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खूबसूरत सत्र रहा मेरी कहानी, मेरी जुबानी

खूबसूरत सत्र रहा मेरी कहानी, मेरी जुबानी - Indore literature festival beautiful session meri kahani meri zubani
इंदौर साहित्य सम्मेलन के दूसरे दिन एक और खूबसूरत सत्र रहा मेरी कहानी, मेरी जुबानी, जिसमें संजय पटेल की चर्चा हुई रेडियो की दो बड़ी हस्तियों यूनुस खान और रेडियो सखी ममता सिंह से।  दोनों जीवनसाथी हैं और आवाज़ की दुनिया में अपनी पहचान बना चुके हैं।
 
एक सवाल जिसमें यूनुस से पूछा गया कि इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा क्या काम आता है, तो उन्होंने बड़ी ज़हीनता से जवाब दिया कि रेडियो में काम करने वालों को एक साथ कई चीजों में माहिर होना चाहिए। शब्द भंडार और ज्ञान का भंडार इस क्षेत्र में बेहद काम आता है। 
 
रेडियो में सखी मानक पर जब ममता सिंह से सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि कुछ अलग की चाह में यह मानक खुद उन्होंने गढ़ा है, जो अब ब्रांड बन चुका है। अब लोग उन्हें ममता सिंह से ज्यादा रेडियो सखी के नाम से जानते हैं। दोनों ही लेखन और साहित्य में अपना योगदान देते हैं, लेकिन उनके अनुसार साहित्य सृजन और माइक्रोफोन दोनों में से किसी एक चीज़ कस बारे में पूछा जाए जिसमे आनंद अधिक है, तो दोनों ने ही अपनी प्राथमिकता माइक्रोफोन को बताया।
 
रेडियो उद्घोषिका के तौर पर ममता ने विविध भारती  से जुड़े कई रोचक संस्मरण साझा किए। दोनों ही हस्तियों के विचार थे कि चाहे लिखना हो या बोलना हो पढ़ना बहुत जरूरी है। उनका कहना था कि रेडियो में जब FM आया तो हमने भी रफ्तार वाली शैली अपनाई, लेकिन हमने भाषा का मिश्रण नहीं किया हमारी भाषा सलीकेदार रही, उसमें रवानी रही, प्रवाह है और सबसे बड़ी बात यह कि हमारे पास कंटेंट होता है, इसलिए हम कभी आउट डेटेड नहीं होंगे।
 
ममता सिंह ने अपनी कहानी आखरी कॉन्ट्रेक्ट पर भी बात कही। यूनुस ने टिप्स दिए कि एंकर को कभी भी आवाज़ बनाकर नहीं बोलना चाहिए। सरल सहज ही रहना चाहिए, जबकि ममता का कहना था कि अपने दुख, परेशानी और जज़्बात को माइक पर आते ही भूल जाना चाहिए। उनका कहना था कि मैं लिखूं या बोलूं जब जहां होती हूं उसी में खुद को डुबो लेती हूं। मैं हर जगह यूनुस और जादू को देखती हूं। ममता सिंह ने बड़े ही दिलचस्प अंदाज़ में बताया कि कैसे उनके नाम प्रेम पत्र आते हैं और वह उन्हें यूनुस को भी पढ़वाती हैं। 
 
चाय पर चर्चा : अगला सेशन अत्यंत दिलचस्प रहा क्योंकि यह इंदौरियों के प्रिय विषय चाय पर था। Tea, Tales and Tomorrow विषय पर हुई इस परिचर्चा को खासा प्रतिसाद मिला। इस सत्र में रस्किन बांड फिर मंच पर थे और साथ में चाय पर कई तरह के शोध करने वाली स्निग्धा मनचंदा थीं। इसे मॉडरेट किया डॉ. अपूर्व पौराणिक ने।
 
उन्होंने कहा कि हमें लगता है कि अलग-अलग पत्तियों से अलग-अलग चाय बनती है पर एक ही पत्ती होती है, जिसे अलग-अलग रूप से हम प्रयोग करते हैं।
 
हर्बल चाय में चायपत्ती नहीं होती क्योंकि वो केफ़िन रहित होती है। उसे ऐसे ही अदरक और हर्ब्स के साथ बनाते हैं। चाय टेस्टर जब बनते हैं तो दिन की शुरुआत सौ कप चाय से करनी होती है, जो अलग-अलग प्रकार से बनाई जाती है वो टेस्ट की जाती है। स्निग्धा ने कहा चाय जो भारत में पकाई जाती है वह अनोखी है और सिर्फ भारत में ही बनाई जाती है, जबकि पूरी दुनिया में चाय हल्की सी डुबोकर बनाई जाती है।
 
एक बूंद सहसा उछली : अगला सत्र एक बूंद सहसा उछली यात्रा वृतांत के नाम था...इसे भी अपूर्व पौराणिक ने मॉडरेट किया लेकिन इसके मुख्य आकर्षण थे मशहूर यात्रा लेखक अजय सोडानी और संदीप भूतोरिया। अजय ने बताया कि ट्रैवल राइटिंग यानी यात्रा वृतांत हिंदी पाठकों के बजाए इंग्लिश पाठकों में इसका चलन ज्यादा है।
 
विदेशी पर्यटक इसका बड़ा उदाहरण है जिनके हाथों में हमेशा गाइड या बुक देखने को मिल जाती है। वे पढ़कर, सुनकर और जानकर, ढूंढते हुए यात्रा पर निकलते हैं लेकिन ये हमारे यहां देखने को नहीं मिलता। ये इशारा है कि हिन्दी में वाइल्ड लाइफ ट्रैवलर की ज़रूरत है। इस क्षेत्र में ट्रांसलेशन भी ज़रूर होना चाहिए।
 
सत्र में शामिल अतिथि ने अजय की किताब 'यायावरी दुर्योधन के देश में' पर हिमालय की यात्रा को लेकर बात की। अजय कहते हैं कि हिमालय पर कई लोगों से सुना कि हम इतना सा चलने पर हांफ जाते हैं, लेकिन ऐसे भी पुजारी हुए जो चोटी के चारों मंदिरों में पूजा कर के लौट भी आया करते थे। इस बात से उन्हें प्रेरणा मिली हिमालय की यात्रा के लिए।
 
उन्होंने कहा कि जितना आगे तक जा पाया हूँ गया हूं, लेकिन उससे आगे हिमालय मुझे जाने नहीं देता। वही बुलाता भी है मुझे। अब तक जो लिखा है वो हिमालय ने ही लिखवाया है और जो बोला वो हिमालय ने ही बुलवाया है। अजय ने मेघदूतम का उदाहरण देते हुए कहा कि यात्रा शुरुआत से हमारा हिस्सा रही है, जो रामायण में भी है और महाभारत में भी लेकिन बाद में हुए बदलावों ने हमारा विदेशी रुझान बढ़ा दिया है।
 
यात्रा वृत्तांत को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यात्रा वृत्तांत यात्री की दृष्टि है, जिससे उसने यात्रा के दृश्यों, घटनाओं और चीजों को ग्रहण किया है। उनके अनुसार उनके यात्रा वृत्तांत का मकसद ये नहीं कि लोग उस दुर्गम ऊंचाई तक पहुंचे ही, बल्कि उद्देश्य ये है कि लोग उसे जानें और स्वीकार करें।
 
उनका ये कहना है कि यात्रा मुझे विस्तार देती है और हर बार मुझे मेरी नज़र से गिरा देती हैं। वे मूर्ति के बजाए हर ज़र्रे में ईश्वर की बात पर आस्था रखते हैं। काव्य प्रवाह सत्र में सरोज कुमार,विवेक चतुर्वेदी, आशुतोष दुबे, दीपा मनीष व्यास, रश्मि रमानी ने प्रतिभागिता दी।
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