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Last Modified: मंगलवार, 17 जुलाई 2018 (11:17 IST)

क्या चीन "हुई मुसलमानों" को दबा रहा है?

क्या चीन
इन दिनों चीन में रह रहे मुसलमानों को डर सता रहा है। डर है कि कहीं उनकी अगली पीढ़ी इस्लाम से किनारा न कर ले। एक सरकारी आदेश के मुताबिक मुस्लिम परिवारों के बच्चे अब इस्लाम और कुरान के पाठ पढ़ने मस्जिदों में नहीं जा सकते।
 
 
स्थानीय लोगों ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में बताया कि सत्ता में काबिज कम्युनिस्ट पार्टी, देश में इस्लाम को खत्म करने पर तुली हुई है। एक आदेश के मुताबिक, कम्युनिस्ट पार्टी ने धार्मिक गतिविधियों में 16 वर्ष से कम उम्र के नाबालिगों के धार्मिक अध्ययन पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध चीन के दक्षिणी प्रांत लिंक्सिया में लागू किया गया है, जो अब तक मुस्लिमों को स्वतंत्रता देने के मामले में काफी आगे रहा है। यहां बड़ी संख्या में "हुई मुस्लिम" रहते हैं।
 
 
इसके पहले चीन ने देश के शिनचियांग प्रांत में रहने वाले उईगुर मुसलमानों के साथ भी सख्ती बरती थी। धार्मिक कट्टरवाद और अलगाववाद का हवाला देते हुए सरकार ने इलाके में रहने वाले उईगुर मुसलमानों को री-एजुकेशन कैंपों में भेजा, उन पर सख्त पाबंदियां लगाई। अब ऐसा ही डर "हुई मुसलमानों" को सता रहा है। लिंक्सिया में रहने वाले एक इमाम ने कहा, "अब हवा का रुख बदल रहा है। डर लगता है कि कही सरकार इस क्षेत्र में भी शिनचियांग मॉडल ना लागू कर दे।"
 
 
स्थानीय प्रशासन ने मस्जिदों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या को कम कर दिया है। साथ ही इमामों के भी सर्टिफिकेशन देने के अधिकारों को सीमित किया गया है। मस्जिदों को राष्ट्रीय झंडा फहराने का आदेश दिया गया है। साथ ही प्रार्थना के वक्त होने वाली आवाज को भी कम करने के आदेश दिए गए है। देश की तकरीबन 355 मस्जिदों से लाउडस्पीकर भी हटा दिए गए हैं। एक इमाम कहते हैं कि प्रशासन यहां सेक्युलर मुस्लिम चाहते हैं, जिनकी जड़ें इस्लाम से जुड़ी हुई न हों। इन दिनों बच्चों को धर्म पर विश्वास करने से मना करना सिखाया जा रहा है।  
 
 
अमूमन करीब 1000 लड़के कुरान के पाठ पढ़ने के लिए ग्रीष्म और शीत सत्र में इन मस्जिदों में आते थे। अब उनके परिसर में आने की पाबंदी है। यहां की मस्जिदों की कक्षाएं अरबी किताबों से भरी हुई हैं लेकिन इन्हें पढ़ने वाले अब नहीं है। आधिकारिक तौर पर 16 साल की उम्र से ज्यादा वाले महज 20 लोगों ने ही स्वयं को पंजीकृत कराया है। मां-बाप से कहा जा रहा है कि कुरान के पाठों पर लगे इस प्रतिबंध का लाभ उनके बच्चे को ही मिलेगा। प्रशासन का तर्क है कि इस प्रतिबंध के बाद बच्चे अधिक सेक्युलर कोर्स पर ध्यान दे पाएंगे।
 
 
एक मस्जिद में केयरटेकर मा लेन कहते हैं, "हम डरे हुए हैं, काफी डरे हुए हैं। अगर ऐसा चलता रहा तो हमारी परंपराएं एक-दो पीढ़ी के बाद खत्म हो जाएंगीं।" उन्होंने बताया कि इंस्पेक्टर उनकी मस्जिदों को रोजाना चेक करने आता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कौन पढ़ने आ रहा है। कौन नहीं। कुछ इमामों ने गुपचुप तरीकों से बच्चों को पढ़ाने की तरकीबें निकाली लेकिन फिर इन्हें छोड़ दिया क्योंकि ऐसा करना संभव नहीं था।
 
 
साल 2012 के जनसंख्या आंकड़ों के मुताबिक, देश में हुई मुसलमानों की संख्या तकरीबन 1 करोड़ है। लिंक्सियां में हुई मुसलमानों की बहुलता है। इस क्षेत्र से उनकी सांस्कृतिक जड़े जुड़ी हुई हैं। लेकिन जनवरी में जारी किए गए आदेश मुताबिक अब कोई भी व्यक्ति, संस्था नाबालिग बच्चों को मस्जिद और कुरान के पाठों को पढ़ने के लिए सहयोग नहीं देगा।
 
 
कुछ इमाम मानते हैं, "इस्लाम में बच्चों को शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है। इसके मुताबिक जैसे ही बच्चा बोलना सीखता है हम उसे सच का पाठ पढ़ाते हैं।" स्थानीय प्रशासन इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट मुताबिक, "चीन में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। सरकार वैचारिक और धार्मिक मसलों पर अपने नियम-कायदे थोप रही है।"
 
 
एए/एनआर (एएफपी)
 
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