आहट, प्रिय मानसून की
व्यंग्य
राजेन्द्र निशेष हे प्रिय सखी, प्यारा मानसून फिर आ गया है। आसमान पर काली घटाएँ अपनी छटा दिखला रही हैं। चहुँओर हरियाली अपनी आभा बिखेरने लगी है। कुछ घरों में मनचाहे पकवान अपनी खुशबू छोड़ने लगे हैं। यहाँ तक कि अमेरिकन घास भी शहर में जगह-जगह चुनाव से पूर्व प्रत्याशियों की तरह मुस्कुराने लगी है। इसकी एलर्जी के बावजूद भ्रष्टाचार की तरह हम इसका नाश करने में अपने आपको असफल ही पाते हैं। मौसम आते ही दूसरे अनचाहे झाड़-झंखाड़ के साथ यह भी गेहूँ के साथ घुन की तरह अपना रौब दिखलाने लगता है। नगर निगम वाले भी कहाँ तक इस पर कुल्हाड़ी चलवाएँ, मुए आवारा कुत्ते ही उसकी जान की आफत बने रहते हैं। बिना चेतावनी के ही बेलगाम पुलिस वालों की तरह लोगों को काटने लगते हैं और बिना दवा के सरकारी अस्पतालों की नाक का चूरमा बनवा देते हैं। नगर निगम कर्र्मचारियों की इनके पीछे भागने से कसरत हो जाती है, चाहे वे करना नहीं चाहते। कुछ हाथ में आते हैं और कुछ दागी मंत्रियों की तरह दगा दे जाते हैं।
सरकार के अनेक सोए हुए विभागों की तरह मलेरिया उन्मूलन विभाग भी आँखे मूँदकर सोता रहता है और मच्छर मक्खियों के हमजोली बनकर यहाँ-वहाँ भिनभिनाते फिरते हैं। इनकी कुंभकरणी नींद को गरजते, बरसते बादल भी नहीं तोड़ पाते। मलेरिया और डेंगू वगैरह अपना खेल खेल जाते हैं। डॉक्टरों पर लक्ष्मीदेवी की अतिरिक्त कृपा हो जाती है। प्रिय सखी, वैसे तो यह मानसून प्रीतम की तरह प्यारा लगता है, लेकिन जिस दिन किसी पियक्कड़ की तरह गर्जन के साथ निरंतर बरसता ही जाता है तो लोगों की जान का भी प्यासा बन जाता है। शहर की निकासी व्यवस्था की पोल खोल देता है। शहर की ताजा बनी सड़कों का हुलिया तक बिगाड़ देता है और बिजली आपूर्ति को ग्रहण लगा देता है। सरकार हर वर्ष घोषणा करती है कि मानसून की बरसात से लड़ने के लिए इस बार पुख्ता प्रबंध कर लिए गए हैं, लेकिन प्रकृति सरकार के सभी उपक्रमों पर पानी फेर देती है। शहर बाढ़ जैसी मार से कराहने लगता है। लोगों के घरों में घुसकर पानी बरबादी का तांडव करने लगता है। सुहाने मौसम की आस को कुव्यवस्था का ग्रहण लग जाता है। चरमराती पानी की निकासी व्यवस्था सरकारी फाइलों की सेहत में ही सिमटकर रह जाती है। योजनाओं पर करोड़ों रुपए का घोटाला कुछ लोगों के चेहरे की चमक का राज बन जाता है। मानसून पिया के घर की तरह प्रिय लगने लगता है और जी चाहता है कि चाँदी की तरह बरसता ही रहे। शामलाल बाबू, एसडीओ बाँकेलाल से मिन्नत करते हैं कि जनाब अपने लिए इस बार कार की व्यवस्था करते समय मेरे लिए एक स्कूटर का 'स्कोप' भी रखना, वरना बीवी घर में तानों की बौछार कर देगी कि इस हरे-भरे मानसून के मौसम में भी तुम सूखाग्रस्त स्थिति में हो। ऐसा पति लानत के काबिल होता है। फाइल में नोटिंग की शुरुआत तो उन्होंने ही की है।
हे प्यारी सखी, सरकार के सभी संबंधित विभाग इस बरसती बरसात में अपने हाथों को धोकर उनकी पवित्रता को चार चाँद लगाने की व्यवस्था करने लगते हैं, शर्म का चुल्लूभर पानी अब डूबकर मरने के लिए काफी नहीं है। मेरे अपने पतिदेव ने पिछले दिनों राज्य में सूखा पड़ने पर मेरी कलाई को सुशोभित करने के लिए चार सोने की चूड़ियों का प्रबंध किया था और वादा किया था कि अगर इस बार तगड़ा मानसून आया तो वे मेरे गले को हीरे के हार से सजा देंगे। हे न्यारी सखी, क्या मेरी यह मनोकामना पूर्ण हो पाएगी?