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गरम जलेबी

Jalebi Poetry | गरम जलेबी
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करना नहीं बहाना पापा।
आज जलेबी लाना पापा।।

रोज सुबह कह कर जाते हैं,
आज जलेबी ले आएंगे।

दादा-दादी मम्मी के संग,
सभी बैठ मिलकर खाएंगे।

किंतु आपकी बातों में अब,
दिखता नहीं ठिकाना पापा।

आज जलेबी लाना पापा।

इसी जलेबी में मम्मी की,
बीमारी का राज छुपा है।

जब तक खाई गरम जलेबी,
जब तक अच्छा स्वास्थ्य रहा है।

एक तश्तरी गरम जलेबी,
मां को रोज खिलाना पापा।

आज जलेबी लाना पापा।।

जब-जब खाती गरम जलेबी,
घुर्र-घुर्र सो जाती दादी।

वैसे तो कहती रहती है,
नींद न आती, नींद न आती।

कितना अच्छा वृद्ध जनों को,
नींद मजे की आना पापा।

आज जलेबी लाना पापा।

जैसे पर्वत जंगल-जंगल,
हमको मिलती शुद्ध हवा है।

वैसे ही तो गरम जलेबी,
सौ दवाओं की एक दवा है।

गरम जलेबी में होता है,
मस्ती भरा खजाना पापा।

आज जलेबी लाना पापा।।

दादाजी को गरम जलेबी,
खाना बहुत-बहुत भाता है।

खाकर खुशियों का गुब्बारा,
आसमान में उड़ जाता है।

हर दिन गरम जलेबी लाकर,
अपना धर्म निभाना पापा।

आज जलेबी लाना पापा।
आज जलेबी लाना पापा।