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प्रेम हमारा
विजयशंकर चतुर्वेदी मैंने देखा तुम्हें गुलफरोश के यहाँगुलाब चुनते हुएदेखता ही रहा।तुम वे फूल चढ़ा सकती थीं मंदिर मेंया खोंस सकती थीं जूड़े मेंमगर रख आईं समंदर किनारे रेत पर मेरा नाम खोदकर।भेजता हूँ प्रेम संदेशउपग्रहों से होते हुए पहुँचते हैं तुम तकमेरी मशीन पर उभर आता है तुम्हारा चेहराबनाती हो तुम भी कम्प्यूटर पर मेरी तस्वीरभरती हो उसमें मनचाहे रंगफिर सुरक्षित कर लेती हो मुझे स्क्रीन परहमेशा के लिए। गली-गली मारे फिरने की फुरसत कहाँ हमें?यह भी नहीं कि किसी बाग-बागीचे जाएँ विक्टोरिया पर मरीन ड्राइव का चक्कर लगाएँहाथ में हाथ, आँखों में आँखें डालेंचौपाटी पर पैरों से पानी उछालेंमनुष्य होने के उत्सव मनाएँ।रोबोट बना जड़ दिए जाते हैं हम कुर्सियों परलगातार झरती है हमारे दिल पररेडियो विकिरण की धूलजैसे साइबर स्पेस में मंडराता हो कोई जलता बगूल।अब कहाँ रहा आग का वह दरिया?हमें तो जाना होगा अंतरिक्ष के पारक्या पता किसी ग्रह से आ जाएतुम्हारे लिए प्रकाशपुंजीय तारऔर मैं उड़ जाऊँ हमेशा के लिए तुम्हारी स्क्रीन से
कल सारी रात बनाता रहातुम्हारे चेहरे का कोलाजमगर हर रंग लगा मुझसे थोड़ा नाराजवैसे तो मुझको तुम सुंदर लगती पूरे मन सेमुस्करा लेती हो मशीन पर इतने भोलेपन से।