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History of karwa chauth : करवा चौथ व्रत की महिमा, नियम और इतिहास

History of karwa chauth : करवा चौथ व्रत की महिमा, नियम और इतिहास - History of Karwa chauth
ये व्रत सुहागिन औरतों के अलावा वे लड़कियां भी रखती हैं जिनकी शादी होने वाली हो या फिर शादी की उम्र हो गई हो। ये व्रत निर्जला रखा जाता है और शाम के समय शुभ मुहूर्त में पूजा कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। जानिए इस व्रत की महिमा, नियम और इतिहास…
 
करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी। भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए।
ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर इस युद्ध में देवताओं की जीत निश्चित हो जाएगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी ने स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की।
 
उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
 
करवा चौथ व्रत का महत्व: इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा का विधान है। व्रत वाले दिन कथा सुनना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शान्ति,समृद्धि आती है और सन्तान सुख मिलता है। महाभारत में भी करवा चौथ के महात्म्य के बारे में बताया गया है।
 
भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ की कथा सुनाते हुए कहा था कि पूरी श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में विजय हासिल की।
 
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'नमस्त्यै शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभा। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।'
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