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Written By DW
Last Updated : शनिवार, 7 जून 2025 (10:37 IST)

दक्षिण पूर्व एशिया में राजनीति पर परिवारवाद का साया

दक्षिण-पूर्व एशिया की राजनीति में परिवारवाद पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। इस क्षेत्र के आधे से ज्यादा देशों में पूर्व नेताओं की संतानों के हाथ में सत्ता है

shadow of nepotism on politics in Southeast Asia
-डेविड हट
 
दक्षिण-पूर्व एशिया की राजनीति में परिवारवाद पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। इस क्षेत्र के आधे से ज्यादा देशों में पूर्व नेताओं की संतानों के हाथ में सत्ता है। दक्षिण-पूर्व एशिया का देश ब्रुनेई आज भी दुनिया के कुछ बचे हुए राजशाहियों में से एक है। इसके अलावा फिलीपींस के तत्कालीन राष्ट्रपति, फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर देश के पूर्व तानाशाह के बेटे हैं। देश का राष्ट्रपति भवन आज भी उन्हीं के कब्जे में है। इतना ही नहीं, देश की उपराष्ट्रपति सारा दुतेर्ते भी पूर्व राष्ट्रपति, रोड्रिगो दुतेर्ते की बेटी हैं।
 
यही हाल एशिया के दूसरे हिस्सों में भी दिखाई देता है। जैसे कंबोडिया में 2023 के मध्य में प्रधानमंत्री का पद, हुन-सेन से उनके बेटे हुन-मानेट को सौंप दिया गया जिसके साथ  हुन-सेन के 38 वर्षों का शासन तो खत्म हुआ लेकिन उनके देश की राजनीति में उनके परिवार का वर्चस्व बरकरार रहा। ऐसे ही, पिछले साल अगस्त में थाईलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री, थाकसिन शिनावात्रा की बेटी, पायेतोंगतर्न शिनावात्रा ने देश की सत्ता संभाली जिससे इस क्षेत्र में शिनावात्रा परिवार के प्रभाव को और अधिक मजबूती मिली।
 
लाओस के तत्कालीन प्रधानमंत्री, सोनएक्साय सिप्हानदोन भी 1990 के दशक में लाओस की राजनीति के प्रमुख शख्सियत, खामताय सिप्हानदोन के बेटे हैं। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति, प्राबोवो सुबियांतो, जो एक समय में तानाशाह, सुहार्तो के दामाद थे। वह भी पिछले साल सरकार का हिस्सा बने। इसके अलावा उपराष्ट्रपति, गिब्रन राकाबुमिंग राका भी पूर्व राष्ट्रपति, जोको विडोडो के बेटे हैं।
 
हालांकि, हाल में लॉरेंस वोंग ने सिंगापुर के नए प्रधानमंत्री का पद संभाला है। लेकिन वहां की राजनीति पर भी काफी लंबे समय से ली-कुआन-यू के परिवार का वर्चस्व रहा है।आसियान के आधे देशों में किसी ना किसी पूर्व नेता का वंशज सत्ता में है।
 
मलेशिया में बढ़ती चिंता
 
अब मलेशिया की कमजोर गठबंधन सरकार भी परिवारवाद के आरोपों का सामना कर रही है। पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री, अनवर इब्राहिम की बेटी, नुरुल इज्जा अनवर को सत्तारूढ़ पीपल्स जस्टिस पार्टी (पीकेआर) का उपाध्यक्ष चुना गया। जबकि उनकी पत्नी, वान-अजीजा-वान-इस्माइल पहले से ही सत्तारूढ़ गठबंधन, पकतन हरपन की प्रमुख हैं।
 
नुरुल की जीत वित्तमंत्री, रफीजी रमली के खिलाफ हुई जिन्हें पार्टी का बुद्धिजीवी माना जाता है। इस हार के बाद रफीजी और पर्यावरण मंत्री, निक-नाजमी-निक-अहमद, दोनों ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।
 
यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम के एशिया रिसर्च इंस्टिट्यूट मलेशिया के विशेषज्ञ, ब्रिजेट वेल्श ने डीडब्ल्यू से कहा, 'नुरुल खुद एक सुधारवादी नेता हैं। लेकिन जब बात परिवारवाद की आती है, तो यह उत्तराधिकारी के रूप में उनकी भूमिका को कमजोर कर देता है और यह अनवर सरकार की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचाता है। यह कोई हैरानी की बात नहीं कि विपक्ष इसे एक मुद्दा बना रहा है।' उन्होंने आगे कहा, 'पीकेआर अब अनवर परिवार के इर्द-गिर्द अधिक केंद्रित हो रही है जिससे पार्टी की पहुंच और प्रतिनिधित्व लंबे समय में कमजोर हो सकता है।'
 
परिवारवाद केवल सत्ताधारकों तक ही सीमित नहीं है। म्यांमार में आंग-सान-सू-की, जो देश के संस्थापक की बेटी हैं और लंबे समय तक लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का चेहरा थी। 2021 में सैन्य तख्तापलट से पहले तक वह देश के प्रधानमंत्री जैसी भूमिका में थी। दक्षिण-पूर्व एशिया मामलों के वरिष्ठ विश्लेषक, जोशुआ कुर्लांट्जिक ने डीडब्ल्यू को बताया, 'मुझे नहीं लगता कि हाल-फिलहाल में इन वंशों की सत्ता में कोई गिरावट आने वाली है।'
 
उन्होंने आगे कहा, 'जिन देशों में परिवारवाद सबसे प्रभावशाली हैं। वहां अब भी वंशवादी राजनीति काफी अहम भूमिका निभा रही है। और फिलीपींस जैसे देशों में तो 'वंश युद्ध' जैसे हालात देखे जा रहे हैं।'
 
मनीला में टकराव
 
पिछले महीने हुए फिलीपींस के चुनावों ने इस बढ़ते टकराव को उजागर कर दिया। जब कभी सहयोगी रहे मार्कोस और दुतेर्ते परिवार एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए। नीतियों और व्यक्तिगत मतभेदों के चलते उनका गठबंधन टूट गया था। फरवरी में सारा दुतेर्ते को सरकारी धन के दुरुपयोग के आरोप में प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स) ने महाभियोग के जरिये हटा दिया। इस महीने उनका संसदीय ट्रायल होने वाला है, जो भविष्य में उन्हें किसी भी सरकारी पद पर होने से रोक सकता है। अगर वह इस ट्रायल में बच जाती हैं, तो 2029 का राष्ट्रपति चुनाव संभवत उनके और राष्ट्रपति मार्कोस जूनियर के चचेरे भाई और हाउस के वर्तमान स्पीकर, मार्टिन रोमुयाल्देस के बीच हो सकता है।
 
युसुक इसहाक इंस्टिट्यूट के वरिष्ठ अतिथि शोधकर्ता, एरियस ए. अरुगाय ने डीडब्ल्यू को बताया, 'भले ही उन्हें दोषी ठहराया जा रहा है। लेकिन यह फिलीपींस की परिवारवादी राजनीति को नहीं रोक पाएगा। हालांकि, यह दुतेर्ते परिवार के लिए यह घातक साबित हो सकता है।
 
उन्होंने आगे कहा, 'जिसका मतलब होगा कि वह अपने परिवार के हितों की रक्षा नहीं कर पाईं और अपने विरोधियों के नए आरोपों के प्रति भी असहज हो जाएंगी। इस आरोप से बरी होना ना केवल उनके राजनीतिक जीवन के लिए है, बल्कि 2022 में दुतेर्ते परिवार ने जो सत्ता गंवाई थी, उसे फिर से हासिल करने का रास्ता भी है।'
 
लाओस में सत्तारूढ़ 'लाओ पीपल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी' अगले जनवरी में अपना राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करेगी जिसमें अगले पांच वर्षों के लिए नेतृत्व का चयन किया जाएगा। आशंका है कि प्रधानमंत्री सोनेक्साय सिप्हानदोन (जो दूसरा कार्यकाल चाहते हैं) और नेशनल असेंबली के अध्यक्ष, सायसोमफोन फोमविहाने (प्रभावशाली परिवार से) के बीच वंशवादी संघर्ष हो सकता है।
 
इसके अलावा दक्षिण-पूर्व एशिया में वियतनाम एक अपवाद बना हुआ है। हालांकि वहां कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एक दलीय शासन है, फिर भी कोई राजनीतिक परिवार अब तक राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्व नहीं जमा पाया है। हालांकि स्थानीय राजनीति में परिवारवाद की मौजूदगी साफ देखी जा सकती है।
 
सिंगापुर के युसुक इसहाक इंस्टिट्यूट के शोधकर्ता, खक जिआंग गुयेन ने डीडब्ल्यू से कहा, 'सत्तावादी प्रवृत्ति के बावजूद, वियतनामी राजनीति एक संतुलित सामूहिक नेतृत्व पर आधारित है। ऐसे संस्थागत प्रावधान मौजूद हैं, जो किसी एक व्यक्ति या परिवार के हाथ में अत्यधिक सत्ता केंद्रित होने से रोकते हैं।'
 
उन्होंने आगे कहा, 'कुछ 'प्रिंस्लिंग्स' (नेताओं की संतानों) ने अहम पद जरूर हासिल किए हुए हैं। लेकिन अभी तक कोई भी सत्ता के शीर्ष तक नहीं पहुंच पाया है।'
 
अधिक और अत्यधिक परिवारवाद
 
वॉशिंगटन के नेशनल वॉर कॉलेज के प्रोफेसर, जखरी अबूजा ने डीडब्ल्यू को बताया कि एक चिंताजनक रुझान सामने आया है कि राजनीतिक परिवार अब 'अत्यधिक परिवारवाद' में बदल रहे हैं। उनके अनुसार अब सिर्फ शीर्ष पद माता-पिता से बच्चों को नहीं सौंपे जा रहे हैं। बल्कि परिवार के कई सदस्य एक साथ अलग-अलग अहम सरकारी पद हासिल कर रहे हैं।
 
उदाहरण के तौर पर फिलीपींस के हालिया चुनावों में चार भाई-बहन एक साथ संसद में चुने गए यानी सदन का एक-तिहाई हिस्सा अब परिवारवाद से जुड़ा है। इसके अलावा 18 प्रांत अब अत्यधिक परिवारवाद के नियंत्रण में हैं।
 
कंबोडिया में यह प्रवृत्ति और भी गहरी है। वहां सत्ताधारी पार्टी के मंत्रियों के बच्चों के बीच शादियां तय कर दी जाती है ताकि सत्ता और मजबूत हो सके और सीमित हाथों में बनी रहे। जैसे प्रधानमंत्री, हुन-मानेत की पत्नी, श्रम मंत्रालय के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी की बेटी हैं। उनके भाई हुन-मैनी देश की नौकरशाही के मंत्री हैं। और उनके दूसरे भाई, हुन-मानीथ, सशस्त्र बल और सैन्य खुफिया एजेंसियों के प्रमुख हैं।
 
क्या परिवारवाद शासन की वापसी हानिकारक है?
 
विश्लेषक मानते हैं कि दक्षिण-पूर्व एशिया में परिवारवाद राजनीति की जड़ें बहुत गहरी हैं जिसकी वजह औपनिवेशिक काल से पहले के मुखिया-प्रथा वाले सामाजिक ढांचे, राजनीतिक दलों की कमजोरी, और भ्रष्टाचार-विरोधी उपायों की अपर्याप्तता हैं। परंपरागत रूप से देखा जाए तो परिवारवाद राजनीति लोकतांत्रिक जज्बे को कमजोर करती है और सत्तावादी प्रवृत्तियों को मजबूत करती है। अमेरिका की गैर-सरकारी संगठन, फ्रीडम हाउस की पिछले एक दशक की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण-पूर्व एशिया के अधिकांश देशों में लोकतंत्र में गिरावट आ रही है।
 
शोधकर्ताओं, एंड्रिया हैफनर और सोविंदा-पो ने फरवरी 2024 में प्रकाशित एक लेख में लिखा, 'वंशवादी सत्ता, लोकतंत्र का विस्तार नहीं बल्कि एक सत्तावादी निरंतरता का संकेत है।'
 
यूनिवर्सिटी ऑफ द फिलीपींस की मारिया डायना बेल्जा का मानना है कि जब पुरुष नेता सीमा-निर्धारण या गिरती लोकप्रियता के चलते पद छोड़ते हैं, तो महिला रिश्तेदारों को सामने लाया जाता है ताकि राजनीतिक जुड़ाव बना रहे। इस तरह से महिलाओं की संख्यात्मक भागीदारी कुछ हद तक बढ़ जाती है।
 
लेकिन इसके साथ बेल्जा यह भी कहती हैं, 'परिवारवाद के चलते हुए यह बढ़त महिलाओं की वास्तविक राजनीतिक भागीदारी को नहीं दर्शाती।'
 
अब तक दक्षिण-पूर्व एशिया में सिर्फ 7 महिलाओं ने ही सर्वोच्च पद संभाले हैं- कोराजोन एक्विनो, ग्लोरिया मैकापगल अरोयो, मेगावती सुकर्णोपुत्री, यिंगलक शिनावात्रा, आंग सान सू की, पाएटोंगटार्न शिनावात्रा और सिंगापुर की वर्तमान राष्ट्रपति, हलीमा याकूब। इनमें से केवल हलीमा याकूब ही हैं जिनकी सत्ता परिवारवाद के कारण नहीं हुई है। बाकी सभी किसी पूर्व नेता की बेटी, पत्नी या बहन हैं।
 
जैसे-जैसे परिवारवादी सत्ता मजबूत हो रही है। यह कहना मुश्किल है कि दक्षिण-पूर्व एशिया की राजनीति आगे चलकर कितनी समावेशी और जनभागीदारी वाली होगी। फिलहाल, पारिवारिक संबंध इस क्षेत्र की शासन व्यवस्था में गहराई से बसे हुए हैं जिससे प्रशासन, जवाबदेही और लोकतंत्र के भविष्य के प्रति गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
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