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अग्रसेन जयंती कब है?

king Maharaja of Agroha
जन्म एवं परिचय- वर्ष 2022 में परम प्रतापी महाराजा अग्रसेन की जयंती (agrasen jayanti 2022) दिन सोमवार, 26 सितंबर को मनाई जा रही है। उनका जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था, इसी दिन से शारदीय नवरात्रि पर्व का आरंभ हुआ था, और इसी दिन को अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। आज भी इतिहास में महाराज अग्रसेन धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं। अग्रवाल शिरोमणि महाराजा अग्रसेन का स्मरण करना गंगा जी में स्नान करने के समान ही है। 
 
उनका जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व प्रतापनगर के सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ के यहां हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी एवं अपार तेजस्वी थे। राज्य में बसने की इच्छा रखने वाले हर आगंतुक को, राज्य का हर नागरिक जिसे मकान बनाने के लिए ईंट, व्यापार करने के लिए एक मुद्रा दिए जाने की राजाज्ञा महाराजा अग्रसेन ने दी थी।  
 
विवाह और तपस्या- पिता की आज्ञा से महाराजा अग्रसेन नागराज कुमुट की कन्या 'माधवी' के स्वयंवर में गए। वहां अनेक वीर योद्धा राजा, महाराजा, देवता आदि सभा में उपस्थित थे। सुंदर राजकुमारी माधवी ने उपस्थित जनसमुदाय में से युवराज अग्रसेन के गले में वरमाला डालकर उनका वरण किया। 

इसे देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और वे महाराजा अग्रसेन से कुपित हो गए। जिससे उनके राज्य में सूखा पड़ गया। जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। प्रजा के कष्ट निवारण के लिए राजा अग्रसेन ने अपने आराध्य देव शिव की उपासना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने अग्रसेन को वरदान दिया तथा प्रतापगढ़ में सुख-समृद्धि एवं खुशहाली लौटाई। 
 
धन-संपदा और महालक्ष्मी की कृपा- महाराजा अग्रसेन ने धन-संपदा और वैभव के लिए महालक्ष्मी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया। महालक्ष्मी जी ने उनको समस्त सिद्धियां, धन-वैभव प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया और कहा कि तप को त्याग कर गृहस्थ जीवन का पालन करो, अपने वंश को आगे बढ़ाओ। तुम्हारा यही वंश कालांतर में तुम्हारे नाम से जाना जाएगा। 
 
इसी आशीर्वाद के साथ कोलपुर के नागराजाओं से अपने संबंध स्थापित करने को कहा जिससे राज्य शक्तिशाली हो सके। वहां के नागराज महिस्थ ने अपनी कन्या सुंदरावती का विवाह महाराज अग्रसेन के साथ कर दिया। उनके 18 पुत्र थे। उन्होंने 18 यज्ञ किए थे। यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे। जिस समय 18वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराजा अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा उत्पन्न हो गई।

उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न मांस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने क्षत्रिय धर्म को अपना लिया। 
 
महान कार्य- महाराजा अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा (legendary Indian king of Agroha) थी। उनके शासन में अनुशासन का पालन होता था। जनता निष्ठापूर्वक स्वतंत्रता के साथ अपने कर्तव्य का निर्वाह करती थी। महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। उन्होंने जिन जीवन मूल्यों को ग्रहण किया उनमें परंपरा एवं प्रयोग का संतुलित सामंजस्य दिखाई देता है।

महाराजा अग्रसेन समानता पर आधारित आर्थिक नीति को अपनाने वाले संसार के प्रथम सम्राट थे। इतना ही नहीं उन्होंने देश में कई स्थानों पर अस्पताल, स्कूल, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि बनवाईं। यहीं महाराजा अग्रसेन के जीवन मूल्यों का आधार हैं और यह जीवन मूल्य मानव आस्था के प्रतीक हैं।

 
महाराजा अग्रसेन के आदर्श- उन्होंने एक ओर हिन्दू धर्म ग्रथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श थे- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। एक निश्‍चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंप कर तपस्या करने चले गए। 
 
क्या करते हैं इस दिन- 
 
- इस दिन हरियाणा के अग्रोहा शहर में विशेष तैयारी करके शहर को सजाया जाता है, हरियाणा में गांव-गांव तथा शहरों में महाराजा अग्रसेन की भक्ति यात्रा निकाली जाती है। 
 
- श्रद्धालु इस दिन को खास बनाने के लिए विशेष तैयारी करते हैं। 
 
- आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता हैं। 
 
 
- भारतभर में इस शोभा यात्राएं निकाली जाती है तथा उनके परिवार के सदस्यों के चित्रों तथा अवशेषों को शामिल किया जाता है। 
 
- इस दिन लंगर का आयोजन किया जाता है। 
 
- अग्रवाल समुदाय के सदस्य इस दिन उनके भक्तों को प्रसाद वितरण करते हैं। 
 
ऐसे महान, शांति के दूत, कर्मयोगी, लोकनायक महाराजा अग्रसेन की जयंती पर उन्हें शत्‌-शत्‌ नमन‌।

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