आज के छिछोरे, पतनशील फिल्म संगीत पर यह गीत शुभ्रता के यक्ष का तमाचा है। याद आते हैं हेमंतकुमार, मोटे चश्मे से झाँकते हुए एक भद्र कापालिक से, जो इस अमर कृति को देकर धरती की भाप में घुल गए और हवा पर आवाज का तिलक खींच गए...।
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