हास्य-कविता : कारवां गुजर गया
- हरनारायण शुक्ला
अरसा हुआ कुछ लिखा नहीं,
लिखने बैठा कुछ सूझा नहीं,
जेहन में जैसे जंग लग रहा,
क्या उम्र का असर है जो हो रहा?
विषय अनेक लिखने को,
शब्दों की तो बात नहीं,
पर लिखते कैसे हैं कविता,
कुछ भी मुझको याद नहीं।
अलंकार, छंद क्या होते हैं,
बतलाए मुझको कोई,
तुकबंदी कैसे करते हैं,
समझा दे मुझको कोई।
पंत निराला बच्चन जी सा,
कविता मैं भी लिख डालूं,
हाला प्याला की गाथा,
मधुशाला ही लिख डालूं।
युवा दिलों को छूने वाले,
कवि नीरज तो नहीं रहे,
पर याद रहेगी उनकी पंक्ति,
'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे'।
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