गुरुवार, 21 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. करवा चौथ
  4. karva chauth vrat in Hindi

करवा चौथ : पौराणिक इतिहास, पूजन विधि, महत्व, कथा, मंत्र और इस बार के संयोग

करवा चौथ :  पौराणिक इतिहास, पूजन विधि, महत्व, कथा, मंत्र और इस बार के संयोग - karva chauth vrat in Hindi
करवाचौथ' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' यानी 'मिट्टी का बरतन' और 'चौथ' यानि 'चतुर्थी'। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
 
 
करवाचौथ का इतिहास
 
बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
 
ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
 
मेहंदी का महत्व 
 
मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि गहरी रची मेहंदी आपके पति की लंबी उम्र तथा अच्छा स्वास्थ्य भी दर्शाती है। मेहंदी का व्यवसाय त्योहारों के मौसम में सबसे ज्यादा फलता-फूलता है, खासतौर पर करवा चौथ के दौरान। इस समय लगभग सभी बाजारों में आपको भीड़-भाड़ का माहौल मिलेगा। हर गली-नुक्कड़ पर आपको मेहंदी आर्टिस्ट महिलाओं के हाथ-पांव पर तरह-तरह के डिजाइन बनाते मिल जाएंगे।
 
करवाचौथ पूजन
 
इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है।
 
भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की।
 
करवा का पूजन
 
करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। यथास्थिति अनुपलब्धता में मिट्टी के करवे से भी पूजन का विधान है। ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के पूजन के दौरान ही सजे-धजे करवे की टोंटी से ही जाड़ा निकलता है। करवा चौथ के बाद पहले तो रातों में धीरे-धीरे वातावरण में ठंड बढ़ जाती है और दीपावली आते-आते दिन में भी ठंड बढ़नी शुरू हो जाती है।
 
करवा चौथ व्रत विधान
 
व्रत रखने वाली स्त्री सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान एवं संध्या आदि करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर यह कहे कि मैं अपने सौभाग्य एवं पुत्र-पौत्रादि तथा निश्चल संपत्ति की प्राप्ति के लिए करवा चौथ का व्रत करूंगी। यह व्रत निराहार ही नहीं, अपितु निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय और गौरा का पूजन करने का विधान है।
 
करवा चौथ व्रत पूजन 
 
चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए।
 
करवा चौथ व्रत की पूजन विधि
 
सायं बेला पर पुरोहित से कथा सुनें, दान-दक्षिणा दें। तत्पश्चात रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय हो जाए तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ्य दें, आरती उतारें और अपने पति का दर्शन करते हुए पूजा करें। इससे पति की उम्र लंबी होती है। तत्पश्चात पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ें।
 
पूजन हेतु मंत्र
 
'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें। करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
 
चांद को अर्घ्य 
 
जब चांद निकलता है तो सभी विवाहित स्त्रियां चांद को देखती हैं और सारी रस्में पूरी करती हैं। पूजा करने बाद वे अपना व्रत खोलती हैं और जीवन के हर मोड़ पर अपने पति का साथ देने वादा करती हैं। चंद्रदेव के साथ-साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अगर इन सभी की पूजा की जाए तो माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं। 
 
रात 8.14 बजे के बाद दिखेगा चांद
 
अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के लिए सुहागिनें मंगलवार को करवा चौथ का व्रत रखेगी, लेकिन व्रत का पारण करने के लिए उन्हें चंद्रोदय का लंबा इंतजार करना पड़ेगा। स्थानीय समय अनुसार मंगलवार रात 8:14 बजे के बाद ही महिलाएं उगते चांद को अर्घ्य देकर सुहाग की दीर्घायु की मंगलकामना कर सकेगी।
 
इस बार विशेष फलदायी होगा करवाचौथ
 
इस बार करवाचौथ का व्रत और पूजन बहुत विशेष है। ज्योतिषों के मुताबिक इस बार 70 साल बाद करवाचौथ पर ऐसा योग बन रहा है। रोहिणी नक्षत्र और मंगल एक साथ: इस बार रोहिणी नक्षत्र और मंगल का योग एक साथ आ रहा है। ज्योतिष के मुताबिक यह योग करवाचौथ को और अधिक मंगलकारी बना रहा है। इससे पूजन का फल हजारों गुना अधिक होगा।
 
 करवा चौथ कथा 

करवाचौथ कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।
 
परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
ये भी पढ़ें
करवा चौथ पर प्रचलित हैं यह 4 लोककथाएं, अवश्य पढ़ें...