मध्यप्रदेश की सियासत में बैचेन ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक, 'महाराज' की सियासी हनक पर भी सवाल?
2018 के विधानसभा चुनाव में हार कर सत्ता से बाहर होने वाली भाजपा को मध्यप्रदेश में भाजपा को फिर से सत्ता का स्वाद चखाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर इन दिनों सियासत के गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है। सूबे की राजनीति में महाराज के नाम से जाने पहचाने जाने वाले जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर खबरों का जो दौर चल रहा है उसे आधा हकीकत-आधा फसाना ही कहा जा सकता है।
महाराज को भाजपा में आए दो साल से अधिक का लंबा वक्त बीच चुका है लेकिन अब तक वह भाजपा में पूरी तरह एडजस्ट नहीं हो पाए है और न ही हो पा रहे है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर ग्वालियर-चंबल की भाजपा नई और पुरानी भाजपा में बंट गई है और आए दिन दोनों ही खेमे आमने सामने दिखाई देते है। बात चाहे पंचायत चुनाव की हो या नगरीय निकाय चुनाव में उम्मीदवारों के चयन की नई भाजपा और पुरानी भाजपा के नेताओं में टकराव साफ देखा गया था।
ग्वालियर नगर निगम के महापौर में भाजपा उम्मीदवार के टिकट को फाइनल करने को लेकर ग्वालियर से लेकर भोपाल तक और भोपाल से लेकर दिल्ली तक जोर अजमाइश देखी गई थी और सबसे आखिरी दौर में टिकट फाइनल हो पाया था। ग्वालियर नगर निगम में महापौर चुनाव में 57 साल बाद भाजपा की हार को भी नई और पुरानी भाजपा की खेमेबाजी का परिणाम बताया जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा की महापौर उम्मीदवार को सिंधिया खेमे के मंत्री के क्षेत्र से बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।
इतना ही नहीं पंचायत चुनाव में ग्वालियर के साथ-साथ डबरा और भितरवार में जनपद पंचायत अध्यक्ष पद पर अपने समर्थकों को बैठाने के लिए महाराज समर्थक पूर्व मंत्री इमरती देवी और भाजपा के कई दिग्गज मंत्री आमने सामने आ गए थे। पंचायत चुनाव में दोनों ही गुटों ने अपना वर्चस्व दिखाने के लिए खुलकर शक्ति प्रदर्शन भी किया था।
वहीं पिछले दिनों भाजपा कोर कमेटी की बैठक में शामिल होने आए ज्योतिरादित्य सिंधिया के बिना बैठक में शामिल हुए अचानक दिल्ली जाने को लेकर भी चर्चाओं और अटकलों का दौर गर्मा गया था। सिंधिया के अचानक दिल्ली जाने को लेकर ग्वालियर के नए भाजपा जिला अध्यक्ष की नियुक्ति से उठे विवाद को जोड़कर देखा गया था। कमल माखीजानी को हटाकर ग्वालियर भाजपा के नए जिला अध्यक्ष के तौर पर अभय चौधरी की नियुक्ति को लेकर सिंधिया की नाराजगी की खबरें थी। अभय चौधरी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खेमे के माने जाते है और उनके चौथी बार जिला अध्यक्ष बनने से नरेंद्र सिंह तोमर का खेमा मजबूत हुआ है।
ऐसे में अब जब गुजरात चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में शिवराज कैबिनेट का बहुप्रतिक्षित विस्तार की अटकलें लगाई जा रही है तब सिंधिया समर्थक कैबिनेट मंत्री प्रदुय्मन सिंह तोमर और सुरेश धाकड़ जिनकी परफॉर्मेंस पर लंबे से सवाल उठ रहे है उनके बाहर होने की चर्चा जोर पकड़ रही है। बताया जाता है कि ऊर्जा विभाग और उसमें घोटाले की खबरों पर मुख्यमंत्री सचिवालय अब एक्शन के मूड में आ गया है। वहीं पिछले दिनों सीएम हाउस पर हुए डिनर के बाद सिंधिया समर्थक सुरेश धाकड़ ने बाहर निकलकर 'महाराज' की जगह शिवराज का गुणगान किया उसके भी कई सियासी मानयने है।
पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का ग्वालियर संभाग के नेताओं के साथ बैठक को भी इसी से जोड़क देखा जा रहा है। बताया जाता है कि ग्वालियर-चंबल के पुरानी भाजपा के नेता एकजुट होकर प्रदेश नेतृत्व के सामने अपनी बात रख चुके है।
मोदी-शाह की गुडबुक में शामिल ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति की अपनी स्टाइल है और उनके समर्थकों को अपने महाराज पर पूरा भरोसा है। ऐसे में अब मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुका है तब क्या भाजपा सिंधिया समर्थक मंत्रियों और टिकट के दावेदारों को नाराज करने का जोखिम उठा पाएगी, यह देखना होगा।
भाजपा में शामिल होने के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके समर्थक शिवराज के बाद मुख्यमंत्री के चेहरे के प्रबल दावेदार भी देखते है। वहीं सिंधिया जिस तरह से भोपाल से लेकर नागपुर तक आए दिन आरएसएस के दरबार में अपनी हाजिरी लगाने नजर आते है उसके भी अपने मायने है। वहीं भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश विजवर्गीय के साथ सिंधिया की जुगलबंदी और ग्वालियर में अपने कट्टर विरोधी नेताओं जयभाव सिंह पवैया के घऱ जाने को भी सिंधिया की भविष्य की राजनीति से ही जोड़कर देखा जा रहा है।