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  4. after rath yatra, there will be a aapadh darshan of lord jagannath in gundicha temple, join the bahuda yatra
Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 27 जून 2025 (12:04 IST)

रथयात्रा के बाद गुंडिचा मंदिर में होंगे भगवान जगन्नाथ के आपड़ दर्शन, बहुड़ा यात्रा में हों शामिल

jagannath rathyatra
Jagannath Rath Bahuda yatra 2025: प्रतिवर्ष आषाढ़ माह की द्वितीया को पुरी के जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकलती है। 27 जून की रथयात्रा में आप शामिल नहीं हो पाएं हैं तो गुंडिचा मंदिर में आपड़ दर्शन के बाद बहुड़ा रथयात्रा में शामिल हो सकते हो। यह यात्रा आषाढ़ माह की दशमी के दिन निकलेगी। यानी 27 जून से 05 जुलाई के बीच आप आपड़ दर्शन करने के बाद आप बहुड़ा यात्रा में शामिल हो सकते हैं। इस दिन गुंडिचा मंदिर से भगवान तीनों रथों पर सवार होकर पुरी लौटते हैं. रास्ते तीनों रथों को मौसी के मंदिर में 'पोडा पिठा' का भोग लगाया जाता है।
 
आपड़ दर्शन: दरअसल, आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को यात्रा निकलकर गुंडीजा मंदिर जाएगी। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा 9 दिनों के लिए विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है। गुंडीचा मंदिर को 'गुंडीचा बाड़ी' भी कहते हैं। यहीं पर देवताओं के इंजीनियर माने जाने वाले विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा का निर्माण किया था। गुंडिचा भगवान की भक्त थीं। मान्यता है कि भक्ति का सम्मान करते हुए भगवान हर साल उनसे मिलने जाते हैं। यहां पर प्रभु जगन्नाथ जी 9 दिनों तक विश्राम करते हैं तब तक के लिए वे भक्तों को दर्शन देते हैं। इस दर्शन को आपड़ दर्शन कहते हैं। इसके बाद भगवान पुन: अपने धाम लौटते हैं।
 
बहुड़ा यात्रा: यदि आप 27 जून को जगन्नाथ यात्रा में शामिल नहीं हो पाएं हैं तो 5 जुलाई को भगवान जगन्नाथ की बहुड़ा यात्रा में शामिल हो सकते हैं। आषाढ़ माह की दशमी को सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं। जगन्नाथ पुरी में भक्त भगवान के रथ को खींचते हुए 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं और 9वें दिन वापस लाया जाता है। 
 
नौवें दिन रथयात्रा पुन: भगवान के धाम आ जाती है। जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। देवी-देवताओं के लिए मंदिर के द्वार अगले दिन एकादशी को खोले जाते हैं, तब विधिवत स्नान करवा कर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देव विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।
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