बाल कविता: बचपन गीत सुनाता चल
हंसता और मुस्कुराता चल।
मिले राह में जो निर्मल,
उनको गले लगाता चल।
जीवन कांटों का जंगल,
बढ़ता चल सुलझाता चल।
यहां नहीं कुछ अटल-अचल,
ममता मोह हटाता चल।
अंधकार मिलता पल-पल
एक मशाल जलाता चल।
सत्य अहिंसा का प्रतिफल,
इज्जत, मान कमाता चल।
प्रश्न न जो कर पाएं हल,
उत्तर उन्हें बताता चल।
चलेगा चलने वाला कल,
तू पद चिह्न बनाता चल।
मिले तिरंगे से संबल,
एक झंडा फहराता चल।
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)