• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. धर्म-दर्शन
  4. »
  5. तंत्र-मंत्र
Written By ND

अमावस्या का भोज और नरबलि

- दीपक रस्तोगी

अमावस्या का भोज और नरबलि -
SUNDAY MAGAZINE
बोलपुर में विश्व प्रसिद्ध शांति निकेतन से कुछ ही दूरी पर छोटा सा एक गाँव है- दोनायपुर। वहाँ का 'काजलाकाली' मंदिर। चैत्र संक्रांति के मौके पर आस-पास के दो-चार गाँवों के लोग जुटते हैं और मनाते हैं अपना 'गाजन उत्सव'। इस बार 13 साल के बाद चैत्र संक्रांति पर्व अमावस्या की तिथि पर पड़ा था।

दोनायपुर के लोगों ने तय किया कि इस बार काजलाकाली मंदिर में माँ कंकाली की विशेष पूजा की जाएगी। हर साल एक बकरे की बलि दी जाती थी ग्यारह की बली दी गई और भक्तों ने चढ़ावा भी अच्छा चढ़ाया। रात की पूजा कर पुजारी विश्वनाथ मजुमदार उर्फ भगवती मजुमदार भी अपने घर चले गए थे। सुबह मूर्ति के ठीक सामने चबूतरे पर खून फैला हुआ और चबूतरे के नीचे 15 फीट की दूरी पर बनाए गए 'हाड़ीकाठ' (बलि स्थल) के पास एक नग्न सिरविहिन लाश पड़ी हुई। कुछ दूरी पर सिर भी पड़ा हुआ मिला। हाड़ीकाठ के पास जवा (गुड़हल) और गेंदे का फूल। साथ ही तंत्र क्रिया में कथित तौर पर काम आने वाली कुछ आकृतियों की मूर्तियाँ आसपास बिखरी हुईं थीं।

मौके पर पहुँची पुलिस ने स्नीफर डॉग की मदद से मार डाले गए व्यक्ति के कपड़े ढूँढ निकाले। सिर की आकृति पहचानने में मुश्किल हो रही थी। धारदार हथियार से चेहरे का नक्शा बिगाड़ दिया गया था। दोनायपुर गाँव से महज चार-पांच किलोमीटर दूर बोलपुर के शूंड़ीपाड़ा इलाके में अन्नदापल्ली की सावित्री बाग्दी उस दिन यानी 16 अप्रैल को जब अपने पड़ोसी के घर टेलीविजन देखने पहुँचीं तो केबल टीवी पर लोकल न्यूज में हाड़ीकाठ और उसके पास पड़े शव का हाथ बार-बार दिखाया जा रहा था।

SUNDAY MAGAZINE
थोड़ी देर बाद जब कपड़ों को टीवी पर दिखाया गया तो सावित्री बाग्दी ने पहचान लिया। मृत शरीर उनके पति परेश बाग्दी का था। 45 साल का परेश इस इलाके में अपनी पत्नी, दो बेटों और एक बेटी के साथ रहता था। 15 अप्रैल को बांग्ला नववर्ष यानी चैत्र संक्रांति के मौके पर गाजन उत्सव में भाग लेने के लिए वह दोपहर 12 बजे निकला था। पत्नी को कह गया था कि रात को लौटना नहीं होगा। अगले दिन टीवी पर खबर देखी और दो दिनों के बाद बर्दवान मेडिकल कॉलेज से पति का शव लेकर घर लौटी थी सावित्री बाग्दी।

सावित्री देवी और उनके पड़ोसियों के बयानों को देखा जाए कि सारी स्थितियाँ नरबलि की ओर संकेत कर रही हैं। दूसरी ओर, पुलिस की जांच बदला लेने के एंगल से भी हो रही है। सावित्री देवी के अनुसार, उसका पति और कालू माझी नाम का एक व्यक्ति मकरमपुर के पाइप कारखाने में नौकरी करते थे। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। दोनों कभी -कभार स्थानीय एक देसी शराब विक्रेता लालमोहन हांसदा की दुकान पर 'अड्डा' जमाया करते थे। इस मामले में पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया है। पूछताछ में दोनों से हैरतअंगेज जानकारियाँ मिली हैं।

उस दिन कालू माझी के घर पर डिनर के लिए परेश बाग्दी का आमंत्रण था। परेश बाग्दी नास्तिक हुआ करता था लेकिन कालू के प्रभाव में आकर वह तंत्र-मंत्र में रुचि लेने लगा था। कालू के बयान के अनुसार, उस रात वह स्वेच्छा से मंदिर में गया था। इस मंदिर में तांत्रिक साधना के प्रभाव को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। हो सकता है कि परेश का दोनों ने तंत्र साधना में इस्तेमाल किया हो। घटनास्थल पर पड़े खून के छींटों से साफ है कि परेश का सिर काटने के बाद उसे माँ काली की मूर्ति तक ले जाया गया था।

SUNDAY MAGAZINE
दोनों आरोपियों की निशानदेही पर रविवार 18 अप्रैल को मंदिर के पास के तालाब से बलि में प्रयुक्त खड्ग (खांडा) भी खोज निकाला गया। कथित तौर पर इस 'बलि' का उद्देश्य क्या था ? इस बारे में पुलिस के सामने साफ नहीं है। 13 साल पहले भी बलि की एक घटना हुई थी। उस मामले में तो कोई पकड़ा ही नहीं जा सका था। इस घटना की जांच सीआईडी को सौंपी गई है। पता लगाने की कोशिश हो रही है कि कहीं बलि के नाम पर व्यक्तिगत दुश्मनी तो नहीं निभाई गई थी। आखिर उद्देश्य क्या था?

दरअसल, वीरभूम जिले में तारापीठ के आसपास के कुछ इलाकों में तांत्रिक क्रियाओं को लेकर खासा सम्मोहन जनमानस में दिखता है। डेढ़ साल पहले तारापीठ के पास कालीतला मंदिर में ऐसी ही एक घटना हुई थी। तारीख दो दिसंबर, 2008। कालीतला मंदिर के ठीक सामने नदी में उतराती मिली सिरकटी लाश ! थोड़ा तलाश करने पर उस लाश का सिर भी मंदिर की सीढ़ियों पर पत्थरों से नीचे दबा हुआ मिला। जिस खड्ग से उसकी बलि दी गई थी, वह तारापीठ के पास ही धरमपुर गांव की शिवानी महलदार का था।

जयसिंहपुर गाँव के सुब्रत मंडल की बलि दी गई थी जो तारापीठ में किसी मिठाई की दुकान में पेड़े बनाता था। पत्नी का नाम रांगा, जो कुछ दिनों से सुब्रत से झगड़कर शिवानी के साथ रह रही थी। रांगा को 'माँ काली' का वेश धराकर शिवानी ने जमकर कमाई करनी शुरू कर दी थी। जब सुब्रत ने रांगा को ले जाने के लिए दबाव बनाया तो मुक्ति पाने का रास्ता बना बलि। दोनायपुर के परेश बाग्दी कांड में भी ऐसा ही कोई एंगल तो नहीं? आखिर किसके 'कारोबार' पर असर डाल रहा था परेश ? नरबलि के इस कथित मामले में कई जवाब आने बाकी हैं।