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सिर्फ एक बार
विजयशंकर चतुर्वेदी मुझे आने दो हँसते हुए अपने घरएक बार मैं पहुँचना चाहता हूँतुम्हारी खिलखिलाहट के ठीक-ठीक करीबजहाँ तुम मौजूद हो पूरे घरेलूपन के साथबिना परतदार हुए कैसे जी लेती हो इस तरह? सिर्फ एक बार मुझे बुलाओखिलखिलाकर तहें खोलो मेरीजान लेने दो मुझेघर को घर की तरहसिर्फ एक बार।