होली पर कविता : रंगों की बमबारी है
छुपों न घर में, बाहर आओ।
अपने ऊपर रंग डलवाओ।
आफत आज तुम्हारी है
रंगों की बमबारी है।
आद्या, वंशी, गुल्ली दी ने,
कई डिब्बों में रंग घोले हैं।
रुद्र, अमित पिचकारी भरकर,
चिल्लाते ओले-ओले हैं।
हो हल्ला है, धक्कम मुक्की,
हुडदंगी अब जारी है।
रंग गुलाल उड़े अम्बर में,
खुशहाली छाई घर-घर में।
लोग नाचते हैं मस्ती में,
रंग बिखरे हैं डगर-डगर में।
तिलक लगाकर गले मिलें झट,
सबको चढ़ी खुमारी है।
गुझिया खुरमा बतियां खाते,
रसगुल्लों के मजे उड़ाते।
बड़े बुजुर्गों के माथे पर
रंग गुलाल का तिलक लगाते।
मस्ती के घोड़ों पर बच्चों,
ने की खूब सवारी है।
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