शिवराज मंत्रिमंडल के चेहरों को लेकर सस्पेंस बरकरार, सिंधिया के आने के बाद भाजपा के अंदर नए और पुराने का अंतर्द्वंद्व
भोपाल। मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते भले ही मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार बन गई हो लेकिन सिंधिया और उनके समर्थकों की एंट्री के बाद भाजपा के अंदरखाने के सियासी समीकरण किस तरह बिगड़ गए है इसको इन दिनों प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मची सियासी उठापटक से आसानी से समझा जा सकता है।
शिवराज कैबिनेट के विस्तार को लेकर लगातार जारी कयासबाजी के बीच मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले चेहरों को लेकर इन दिनों भाजपा के अंदर नए और पुराने की एक अघोषित सियासी जंग देखने को मिल रही है। मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले नामों की सूची फाइनल कराने के लिए दिल्ली गए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही वापस प्रदेश लौट आए हो लेकिन कैबिनेट में किन चेहरों को शामिल किया जाएगा यह सियासी कुहासा छंटने का नाम नहीं ले रहा है।
यहां पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस बयान का उल्लेख करना भी जरूरी है जिसमें उन्होंने कहा था कि “शीघ्र ही मंत्रिमंडल विस्तार होने वाला हैं और मंत्रिमंडल विस्तार के सभी पहलुओं को लेकर उनकी संगठन मंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष से चर्चा हो चुकी हैं और अब दिल्ली में चर्चा कर बहुत जल्द मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा”।
मुख्यमंत्री दिल्ली से तो लौट आए लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार पर उन्होंने खुलकर कुछ तो नहीं बोला लेकिन इतना जरूर कहा कि बुधवार को कैबिनेट का विस्तार नहीं होने जा रहा है। मंगलवार देर शाम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बाद फिर प्रदेश भाजपा दफ्तर पहुंचे और वहां पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन मंत्री सुहास भगत के साथ नामों को लेकर मंथन किया इस दौरान मंत्रिमंडल के दावेदार भूपेंद्र सिंह और संजय पाठक भी प्रदेश भाजपा कार्यालय पहुंचे।
मार्च में चौथी बार प्रदेश की कमान संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान को शायद पहली बार मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर इतनी ऊहापोह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार नए और पुराने नेताओं के बीच सांमजस्य बैठाना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। इसके साथ मंत्रिमंडल को लेकर शायद तीन बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उतना प्री हैंड भी नहीं है जितना एक मुख्यमंत्री को अपने मंत्रिमंडल के गठन में मिलता है।
पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव कह चुके हैं कि पार्टी को अपने सीनियर नेताओं के अनुभवों और जनाधार का फायदा लेना चाहिए। ऐसे नेता जो पार्टी की स्थापना के साथ है उनके अनुभवों का लाभ भी पार्टी को लेना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि बाहर से आने वाले लोगों को संतुष्ट करने के साथ मूल पार्टी में जो वरिष्ठ और समर्पित लोग है उनके भी भावना का ख्याल रखना होगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लिए चुनौती इसलिए और भी बढ़ गई हैं क्योंकि सिंधिया समर्थकों का बड़े पैमाने पर (करीब 8-10 की संख्या) पर मंत्री बनाया जाना हाईकमान के स्तर से पहले से ही तय हो चुका है इसलिए अब राजनीतिक तौर पर बलिदान देने का दबाव पार्टी के वफादार और पुराने नेताओं पर आ गया है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि सिंधिया का भाजपा में शामिल होना केंद्रीय नेतृत्व के स्तर पर तय हुआ जिसमें बाद में शिवराज और वीडी शर्मा को भी शामिल गया। सिंधिया को पार्टी में लाने को लेकर जो कमिटमेंट दिया गया वह अमित शाह और जेपी नड्डा के स्तर पर दिया गया। इस कमिटमेंट और उपचुनाव के चलते मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया सर्मथकों का शामिल होना तय हैं और सिंधिया के प्रभाव के चलते वह जो चाहेंगे उनको मिल भी जाएगा, ऐसे में जो त्याग और बलिदान देना है वह भाजपा के अंदर के लोगों को ही देना हैं।
रशीद किदवई कहते हैं कि सिंधिया के आने के बाद ग्वालियर-चंबल में भाजपा के ऐसे नेता जो पिछले चुनाव में नंबर दो को पोजिशन पर थे और जो अन्य सियासी महत्वकांक्षा रखते थे उनको अब सिंधिया के आने के बाद एक तरह से राजनीतिक बलिदान देना होगा।
मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मची सियासी खींचतान पर रशीद किदवई कहते हैं कि मार्च में प्रदेश में सरकार को गठन को लेकर भाजपा की तरफ से जल्दबाजी हुई उसकी वजह से बहुत सारी चीजों को बहुत ध्यान से सोचा नहीं गया, ऐसे में भाजपा ने सिंधिया समर्थकों को जो आश्वासन दिया है उसके बाद भाजपा को अपने अंदर ही समन्वय बनाया है।
इसके साथ भाजपा में एक समस्या ये भी हैं कि पूर्व में जो शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके है उनको भी रखना है। भाजपा के वफादार रहे है और जो बाहरी लोग आ गए है उसके लिए थोड़ी परेशानी तो होती है सब कुछ अच्छे से हो जाएगा ऐसा संभव नहीं है।