनुरूप कलाओं का प्रदर्शन हो पाता था। इस बात के सबूत आज भी जबलपुर, कटनी व उसके आसपास के जिलों के पुराने किले, मंदिरों, मठों में देखने को मिलते हैं।

कटनी में गुप्तकालीन कलाकृतियां इस बात को प्रदर्शित करती हैं कि उन दिनों कलाप्रेमी राजाओं के लिए कटनी का पत्थर ही किला, गढ़ी और मंदिरों के निर्माण में उपयुक्त होता था और उनमें उकेरी गई कलाकृतियां आज भी लोगों को आकर्षित कर रही हैं। गुप्तकाल के बाद कल्चुरी काल के राजाओं ने तो कटनी के कारीतलाई और बिलहरी में अपने कला केन्द्र ही स्थापित किए थे।

साहित्यकार राजेन्द्र सिंह ठाकुर बताते हैं कि कल्चुरी राजाओं की राजधानी जबलपुर के तेवर में स्थापित थी और उस समय कटनी उनके राज्य का हिस्सा था। जबलपुर में बड़ी मात्रा में पत्थर मिलता है कि लेकिन उसके बाद भी कल्चुरी राजाओं ने बिलहरी व कारीतलाई में अपने कला केन्द्र स्थापित किए। इसका कारण यह था कि कटनी में मिलने वाला पत्थर मुलायम होने के साथ ही उसपर कलाकृतियां उकेरना आसान होता है।

उनका कहना है कि इतिहास में मिलने वाले प्रमाण के अनुसार कारीतलाई और बिलहरी में शिल्पकार कलाकृतियों का निर्माण करते थे और उसके बाद विभिन्न माध्यमों से उन शिल्प को अलग-अलग स्थानों पर भेजा जाता था। जहां पर मंदिर, किला, गढ़ी आदि में उनका उपयोग होता था। कटनी के मंदिरों, गढ़ी, मठ के अलावा जबलपुर के चौसठ योगिनी मंदिर, त्रिपुर सुंदरी मंदिर भी इसी कला के प्रमाण माने जाते हैं।
 
कटनी के पत्थर से पुराने समय में लोगों के घरों को भी आकर्षक रूप देने का काम होता रहा है। आज भी जिले की पुरानी कोठियां, हवेलियों की चौखट तक पत्थरों पर आकर्षक कलाकृतियों से भरी पड़ी हैं तो छतों के बारजा में भी लगे पत्थरों पर भी शानदार नक्काशी देखने को मिलती है। इतना ही नहीं कटनी, जबलपुर के अलावा आसपास की उन दिनों रियासतों में कटनी के पत्थर पर की गई शानदार नक्काशी की कलाकृतियां भेजी जाती थीं और कई स्थानों पर आज भी वे सुरक्षित हैं।
 
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