हे प्रभो! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए । शीघ्र सारे अवगुणों को, दूर हमसे कीजिए ॥
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बनें । ब्रह्मचारी धर्म रक्षक! वीर व्रतधारी बनें ॥
परमात्मा की प्रतिमा के सामने देखते ही रहें... देखते ही रहें... प्रशमरस-निमग्न परमात्मा की आँखों में निहारते रहें... मौन... खामोश होकर... उन आँखों की अथाह गहराई में डूब जाएँ!
नया आनंद, नई ताजगी की अनुभूति होगी। इसके बाद धूप एवं दीपक द्वारा परमात्मा की पूजा करें। यदि पहले से दीपक जलता हो... धूपदाने में धूप हो, तो नया दीपक न जलाएँ... न ही अगरबत्ती जलाएँ... जो है, उसी से धूप व दीपक पूजा कर लें। चँवर डुलाना हो तो डुला सकते हैं।
अब यदि आप चावल का बटुवा साथ लाए हों तो प्रभुजी के समक्ष पाटे पर सुंदर स्वस्तिक रचाना चाहिए। जिसका क्रम निम्न है- पहले स्वस्तिक रचाइए, फिर तीन ढेरी बनाइए, फिर सिद्धशिला (चाँद पर बिन्दु) बनाइए। पतली धारवाला चंद्र सिद्धशिला का एवं बिन्दु आत्मा का प्रतीत है।
स्वस्तिक जैसे मांगलिक हैं, शुकुन है.. उसी तरह उसके चार खाने, चार गति (देव, मनुष्य, तिर्यंच व नरक गति) के प्रतीक हैं। हमें इससे छुटकारा चाहिए... इसलिए चावल की तीन ढेरी रचाकर हम प्रभु से ज्ञान-दर्शन-चारित्र की कामना व्यक्त करते हैं। ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना द्वारा हमारी आत्मा को सिद्धशिला पर पहुँचाना है। इसी भावना को लेकर हमें स्वस्तिक रचना है।
यदि चढ़ाने के लिए फल एवं मिठाई लाए हों, तो सिद्धशिला पर फल एवं स्वस्तिक पर मिठाई (नैवेद्य) रखें।
अब यदि समय हो... तो हमें परमात्मा का चैत्यवंदन (स्तवना) करना चाहिए। अन्यथा तीन खमासमण देकर परमात्मा को प्रणाम करके बाहर निकल सकते हैं।