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Last Updated : सोमवार, 5 सितम्बर 2016 (11:48 IST)

क्या है 4G तकनीक, पढ़ें संपूर्ण जानकारी...

क्या है 4G तकनीक, पढ़ें संपूर्ण जानकारी... - What is 4G
- जितेन्द्र जैन
 
थ्री जी की तुलना में 4G के अधिक तेज होने का कारण आर्थोगोनल फ्रिक्वेंसी-डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग (ओएफडीएम) है। यह जटिल लगती है लेकिन यह वही तकनीक है, जो कि वाईफाई, एडीएसआई ब्रॉडबैंड, डिजिटल टीवी और रेडियो में प्रयोग की जाती है।
 
ओएफडीएम एक ऐसी तकनीक है, जो कि एक समान रेडियो फ्रिक्वेंसी पर बहुत सारे डाटा को संकुचित कर देता है। इसी के साथ यह लेटेंसी और इंटरफियरेंस को कम कर देती है। डाटा को विखंडित कर दिया जाता है और इसे समानांतर फ्रिक्वेंसी के छोटे-छोटे हिस्सों में भेजा जाता है और इस कारण से नेटवर्क की क्षमता बढ़ जाती है।
मल्टीपल-इनपुट और मल्टीपल-आउटपुट या एमआईएमओ एक और कारण है जिसके चलते गति तेज हो जाती है। सामान्य रूप से यह बहुत से एंटीनाज को दोनों ही स्थान पर ट्रांसमीटर और रिसीवर एंड लगाया जाता है जिससे संचार के प्रदर्शन में सुधार होता है। 
 
थ्री जी के बाद आने वाली 4G वायरलेस मोबाइल टेलीकम्युनिकेशंस तकनीक की चौथी पीढ़ी है। एक 4G सिस्टम के तहत आपको उन क्षमताओं को उपलब्ध कराना होता है, जो कि आईटीयू (इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन) ने आईएमटी उन्नत (इंटरनेशनल मोबाइल टेलीकम्युनिकेशंस-एडवांस्ड) में वर्णित की हैं। इन क्षमताओं में संभावित और वर्तमान अनुप्रयोगों में सुधरी हुई मोबाइल वेब एक्सेज, आईपी टेक्नोफोनी, गेमिंग सर्विसेज, हाई डिफीनिशन मोबाइल टीवी, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, थ्री डी टेलीविजन शामिल हैं। 
 
4G एलटीई क्या है?  : एलटीई लांग टर्म इवोल्यूशन का संक्षिप्त रूप है और एलटीई एक ऐसी 4G संचार स्तर है जिसे थर्ड जेनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (3 जीपीपी) द्वारा विकसित किया गया था और इसे टेन एक्स की स्पीड के थ्री जी नेटवर्क्स की मोबाइल डिवाइसेज के लिए उपलब्ध कराया जाता है जिनका स्मार्टफोन्स, टेबलेट्‍स, नेटबुक्स, नोटबुक्स और वायरलेस हॉटस्पॉट्स में उपयोग किया जाता है। फोर जी तकनीकों को आईपी आधारित वॉयस, डाटा और मल्टीमीडिया स्ट्रीमिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो कि कम से कम 100 एम बिट पर सेकंड की दर पर और कम से कम 1 जी बिट पर सेकंड की गति से उपलब्ध कराई जाती है। 
 
4G एलटीई उन बहुत सारी प्रतियोगी स्टैंडर्ड्स में से एक है, जो कि अल्ट्रा मोबाइल ब्रॉडबैंड (यूएमबी) और वाईमैक्स (आईईईई 802.16) के लिए प्रतियोगिता करती हैं। सभी प्रमुख सेल्यूलर प्रोवाइडर्स ने 4G तकनीकों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, जो कि वेरीजॉन और एटीएंडटी ने 4G एलटीई नेटवर्क्स और स्प्रिंट यूटिलाइजिंग को नए 4G वाईमैक्स नेटवर्क के साथ प्रयोग की जाने लगी हैं। 
 
वीओएलटीई क्या है?  : वीओएलटीई का अर्थ है वॉयस ओवर एलटीई और यह कुल मिलाकर वैसी ही है, जैसी कि टिन पर काम करती है। यह 4G एलटीई नेटवर्क पर एक वॉयस कॉल्स ओवर है और यह टू जी और थ्री जी कनेक्शनों से अलग होती है, जो कि आमतौर पर इस्तेमाल होते हैं। हम 4G के बारे में ज्यादातर डाउनलोडिंग, स्ट्रीमिंग और वेब ब्रॉऊसिंग को लेकर समझते हैं लेकिन वास्तव में यह एक प्राथमिक उपयोग है, जो कि अब तक किया जा रहा है लेकिन इसका उपयोग कॉल्स में सुधार के लिए भी किया जा सकता है।
 
वीओएलटीई के लाभ क्या हैं?  : श्रेष्ठ कॉल क्वालिटी‍-वीओएलटीई का सबसे बड़ा लाभ थ्री जी और 2 जी कनेक्शनों की तुलना में बेहतर कॉल क्वालिटी है, क्योंकि 4G पर टू जी या थ्री जी की तुलना में ज्यादा डाटा भेजा जा सकता है। थ्री जी की तुलना में यह तीन गुना ज्यादा और टू जी की तुलना में छह गुना अधिक डाटा भेजा जा सकता है, इसके परिणामस्वरूप न केवल लाइन के दूसरी ओर बोल रहे व्यक्ति की आवाज अधिक साफ सुनाई देगी वरन इसकी आवाज की टोन भी साफ होगी। मूल रूप से यह एक एचडी वॉयस कॉल होगी और कुल मिलाकर यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ अनुभव होगा।
 
कवरेज और कनेक्टिविटी में सुधार :  इसके जरिए टू जी और थ्री जी के वर्तमान उपायों की तुलना में दोगुनी तेजी से सम्पर्क कॉल्स अप कनेक्ट हो सकेंगे। लेकिन जब 4G उपलब्ध नहीं होगा तो तब भी कुल मिलाकर और अधिक मोबाइल कवरेज होगा, जो कि वर्तमान में 4G सिग्नल पर दिया जाता है। लेकिन टू जी और थ्री जी का अर्थ होगा कि आप कोई कॉल नहीं कर सकेंगे या रिसीव नहीं कर सकेंगे।
 
आप सोचते होंगे कि यह एक दुर्लभ घटना होगी लेकिन जिन फ्रिक्वेंसीज पर 4G ऑपरेट करता है, जैसे कि 800 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की पहुंच टू जी या थ्री जी स्टेक्ट्रम से अधिक होगी। इसीलिए आप इसके किसी दूर स्थित मास्ट या इमारत पर से भी आसानी से सिग्नल पा सकेंगे। वास्तव में थ्री जी पूरी तरह से अपनी 800 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम पर वीओएलटीई पर निर्भर करती है। 
 
हालांकि टू जी और थ्री जी सेवाएं बनी रहेंगी लेकिन वे उतनी अनिवार्य नहीं होंगी जितनी आज हैं और विशेष रूप से टू जी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अधिकतम स्पेक्ट्रम 4G नेटवर्क्स की क्षमताएं बढ़ाने का काम करेगा। 
 
बेहतर बैटरी लाइफ :  जो कोई भी वर्तमान में 4G का इस्तेमाल करता है उसकी वीओएलटीई के साथ बैटरी लाइफ बढ़ जाएगी। अगर आपको फिलहाल टू जी या थ्री जी की बजाय 4G पर कॉल करना या रिसीव करना होता है तो 4G कॉल थ्री सुपर वॉयस कॉल की बजाय अन्य किसी पर सपोर्ट नहीं करती है और एक बार जब कॉल समाप्त हो जाती है तो यह फिर दोबारा सक्रिय हो जाती है। इस तरह की स्विचिंग और प्रत्येक समय पर अलग-अलग सिग्नल खोजने की जरूरत न होने से आपकी बैटरी की लाइफ बहुत अधिक बढ़ जाएगी। 
 
वीडियो कॉलिंग :  सैद्धांतिक रूप से 4G पर वीडियो कॉल करना संभव है, ठीक वैसे ही जैसे कि स्काइप कॉल किए जाते हैं। लेकिन इसके लिए आपको अपने मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करना होगा, रेगुलर डायलर का प्रयोग करना होगा और कॉल इंटरफेस का उपयोग करना होगा। इस तरह से आप वीओएलटीई की बजाय अन्य किसी पर वीडियो कॉल करने या रिसीव करने में सक्षम होंगे और इसके लिए आपको अलग-अलग एकाउंट नहीं रखने होंगे।
 
वास्तव में आपने गौर किया होगा कि स्काइप और अन्य वर्तमान वीडियो कॉल सेवाएं, वॉयस कॉल्स के मुकाबले बेहतर ऑडियो क्वालिटी देती प्रतीत होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वीओएलटीई, वीओआईपी सिस्टम के एक हिस्से तौर पर ज्यादा डाटा प्रयोग करती हैं। इस तरह आप उम्मीद कर सकते हैं कि आपकी वॉयस कॉल, स्काइप कॉल्स की तरह से लगेंगी। लेकिन इनसे आपकी बैटरी लाइफ पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा।
 
इससे वीडियो कॉलर की कॉल्स न केवल स्थानीय की तरह हो जाएगी वरन अन्य रिच कम्युनिकेशन सर्विसेज (आरसीएस, स) जैसे कि फाइल ट्रांसफरिंग, रियल टाइम लैंग्वेज ट्रांसलेशन और वीडियो वॉयस मेल जैसे प्रयोग भी किए जा सकते हैं। हालांकि इनके बारे में अभी तक सोचा भी नहीं गया है। चूंकि वीओएलटीई डाटा से बंधा होता है इसलिए आपको चिंता नहीं करनी होगी कि आपने कितने मिनट तक सेवा का उपयोग किया है, क्योंकि सभी कुछ डाटा के प्रयोग के तौर पर समझा जाएगा। 
 
क्या वीओएलटीई की कोई सीमाएं हैं? 
फिलहाल बहुत थोड़ी सी हैं। उदाहरण के लिए कुछ प्रयोगों में यह तभी काम करती है, जब दोनों ही उपकरणों से कॉल किए जा रहे हों या इसे रिसीव करने वाला वीओएलटीई को सपोर्ट कर रहा हो इसलिए शुरुआती दिनों में आप वास्तव में किससे सम्पर्क कर रहे हैं, यह सीमित हो सकता है।
 
यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वहां कैसा नेटवर्क सेटअप है या संभव है कि वहां नेटवर्क ही नहीं हो और प्रारंभ में नेटवर्क इंटरऑपरेबिलिटी न हो, इस कारण से आप अपने जैसे नेटवर्क के लोगों के साथ वीओएलटीई का उपयोग नहीं कर सकेंगे। इसके लिए जरूरी है कि आप दोनों छोर पर फोर जी का कवरेज रखते हों, चूंकि यह बहुत प्रचलित नहीं है इसलिए संभव है कि यह सेवा आपको सदैव उपलब्ध न हो सके। अगर कोई कॉल के दौरान 4G कवरेज से बाहर हो जाता है तो आपका कॉल ड्रॉप हो जाएगा। 
 
अंतिम कीमत का भी मुद्दा है। चूंकि वीओएलटीई में डाटा ज्यादा खर्च होता है, इसलिए कॉलिंग महंगी हो सकती है। साथ ही, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपका नेटवर्क क्या चार्ज करता है? यह सारी समस्याएं कुछ समय के लिए हो सकती हैं क्योंकि जैसे ही 4G का दायरा बढ़ता है, यह वीओएलटीई को सपोर्ट करना शुरू करता है तो कीमतें स्थिर हो जाएंगीं और नेटवर्क भी तकनीक के आदी हो जाएंगे। वास्तव में सेवा के तीनों संस्करणों में कुछेक समस्याएं बनी रहती हैं लेकिन वीओएलटीई कवरेज की कमी भी रहेगी और वर्तमान हैंडसेट्‍स को सीमित सपोर्ट मिलेगा।

 
हम 4G कॉल्स को वीओएलटीई के साथ क्यों नहीं दे रहे हैं? .... पढ़ें अगले पेज पर....
 

इसलिए सवाल उठता है कि हम 4G कॉल्स को वीओएलटीई के साथ क्यों नहीं दे रहे हैं? 
वॉयस ओवर एलटीई के साथ समस्या यह है कि 4G एलटीई केवल नेटवर्किंग तकनीक का डाटा इस्तेमाल करती है। इस कारण से यह वॉयस कॉल्स को सपोर्ट नहीं करती है। जहां टू जी और थ्री जी प्रमुख रूप से वॉयस कॉल्स को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं और बाद में उनमें डाटा जोड़ा गया था। इसलिए 4G पर वॉयस कॉल्स को सपोर्ट करने के लिए नए प्रोटोकॉल्स बनाने होंगे और यह एक बड़ा काम है। इसके लिए समूचे वॉयस कॉल की बुनियादी संरचना को उन्नत बनाना होगा। इसके लिए आज कोई एक मानक भी नहीं है, इसलिए विभिन्न नेटवर्क्स की अपनी-अपनी समस्याएं पैदा होंगी। 
 
हालांकि कुछ समस्याएं आम हैं और उनके समाधान भी, लेकिन सबसे बड़ी जरूरत सिंगल रेडियो वॉयस कॉल कंटीन्यूटी (एसआरवीसीसी) की है, जिसका अर्थ है कि अगर आपके फोन टू जी या थ्री जी सिग्नल पर वापस आ जाते हैं और अगर आपके कॉल के दौरान 4G सिग्नल जोन से बाहर आ जाते हैं, तब कॉल कट जाएगा। इसलिए ऐसे मास्ट्‍स की जरूरत होगी, जो कि पहले से ही थ्री जी सिग्नल देने को तैयार रहें, अगर कभी 4G सिग्नल खतरनाक तरीके से लो हो जाए। लेकिन इसके साथ ही वे 4G सिग्नल को भी चालू रखें। इस तरह आप या तो थ्री जी सिग्नल पर बने रहेंगे जबकि यह पूरी तरह से 4G सिग्नल ड्रॉप कर दे या थ्री जी को ड्रॉप कर दे जबकि 4G सिग्नल फिर से मजबूत होकर सक्रिय हो जाए। 
 
हमें कैसे पता लगेगा कि मेरा फोन वीओएलटीई को सपोर्ट करता है? 
 
अगर आप थ्री जी हैंडसेट का इस्तेमाल कर रहे हैं तो आपको निश्चित तौर पर अपग्रेड होने की जरूरत है लेकिन अगर आपके पास ऐसा नया हैंडसेट है, जो कि 4G सक्षम है तो यह एक सॉफ्टवेयर अपडेट के साथ वीओएलटीई के साथ काम कर सकता है।
 
टीडीडी-एलटीई और एफडीडी-एलटीई के बीच क्या अंतर है? 
 
एक सेल्यूलर नेटवर्क्स एक सीमित और साझा संसाधन (स्पेक्ट्रम) के बल पर चलते हैं और इसे सभी यूजर्स शेयर करते हैं, इस तरह से फुल ड्यूप्लेक्स संचार संभव होता है। इसमें इस्तेमाल होने वाले दो प्रमुख तरीकों की जानकारी इस प्रकार है : 
 
1. टाइम डिवीजन ड्‍यूप्लेक्सिंग (टीडीडी)  इसके तहत संचार एक फ्रिक्वेंसी के इस्तेमाल द्वारा किया जाता है लेकिन इसमें ट्रांसमीटिंग और रिसीविंग टाइम अलग-अलग होता है। इस तरीके से फुल ड्यूप्लेक्स संचार को हॉफ ड्यूप्लेक्स लिंक के इस्तेमाल से पूरा किया जाता है और इसका इस्तेमाल पिंग पांग की तरह ऊपर-नीचे होता रहता है।
 
2. फ्रिक्वेंसी डिवीजन ड्यूप्लेक्सिंग (एफडीडी) : इस तरह के संचार के लिए दो फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल किया जाता है और इसके तहत ट्रांसमीटिंग और रिसीविंग डाटा एक साथ होता है। यह
सिमीट्रिक होता है और इसके दोनों हिस्से समान और एक-दूसरे के सामने होते हैं या फिर एक्स‍िस (धुरी) के चारों ओर होते हैं। इसमें दो ‍फ्रिक्वेंसी होती हैं जिनमें एक ऊपर और दूसरे नीचे होती है। 
 
एफडीडी एलटीई (एफडी-एलटीई) विरुद्ध टीडीडी एलटीई (टीडी-एलटीई) नेटवर्क्स : एफडीडी एलटीई और टीडीडी एलटीई वास्तव में एलटीई 4G तकनीक के दो विभिन्न मानक हैं। एलटीई एक हाई स्पीड वायरलेस टेक्नोलॉजी है, जो कि थ्री जीपीपी स्टेंडर्ड से है। थ्री जी की ग्रोथ एचएसपीए प्लस पर समाप्त हो जाती है और मोबाइल ऑपरेटर्स ने मोबाइल यूजर्स को अधिकाधिक वैंडविड्थ देने के लिए पहले से ही 4G नेटवर्क्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। 4G स्पीड वास्तव में हमें एक ऐसी आभासी लैन रियल्टी देगी, जो कि मोबाइल हैंडसेट्‍स रखने वालों को बहुत तेज स्पीड उपलब्ध कराएगी ताकि वे एक मोबाइल नेटवर्क से डार्टा वॉयस और वीडियो की तीनों प्ले सर्विसेज के लिए इंटरनेट तक आसानी से पहुंच बना सकें। 
 
एलटीई को इस तरह परिभाषित किया जाता है कि यह दोनों ही प्रकार के साथ जुड़े (पेयर्ड) स्पेक्ट्रम हैं, जो कि फ्रिक्वेंसी डिवीजन ड्‍यूप्लेक्स (एफडीडी) में इस्तेमाल होते है और टाइम डिजीवन ड्‍यूप्लेक्स (एलडीडी) के अनपेयर्ड स्पेक्ट्रम को सपोर्ट करता है। एलटीई एफडीडी पेयर्ड स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करता है, जो कि थ्री जी नेटवर्क के एक माइग्रेशन पाथ से आता है, जबकि टीडीडी एलटीई ऐसे अनपेयर्ड स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करता है, जो कि टीडी-एससीडीएमए से विकसित होता है।
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