महज 14 साल की उम्र में विकलांगता का शिकार हुई विराली मोदी ब्यूटी कॉनटेस्ट में भाग लेती हैं तो वॉटर स्पोर्ट्स में भी पीछे नहीं हटती। विराली उन चंद लोगों में से हैं जिनके लिए विकलांगता कोई रुकावट नहीं है।
अकसर छोटी परेशानियां या शारीरिक कमजोरी लोगों को निराश कर देती हैं लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इसके खिलाफ न सिर्फ लड़ते हैं बल्कि माहौल बेहतर करने के लिए आवाज भी उठाते हैं। ऐसे ही आवाजों में एक आवाज है विराली मोदी की। विराली शारीरिक रूप से एक विकलांग है।
14 साल की उम्र में उन्हें लकवा मार गया था। बचपन से विराली एक मॉडल बनना चाहती थीं और इसी ख्वाहिश को लेकर वह अमेरिका से मुंबई आईं थी। मुंबई में इन्हें मलेरिया ने जकड़ लिया लेकिन इलाज में हुई देरी के चलते विराली कोमा में चली गई। लंबे इलाज के बाद विराली कोमा से बाहर तो आ गईं लेकिन व्हीलचेयर के साथ।
लेकिन मॉडल बनने का विराली का सपना तब भी नहीं छूटा। साल 2014 के मिस व्हीलचेयर कॉनटेस्ट में विराली पहली रनर-अप रहीं। आज विराली देश में विकलांगता के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए काम कर रही हैं। अपनी ऑनलाइन पिटीशन #MyTrainToo में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रेल मंत्री से अपील की है कि देश में ट्रेन को विकलांगों के लिए सहज बनाया जाए।
डीडब्ल्यू से बातचीत में विराली ने अपने जिदंगी के तमाम पहलुओं और काम के बारे में खुलकर चर्चा की।
विराली विकलांगता जैसा विषय कोई नया नहीं है। लेकिन आपने जिस तरीके से इस मुद्दे पर आवाज उठाई है वह काफी अलग है। आपको इसकी प्रेरणा कैसे मिली?
मुझे इस मुद्दे पर इसलिए आवाज उठानी पड़ी क्योंकि असल में विकलांगता को लेकर कोई ठोस आवाज नहीं उठाई जा रही है। अगर कोई कोशिश भी करता है तो उसे सुना नहीं जाता। यहां तक कि तीन बार मुझे रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ने को लेकर टोका गया, छेड़ा गया, परेशान किया गया। एक्सिेसबल इंडिया कैंपेन और विकलांगों के अधिकारों से जुड़ा विधेयक मेरे लिए एक उम्मीद थी लेकिन ये सफल नहीं हुआ। इसके बाद मैंने तय किया कि मैं देश भर के विकलांगों के अधिकारों और सुविधाओं के लिए काम करुंगी।
आप आज कई लोगों के लिए रोल मॉडल है। सोशल मीडिया पर आपके बड़े फैंस हैं। यह सब कहां से शुरू हुआ?
मैं हमेशा से एक मॉडल या अभिनेत्री बनने का सपना देखती थी। लेकिन इस बीमारी ने मुझे मेरा सपने पूरे करने नहीं दिया। लेकिन आज मुझे खुशी होती है कि मैं अपने इस काम के जरिए लोगों के लिए उम्मीद और प्रेरणा बन पा रही हूं। उनके लिए रोल मॉडल बन गई हूं। मुझे महूसस होता है कि मैं अपना सपना अलग ढंग से ही सही लेकिन जी पा रही हूं।
आपको विकलांग होने के चलते कभी कोई भेदभाव झेलना पड़ा?
हां, ऐसा कई बार हुआ। मुझे बहुत बार रेस्त्रां के अंदर जाने से रोक दिया जाता। जैसे कि मैंने पहले बताया कि ट्रेन में चढ़ते वक्त लोग मुझे परेशान करते, छेड़खानी करते। जिसके बाद मैंने #RampMyRestaurant और #MyTrainToo कैंपेन शुरू किया। मकसद है कि रेस्त्रां और ट्रेन में विकलांगों की सुविधा का ख्याल रखा जाए।
इन दोनों ऑनलाइन पिटिशन पर आपको लोगों का कैसा रिस्पांस मिल रहा है?
#MyTrainToo याचिका पर हमें दो लाख से अधिक दस्तखत मिले हैं। रेलवे अधिकारियों की मदद से दक्षिण भारत के छह स्टेशनों को विकलांगों की सुविधा मुताबिक बनाया गया है। ये एर्नाकुलम जक्शंन, कोच्चि, कोयंबटूर, चेन्नई, त्रिवेंद्रम, त्रिशूर के स्टेशन हैं। #RampMyRestaurant याचिका पर अब तक करीब एक लाख लोग दस्तखत कर चुके हैं। मेरी कोशिश है कि एनआरएआई (नेशनल रेस्त्रां एसोसिएशन ऑफ इंडिया) के साथ बात की जाए और नए और पुराने सभी रेस्त्रां के लिए रैंप बनाए जाएं, जो विकलांगों के लिए सुविधाजनक हों।
विकलांगता एक बेहद ही संवेदनशील विषय है, लोगों में इसे लेकर संवेदनशीलता कैसे पैदा की जा सकती है।
विकलांगता को मीडिया में सकारात्मक ढंग से दिखाने की जरूरत है। विकलांगों के अधिकारों को लेकर जागरुकता फैलाने का काम घर और स्कूलों से ही शुरू किया जाना चाहिए। मैं लोगों से कहना चाहूंगी कि किसी को कभी हार नहीं माननी चाहिए बल्कि जिन बातों पर उन्हें भरोसा है उसे लेकर लड़ना चाहिए, चाहे कोई साथ दे या न दे।