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Last Updated : सोमवार, 27 मई 2019 (11:55 IST)

ओजोन परत को नष्ट करने वाली अवैध गैसों के लिए चीन जिम्मेदार

ओजोन परत को नष्ट करने वाली अवैध गैसों के लिए चीन जिम्मेदार | ozone layer
अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत की स्थिति

अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करते हुए चीन के कुछ उद्योग धंधे बहुत बड़ी मात्रा में प्रतिबंधित गैसों को वातावरण में छोड़ रहे हैं। इनसे ओजोन की परत में छेद बड़ा हुआ है।
 
एक स्टडी में पाया गया है कि चीन के पूर्वोत्तर में लगे कई उद्योग धंधों से बहुत बड़ी मात्रा में ओजोन परत को बेधने वाली गैसें निकल रही हैं। 2013 से इस इलाके से प्रतिबंधित रसायन सीएफसी-11 के उत्सर्जन में करीब 7,000 टन की बढ़ोत्तरी हुई है। स्टडी में शामिल वैज्ञानिकों की इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट 'नेचर' जर्नल में छपी है।
 
प्रमुख लेखक और वैज्ञानिक मैट रिगबी ने बताया, "स्ट्रैटोस्फीयर के ओजोन लेयर को नष्ट करने का मुख्य दोषी सीएफसी ही होते हैं। ओजोन की परत हमें सूर्य के अल्ट्रावायलेट विकिरण से सुरक्षित रखने का काम करती है।" रिग्बी ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में पर्यावरण से जुड़ी केमिस्ट्री पर रिसर्च करते हैं।
 
सीएफसी का पूरा नाम है क्लोरो फ्लोरो कार्बन-11. 1970 और 1980 के दशक में इस गैस का व्यापक रूप से इस्तेमाल होता था। चीजों को ठंडा रखने वाले रेफ्रिजरेंट मटीरियल के रूप में और फोम इंसुलेशन में सीएफसी-11 से खूब काम लिया जाता था। लेकिन फिर 1987 में मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल हुआ जिसमें कई सीएफसी रसायनों और दूसरे औद्योगित एयरोसॉल रसायनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस प्रतिबंध का आधार कई ऐसे अध्ययन थे, जिनमें ऐसे रसायनों से ओजोन परत को नुकसान पहुंचने की बात कही गई थी। खासतौर पर, अंटार्कटिक और ऑस्ट्रेलिया के ऊपर धरती से 10 से 40 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ओजोन की रक्षा परत इन गैसों के कारण नष्ट हो रही थी।
 
प्रतिबंधों के लागू होने के समय से धीरे धीरे दुनिया भर में सीएफसी-11 के उत्सर्जन में कमी आती गई। यह कमी 2012 तक देखने को मिली। बाद में वैज्ञानिकों को पता चला कि 2012 के बाद से इसमें दर्ज हो रही कमी की दर आधी हो गई है। चूंकि यह गैस प्रकृति में नहीं पाई जातीं इसलिए वैज्ञानिक समुदाय यह पता लगाने की कोशिश में जुट गया कि आखिर सीएफसी की मात्रा फिर से कैसे बढ़ी। शुरुआती जांच में पूर्वी एशिया से इसके ताजा उत्सर्जन के सबूत मिले। लेकिन सटीक लोकेशन का पता नहीं लग पाया था।
 
अमेरिका की एमआईटी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और इस स्टडी के सह-लेखक रॉन प्रिन ने बताया, "हमारे मॉनिटरिंग स्टेशन असल में संभावित स्रोतों से काफी दूर दराज के इलाकों में लगे थे।" बीते साल आई पर्यावरण जांच एजेंसी की रिपोर्ट में चीनी फोम फैक्ट्रियों की ओर इशारा किया गया, जो कि बीजिंग के पास के तटीय इलाकों में बसी थीं। इन पर संदेह तब और गहरा गया जब प्रशासन ने इनमें से कुछ फैक्ट्रियां अचानक बिना कोई वजह बताए बंद करवा दीं।
 
जांच को आगे बढ़ाने के लिए पर्यावरण वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम वहां पहुंची। उन्होंने जापान और ताइवान के निगरानी केंद्रो से अतिरिक्त डाटा इकट्ठा किया। स्टडी में शामिल एक अन्य लेखक चीन के सुनयुंग पार्क ने कहा, "इन औद्योगिक इलाकों से आई हवा के कारण हमारे माप में 'उभार' दिखाई दिए।"  इन रुझानों को परखने के लिए टीम ने कई कंप्यूटर टेस्ट किए और अंत में यह पुष्ट रूप से पता चला कि सीएफसी-11 के अणु कहां से आ रहे थे।
 
जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी इस स्टडी की अहम भूमिका होगी। लंदन के इंपीरियल कॉलेज की प्रोफेसर योआना हेग का मानना है, "लंबे समय तक टिकने वाली ग्रीन हाउस गैस के रूप में सीएफसी की भूमिका काफी बड़ी हो जाती है।"  दो दशक पहले सीएफसी गैसों का इंसान के कारण होने वाली ग्लोबल वॉर्मिंग में करीब 10 फीसदी योगदान था। जलवायु परिवर्तन के लिहाज से यह कार्बनडायोक्साइड या मीथेन से ज्यादा बुरी है। 21वीं सदी की शुरुआत में ओजोन परत का छेद सबसे बड़ा हो चुका था। तब पांच फीसदी घट चुकी इस परत को घटने से बचाने की तमाम कोशिशें हुईं। नतीजतन, अब धरती के दक्षिणी ध्रुव के ऊपर का "ओजोन छिद्र" छोटा होता दिख रहा है।
 
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