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Last Updated : सोमवार, 29 अक्टूबर 2018 (15:18 IST)

आईएस के बलात्कारी दरिंदों की संतान को जन्म दे रही यजीदी महिलाओं के सामने धर्मसंकट

आईएस के बलात्कारी दरिंदों की संतान को जन्म दे रही यजीदी महिलाओं के सामने धर्मसंकट - yazidi women
दाहुक। 26 साल की एक यजीदी महिला का परिवार नए सिरे से जीवन की शुरुआत करने के लिए इराक से ऑस्ट्रेलिया जाने की तैयारी कर रहा है लेकिन यह महिला चाहते हुए भी अपने परिजनों के साथ नहीं जा सकती। इसका कारण, उसकी दो साल की बिटिया मारिया है जिसे महिला का परिवार अपने साथ कभी नहीं रखेगा।
 
 
इस महिला के साथ आईएस के लड़ाकों ने बलात्कार किया था जिसके बाद मारिया का जन्म हुआ। महिला के एक रिश्तेदार ने देखभाल करने का वादा कर मारिया को ले लिया और उसे बगदाद के एक अनाथालय में डाल दिया। यजीदी महिलाओं की कहानी कुछ इसी तरह की है।
 
 
विस्थापित यजीदियों के लिए उत्तरी इराक में बने एक शिविर में रह रही इस महिला ने बताया ‘उसे (मारिया को) छोड़ने की बात बेहद टीस (दुख) देती है। वह मेरे कलेजे का टुकड़ा है लेकिन मैं नहीं जानती कि क्या करूं।’ 
 
 
पहचाने जाने के डर से यह महिला खुद को उम्म मारिया (मारिया की मां) कहती है। इस्लामिक स्टेट के कहर ने यहां यजीदी समुदाय के लोगों का जीवन तबाह कर दिया है। सैकड़ों पुरुषों और लड़कों को मार दिया गया, हजारों अपना घर छोड़ कर चले गए। उग्रवादियों ने महिलाओं को यौन गुलाम बना लिया। सामान की तरह उन्हें खरीदा और बेचा गया। यौन उत्पीड़न की शिकार इन महिलाओं में से कई अब मां बन चुकी हैं।
 
 
इस वर्ष शांति के लिए नोबेल पुरस्कार नादिया मुराद को देने की घोषणा जब हुई तब यौन उत्पीड़न के पीड़ितों खास कर, आईएस के कहर से पीड़ित यजीदियों की दर्दनाक दास्तां की ओर दुनिया का ध्यान गया।
 
 
इराक और सीरिया से आईएस के सफाए के बाद लोग अपने घरों को लौटने लगे हैं। कुछ महिलाएं ऐसी हैं जो बलात्कार के बाद पैदा हुई संतानों को साथ नहीं रखना चाहतीं। लेकिन कुछ ऐसी संतानों को छोड़ना भी नहीं चाहतीं। उनके सामने धर्मसंकट की स्थिति है। यह अलग बात है कि ज्यादातर यजीदी परिवार ऐसी संतानों को अक्सर ठुकरा ही देते हैं।
 
 
यजीदी समुदाय में आमतौर पर गैर यजीदी पिता की संतान अस्वीकार कर दी जाती है। यह समुदाय आज भी इस परंपरा पर कायम है। त्रासदी तब और भयावह रूप ले लेती है जब पिता वही सुन्नी मुस्लिम कट्टरपंथी हो जो यजीदी समुदाय का नामोनिशान मिटाना चाहता था। इराकी कानून के तहत, बच्चों को मुस्लिम माना जाता है।
 
 
बहरहाल, महिलाओं के प्रति यजीदी समुदाय ने प्रगतिशील रूख अपनाया है। यजीदी आध्यात्मिक नेता बाबाशेख खिरतो हदजी इस्माइल ने 2015 में एक आदेश जारी किया कि उग्रवादियों के हाथों यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिलाएं ‘पवित्र’ ही मानी जाएंगी।
 
 
इस आदेश की वजह से यजीदी समाज में महिलाओं की सम्मानजनक वापसी की राह तो बन गई लेकिन बच्चों के लिए कुछ नहीं हुआ। एक प्रमुख यजीदी कार्यकर्ता खिद्र दोमारी मानते हैं कि समुदाय की परंपराओं में सुधार की जरूरत है। वह कहते हैं कि मां अपने बच्चों को समुदाय में वापस तो ला सकती है लेकिन उसे परिवार और पड़ोसियों की ओर से गहरे दबाव का सामना करना पड़ेगा।
 
 
उन्होंने कहा, ‘खुद मां के लिए भी ऐसी संतान को साथ रखना और पालना आसान नहीं होगा क्योंकि रह-रह कर यह बात याद आएगी कि बच्चे के पिता ने हममें से कई लोगों को मारा होगा और मरने वालों में मां के अपने भी शामिल होंगे।’ 
 
 
उम्म मारिया तथा अन्य यजीदी महिलाओं को आईएस ने अगस्त 2014 में सीरिया की सीमा के पास सिन्जार में हमले के बाद बंधक बनाया था। इन लोगों को एक आईएस लड़ाका अबू तुरब अपने साथ यौन गुलाम बना कर सीरिया ले गया।
 
 
2015 में लड़ते हुए अबू तुरब मारा गया। फिर उसके परिवार ने उम्म मारिया को 1,800 डॉलर में एक अन्य इराकी उग्रवादी अहमद मोहम्मद के हाथों बेच दिया। मोहम्मद उसे इराक के मोसुल ले गया जहां वह अपनी पहली पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। वहीं मारिया का जन्म हुआ। 2015 में लड़ाई के दौरान मोहम्मद मारा गया।
 
 
अब उम्म मारिया का अगला ठिकाना बना आईएस का ‘गेस्टहाउस’ जहां घायल आईएस लड़ाकों का इलाज होता था या वह आराम के लिए आते थे। इसी दौरान वे यजीदी महिलाओं का इस्तेमाल अपनी शारीरिक जरूरत के लिए करते थे।
 
 
जब मोसुल में इराकी सुरक्षा बलों का हमला हुआ तब गेस्टहाउस की महिलाएं अन्यत्र ले जाई गईं। किस्मत थी कि बमबारी में वे बच गईं। 2017 में उम्म मारिया किसी तरह बचकर सरकारी बलों की पकड़ वाले भूभाग में चली गई। हालांकि बम हमले में वह घायल हो गई थी।
 
 
अस्पताल में इलाज करा रही उम्म मारिया से उसके रिश्तेदार ने कहा कि जब तक वह ठीक नहीं हो जाती तब तक मारिया की देखभाल वह करेगा। उसने वादा किया कि वह मारिया को लौटा देगा। लेकिन उसने बच्ची को अनाथालय में डाल दिया।
 
 
उम्म मारिया कहती है, ‘अगर मैं जानती कि वह मेरी बच्ची को अनाथालय में डालेगा तो मैं उसे उसके हवाले कभी नहीं करती।’... बच्ची अब तीन साल की हो चुकी है और उसकी मां को केवल एक बार ही उससे मिलने दिया गया। ‘वह मुझे नहीं पहचानती। लेकिन मैं उसे पहचान गई। आखिर वह मेरे ही कलेजे का टुकड़ा है।’ (भाषा)
 
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