सैयदना साहब की 100वीं सालगिरह
नई पीढ़ी को सैयदना साहब का संदेश
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ज्योत्स्ना भोंडवे दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरु डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब की 100वीं सालगिरह आज मनाई जाएगी। सैयदना साहब नई पीढ़ी को समय के साथ आगे बढ़ने, बदलने का संदेश देते हैं। औरत और मर्द के हक में किसी भी तरह के भेदभाव के वे खिलाफ हैं। समान हक के साथ अपने व्यवहार से किसी को भी तकलीफ नहीं पहुँचे, ऐसे आचरण के वे हिमायती हैं।' जी हाँ, यह जहीन सोच है दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरु डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब की जो अन्य मौलानाओं से बिलकुल ही अलहदा हैं। सूरत में जन्मे और मुंबई के सैफी महल के रहाइशी सैयदना को उम्र के छठे साल में ही 'कुरान' जबानी याद रही। सूरत में जन्म लेने की वजह से आपके बोलचाल की भाषा में गुजराती का इस्तेमाल होता है। सो मस्जिद में होने वाली आपकी तकरीर भी गुजराती में होती है। आपके वालिद ताहीद सैफुद्दीन भी 'सैयदना' खिताब के धारक रहे जिनके इंतकाल के बाद आपको 'बुरहानुद्दीन' खिताब दिया गया।
उन्होंने अपनी तकरीर में कहा है- 'जितने बच्चे संभालने की कूवत है उतने ही होना चाहिए, नाहक कतार खड़ी न करें।' तब अन्य इस्लामी मौलवियों ने आपत्ति ली थी। इस पर सैयदना सा. का जवाब रहा- 'यदि ये उन्हें संभाल नहीं सके तो क्या पैसे आप भेजेंगे?' इसी में आपके जिंदगी को देखने के नजरिए का खुलापन और सच्चाई साफ नजर आती है। वे जिहाद के बाबद बात नहीं करते वरन उनका कहना है कि-'काम करो, पैसे कमाओ और घर संभालो। यदि हरेक ने इतना भी किया तो पूरी दुनिया अपने आप संभल जाएगी।''
तालीम से बड़ी कोई दौलत नहीं' उनकी यह बात सभी बोहरा लोगों के दिलों पर अंकित है। लड़कियों की तालीम लड़कों की तालीम के बराबर ही अहम है। सुनने में शायद अजीब लगे लेकिन उनके मुताबिक उद्योग-धंधों में महिलाओं की भागीदारी होना चाहिए। काम समझने के बाद खुद का व्यापार करना चाहिए। सैयदना की इस सोच को सभी बोहराजनों ने दिल से स्वीकार किया है। यही वजह है कि छोटे से छोटा क्यों न हो लेकिन हर शख्स अपने कारोबार का मालिक होता है। उनका पेशा ही उनकी छोटी-सी हुकूमत है। जहाँ घर की औरतें मर्दों के काम करती नजर आती हैं। शौहर के साथ वे हिसाब-किताब और गल्ला भी संभालती हैं और तो और तालीम हासिल कर उसका इस्तेमाल घर चलाने में मदद करना चाहिए, ऐसा धर्मगुरु कहते हैं तभी वे जवाबदेह से लगते हैं। हर बोहरा शख्स के पास एक ई. कार्ड होता है। नाम, पता, उम्र और अन्य जानकारियों वाला यह कार्ड दुनिया में कहीं भी दिखाने पर दर्ज की गई तमाम जानकारियाँ अपने आप मिल जाती हैं। हमारे देश में जो कार्ड को लंबे समय से बस आ ही रहा है, उसे बोहरा समाज ने बहुत पहले कर दिखाया है। आपने दुनिया भर में बोहरा मस्जिदें बनवाते कई ट्रस्ट कायम किए। जिन्हें मदद की जरूरत है, आसानी से हासिल हो जाती है। स्कूल, कॉलेज प्रशिक्षण केंद्र न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्कि इजिप्ट, योरप, फ्रांस, अमेरिका में भी खड़े किए।
बोहरा लोग आपको कभी भीख माँगते नजर नहीं आएँगे क्योंकि गरीब या मजबूर हालत में उन्हें सैयदना सा. की तरफ से पूरी मदद मिलती है। तभी तो मानने वाले उनमें बेइंतहा श्रद्धा रखते हैं। सैयदना सा. की गाड़ी को देखने के लिए कतारें लग जाती हैं। उनके विदेश से हिन्दुस्तान लौटने पर विमान तल से सैफी महल तक कतारें लग जाती हैं। जमीन की जिस जगह से सैयदना सा. की गाड़ी के टायर गुजरे उसकी धूल के भी भाव बढ़ जाते हैं। ऐसे चाहने वालों को सैयदना साहब की सालगिरह पर मुबारकबाद।