वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि पानी के लिए हिमालय की बर्फ के पिघलने पर निर्भर करोड़ों लोग इस साल पानी की भारी कमी का सामना कर सकते हैं। जानकार इसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी हालत इसलिए बनी है क्योंकि इस साल ऐतिहासिक रूप से काफी कम बर्फ गिरी। सोमवार को जारी की गई इस रिपोर्ट में बताया गया कि पिघलती हुई बर्फ उन 12 प्रमुख नदी प्रणालियों में से करीब एक चौथाई प्रणालियों के पानी के कुल प्रवाह का स्रोत है, जिनका उद्गम एशिया के हिमालय में होता है।
रिपोर्ट के लेखक शेर मोहम्मद ने कहा, "यह शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और नदियों के निचली तरफ रहने वाले समुदायों के लिए खतरे की घंटी है।" शेर मोहम्मद नेपाल स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) में काम करते हैं। उन्होंने आगे कहा, "बर्फ के कम जमा होने और उसके स्तर के ऊपर-नीचे होने से पानी की कमी का बहुत गंभीर जोखिम खड़ा हो रहा है, विशेष रूप से इस साल।"
बहुत बड़ी आबादी की जरूरत
आईसीआईएमओडी के मुताबिक हिमालय की बर्फ इस इलाके में करीब 24 करोड़ लोगों के लिए पानी का एक बेहद जरूरी स्रोत है। इनके अलावा नीचे की घाटियों में रहने वाले अतिरिक्त 1.65 अरब लोगों के लिए भी यह एक आवश्यक स्रोत है। वैसे तो बर्फ का स्तर हर साल कम, ज्यादा होता रहता है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश अनियमित हो गई है और मौसम का स्वरूप भी बदल रहा है।
रिपोर्ट में स्नो पर्सिस्टेंस, यानी बर्फ के जमीन पर रहने के समय, को भी मापा गया और पाया गया कि इस साल हिंदू कुश और हिमालय प्रांत में इसका स्तर सामान्य से लगभग पांचवें हिस्से तक गिर गया। मोहम्मद ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, इस साल की 'स्नो पर्सिस्टेंस' (सामान्य से 18।5 प्रतिशत नीचे) पिछले 22 सालों में दूसरे सबसे निचले स्तर पर थी। यह 2018 के 19 प्रतिशत के रिकॉर्ड निचले स्तर से बस जरा सी ज्यादा थी।
नेपाल के अलावा अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार और पाकिस्तान जैसे देश भी आईसीआईएमओडी के सदस्य हैं। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि आईसीआईएमओडी के "विचार और अनुमान पानी की धाराओं के बहाव के समय और तीव्रता में बड़े बदलाव का संकेत दे रहे हैं।"
भारत, अफगानिस्तान समेत कई देशों में चिंताजनक स्थिति
रिपोर्ट में यह भी कहा गया, पानी की मौसमी उपलब्धता सुनिश्चित करने में बर्फ की विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका है। यह संस्था इस इलाके में बर्फ की दो दशकों से भी ज्यादा से निगरानी कर रही है और उसका कहना है कि 2024 में एक महत्वपूर्ण विसंगति देखी गई है।
संस्था ने भारत की नदी प्रणाली में सबसे कम स्नो पर्सिस्टेंस पाया, जो औसत से 17 प्रतिशत नीचे था। 2018 में यह आंकड़ा 15 प्रतिशत पर था, यानी ताजा स्थिति पहले से बदतर है। अफगानिस्तान की हेलमंद नदी प्रणाली में दूसरा सबसे निचला स्नो पर्सिस्टेंस का स्तर पाया गया, जो सामान्य से 32 प्रतिशत नीचे है।
सिंधु नदी प्रणाली में स्तर सामान्य से 23 प्रतिशत नीचे और ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में स्तर सामान्य से 15 प्रतिशत नीचे पाया गया। आईसीआईएमओडी की वरिष्ठ क्रायोस्फियर विशेषज्ञ मिरियम जैक्सन ने अधिकारियों से अपील की है कि वो बाढ़ की संभावना से निपटने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठाएं।
सीके/एए (एएफपी)