नौकरी की अर्जी और मिट्टी-मिलान
डॉ. एसके त्यागी
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आपका नाम? जी किसनलाल।-
किस वर्ग के हो? जी, मैं आरक्षित वर्ग का हूँ। सर्टिफिकेट भी लगाया है सर!-
शाबास! समझो आधा मैदान तो तुमने मार लिया! अच्छा किसनजी, आप बाहरी तो नहीं हो ना? कतई नहीं सर, मैं तो पैदाइश से ही हिन्दुस्तानी हूँ।-
हिन्दुस्तानी तो हम सब हैं, उसमें कौन-सी अनोखी बात है? ...मेरा मतलब था कि तुम बिहार, यूपी के तो नहीं हो? नहीं सर, मैं बिहार, यूपी का नहीं हूँ। और तो मेरी सात पुश्तों में से भी कोई बिहार, यूपी का नहीं रहा।-
गुड, गुड, तो हम यह मानें कि तुम यहीं के हो? यस सर - सौ फीसद। मैं बाकायदा इसी प्रदेश का हूँ।-
तब तो तुम्हारी मातृभाषा भी 'अबस' हुई। क्यों ठीक है, ना? निश्चित ही सर! यूँ तो मेरी औकात नहीं, पर कभी विधानसभा जाने का मौका आन ही पड़ा तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि शपथ 'अबस' भाषा में ही ग्रहण करूँगा।-
खैर छोड़िए इसे।... अब सब बातों की एक बात। ये बताओ कि तुम्हारी मिट्टी क्या हमारी कंपनी की मिट्टी से मैच करती है? मैं... समझा नहीं, सर।-
समझाता हूँ। समझाता हूँ। तुमने बचपन में कबड्डी तो जरूर खेली होगी? खूब खेली है सर, बल्कि मैं तो गाँव की कबड्डी टीम का कप्तान भी रहा हूँ।-
फिर तो जरूर जानते होगे कि तुम्हारे जिस्म पर चढ़ने वाली धूल किस मिट्टी की थी? सर, वैसे भूगोल मैंने आठवें दरजे तक पढ़कर छोड़ दिया था।... मगर जहाँ तक मेरा ख्याल है, वह हमारे गाँव की... काली मिट्टी थी।-
हूँ! और यह कंपनी... जो तुम्हारे गाँव की नहीं है, यह किस गारे से बनी है, किस मिट्टी से उठी है, ...पता है? जी, वह तो लाल मिट्टी है- शायद?-
शायद नहीं, बेशक लाल ही है!... अच्छा, तुमने इतिहास पढ़ा है? हाँ जी, पढ़ा तो है- थोड़ा थोड़ा।-
यक्ष ने पूछा था : सबसे बड़ा अजूबा क्या है? युधिष्ठिर की जगह मैं रहा होता, तो मालूम है क्या जवाब देता? नहीं सर, मैं मूढ़ भला क्या जानूँ!-
मैं कहता कि यह पता होते हुए कि तुम इस मिट्टी के लाल नहीं हो, तुम्हारी मिट्टी यहाँ की मिट्टी से 'मैच' नहीं करती, फिर भी नौकरी की उम्मीद में आवेदन कर देना ही दुनिया का सबसे महान आश्चर्य है। जी... जी सर।-
जी क्या? आप जा सकते हैं।