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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

तिरसठ शलाका पुरुष

trishasti shalaka purush तिरसठ शलाका पुरुष
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दुनिया के सर्वाधिक प्राचीन जैन धर्म और दर्शन को श्रमणों का धर्म कहते हैं। कुलकरों की परम्परा के बाद जैन धर्म में क्रमश: चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ वासुदेव और नौ प्रति वासुदेव मिलाकर कुल 63 पुरुष हुए हैं। 24 तीर्थंकरों का जैन धर्म और दर्शन को विकसित और व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

चौबीस तीर्थंकर : (1) ऋषभ, (2) अजित, (3) संभव, (4) अभिनंदन, (5) सुमति, (6) पद्मप्रभ, (7) सुपार्श्व, (8) चंद्रप्रभ, (9) पुष्पदंत, (10) शीतल, (11) श्रेयांश, (12) वासुपूज्य, (13) विमल, (14) अनंत, (15) धर्म, (16) शांति, (17) कुन्थु, (18) अरह, (19) मल्लि, (20) मुनिव्रत, (21) नमि, (22) नेमि, (23) पार्श्वनाथ और (24) महावीर।

बारह चक्रवर्ती : (1) भरत, (2) सगर, (3) मघवा, (4) सनतकुमार, (5) शांति, (6) कुन्थु, (7) अरह, (8) सुभौम, (9) पदम, (10) हरिषेण, (11) जयसेन और (12) ब्रह्मदत्त।

नौ बलभद्र : (1) अचल, (2) विजय, (3) भद्र, (4) सुप्रभ, (5) सुदर्शन, (6) आनंद, (7) नंदन, (8) पदम और (9) राम।

नौ वासुदेव : (1) त्रिपृष्ठ, (2) द्विपृष्ठ, (3) स्वयम्भू, (4) पुरुषोत्तम, (5) पुरुषसिंह, (6) पुरुषपुण्डरीक, (7) दत्त, (8) नारायण और (9) कृष्ण।

नौ प्रति वासुदेव : (1) अश्वग्रीव, (2) तारक, (3) मेरक, (4) मुध, (5) निशुम्भ, (6) बलि, (7) प्रहलाद, (8) रावण और (9) जरासंघ।

उक्त शलाका पुरुषों के द्वारा भूमि पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के दर्शन की उत्पत्ति और उत्थान को माना जाता है। उक्त में से अधिकतर की ऐतिहासिक प्रामाणिकता सिद्ध है। जैन भगवान राम को बलभद्र मानते हैं और भगवान कृष्ण की गिनती नौ वासुदेव में करते हैं। उक्त तिरसठ शलाका पुरुषों के इतिहास को क्रमानुसार लिखने की आवश्यकता है। इति। नमो अरियाणं।