अब्राहम लिंकन का जन्म 12 फरवरी, 1809 में एक गरीब अश्वेत परिवार में हुआ था। वे प्रथम रिपब्लिकन थे, जो अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति बने। अमेरिका में दास प्रथा के अंत का श्रेय लिंकन को ही जाता है। उनकी मृत्यु 15 अप्रैल 1865 में हुई थी। यहां पढ़ें अब्राहम लिंकन के जीवन के 3 रोचक किस्से...
किस्सा 1. मेरे दुश्मन मेरे दोस्त
जब बहुत संघर्षों के बाद अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। संघर्ष के दौरान उन्होंने लोगों के बदलते रूप देखे। राजनीति में जो कुछ होता है, उनके साथ भी हुआ। उनके ऊपर भी कीचड़ उछाला गया। उन्हें तरह-तरह से परेशान किया गया, लेकिन उनकी दृढ़ता के आगे विरोधियों ने हमेशा मुंह की खाई। अंततः अमेरिकी जनता ने उनके व्यक्तित्व को पहचान ही लिया।
राष्ट्रपति बनने के बाद अभिनंदन समारोह में उनका एक हितैषी उन्हें बधाई देते हुए बोला- देश की कमान हाथों में आने के बाद अब आप अपनी ताकत का उपयोग अपने विरोधियों को खत्म करने में क्यों नहीं करते? उनसे बदला लेने का इससे अच्छा मौका और क्या होगा?
लिंकन बोले- श्रीमान, आप यह जानकर खुश होंगे कि जैसा आप कह रहे हैं, मैं पहले से ही वैसा कर रहा हूं। मैं एक-एक करके अपने सभी विरोधियों को खत्म कर रहा हूं।
हितैषी- अच्छा, मजा आ गया। अब उन्हें पता चलेगा।
लिंकन- नहीं, नहीं, आप गलत न समझें। दरअसल मैं अपने सभी दुश्मनों के साथ शालीन एवं मित्रवत् व्यवहार करता हूं। वे मेरे इस सकारात्मक कदम से प्रभावित होकर मेरे मित्र बनते जा रहे हैं। इस तरह एक दिन वे सभी मेरे दोस्त बन जाएंगे। फिर मेरा कोई भी कोई शत्रु या विरोधी नहीं बचेगा। क्या यह तरीका ज्यादा बेहतर नहीं?
किस्सा 2. दो चेहरे
अब्राहम लिंकन पर एक बार किसी ने आरोप लगाया कि उनके दो चेहरे हैं। इस बात का कुछ मजाकिया जवाब देते हुए लिंकन ने कहा कि अगर मेरे पास दो चेहरे होते तो क्या मैं अपने इसी चेहरे को लिए घूमता।
किस्सा 3. लिंकन का कोट
स्प्रिंगफील्ड में एक बार अब्राहम लिंकन कहीं जा रहे थे। तभी पीछे से एक व्यक्ति ने बहुत तेज गाड़ी चलाते हुए उन्हें ओवरटेक किया और जाने लगा। लिंकन ने उसे आवाज देकर रोका और कहा- क्या आप मेरी मदद करेंगे। उस व्यक्ति ने कहा- बताइए क्या काम है।
लिंकन ने कहा कि क्या आप यह मेरा ओवर कोट शहर तक लेकर चलेंगे? उस अपरिचित ने कहा कि हां क्यों नहीं, बल्कि खुशी से। पर आप शहर पहुंचकर मुझसे यह कोट लेंगे किस तरह? बहुत आसान है लिंकन ने जवाब दिया। कोट के भीतर मैं भी तो रहूंगा।
-आरके.