• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. संत-महापुरुष
  4. worship of Lord Vishwakarma
Written By

17 फरवरी को विश्वकर्मा जयंती, पढ़ें महत्व, मंत्र-पूजन विधि एवं कथा

17 फरवरी को विश्वकर्मा जयंती, पढ़ें महत्व, मंत्र-पूजन विधि एवं कथा - worship of Lord Vishwakarma
सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा के बारे में रोचक जानकारी, पढ़ें महत्व एवं इतिहास
 
भारत में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों का निर्धारण चंद्र कैलेंडर के मुताबिक किया जाता है, किंतु नवीन मतानुसार विश्वकर्मा जयंती 17 फरवरी 2019 को मनाई जाएगी। इस संबंध में ऐसी मान्यता है कि माघ माह की त्रयोदशी के दिन विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था। यद्यपि उनके जन्म दिन को लेकर कुछ भ्रांतियां भी हैं। अत: कई स्थानों पर विश्वकर्मा जयंती रविवार को मनाई जा रही है।
 
 
वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ था। वहीं कुछ विशेषज्ञ भाद्रपद की अंतिम तिथि को विश्वकर्मा पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। इन सभी मतों से अलग एक स्थापित मान्यता के अनुसार, विश्वकर्मा पूजन का शुभ मुहूर्त सूर्य के परागमन के आधार पर तय किया जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि भारत में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों का निर्धारण चंद्र कैलेंडर के मुताबिक किया जाता है, वहीं विश्वकर्मा पूजन की तिथि सूर्य को देखकर की जाती है। यह तिथि हर साल 17 सितंबर को पड़ती है। 
 
भगवान विश्वकर्मा जी के जन्म का वर्णन मदरहने वृध्द वशिष्ठ पुराण में भी किया गया है। इस पुराण के अनुसार- 
 
माघे शुक्ले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।
अष्टा र्विशति में जातो विश्वकर्मा भवनि च॥
 
पुराणों में वर्णित लेखों के अनुसार इस 'सृष्टि' के रचयिता आदिदेव ब्रह्माजी को माना जाता है। ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा जी की सहायता से इस सृष्टि का निर्माण किया, इसी कारण विश्वकर्मा जी को इंजीनियर भी कहा जाता है।
 
 
धर्म शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्माजी के पुत्र 'धर्म' की सातवीं संतान जिनका नाम 'वास्तु' था। विश्वकर्मा जी वास्तु के पुत्र थे जो अपने माता-पिता की भांति महान शिल्पकार हुए, इस सृष्टि में अनेकों प्रकार के निर्माण इन्हीं के द्वारा हुए। देवताओं का स्वर्ग हो या रावण की सोने की लंका या भगवान कृष्ण की द्वारिका और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर, इन सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही किया गया है, जो कि वास्तुकला की अद्भुत मिशाल है। विश्वकर्मा जी को औजारों का देवता भी कहा जाता है। महर्षि दधीचि द्वारा दी गई उनकी हड्डियों से ही विश्‍वकर्माजी ने 'बज्र' का निर्माण किया है, जो कि देवताओं के राजा इंद्र का प्रमुख हथियार है।
 
वास्तुशास्त्र के जनक विश्वकर्मा जी :
 
हिन्‍दू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को सृजन का देवता कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा जी ने इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका आदि का निर्माण किया था। प्रत्येक वर्ष विश्वकर्मा जयंती पर औजार, मशीनों और औद्योगिक इकाइयों की पूजा की जाती है।
 
भगवान विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा जाता है। उन्होंने अपने ज्ञान से यमपुरी, वरुणपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी, पुष्पक विमान, विष्णु का चक्र, शंकर का त्रिशूल, यमराज का कालदंड आदि का निर्माण किया। विश्वकर्मा जी ने ही सभी देवताओं के भवनों को तैयार किया। विश्‍वकर्मा जयंती वाले दिन अधिकतर प्रतिष्ठान बंद रहते हैं। भगवान विश्वकर्मा को आधुनिक युग का इंजीनियर भी कहा जाता है।
 
 
एक कथा के अनुसार, संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीरसागर में प्रकट हुए। विष्णुजी के नाभि-कमल से ब्रहाजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नामक स्त्री से हुआ।
 
धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया। वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण था। वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था। वास्तुशास्त्र में महारथ होने के कारण विश्‍वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। इस तरह भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ। 
 
विश्वकर्मा पूजन विधि :
 
विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिमा को विराजित करके पूजा की जाती है। जिस व्यक्ति के प्रतिष्ठान में पूजा होनी है, वह प्रात:काल स्नान आदि करने के बाद अपनी पत्नी के साथ पूजन करें। हाथ में फूल, चावल लेकर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए घर और प्रतिष्ठान में फूल व चावल छिड़कने चाहिए।
 
इसके बाद पूजन कराने वाले व्यक्ति को पत्नी के साथ यज्ञ में आहुति देनी चाहिए। पूजा करते समय दीप, धूप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि का प्रयोग करना चाहिए। पूजन से अगले दिन प्रतिमा का विसर्जन करने का विधान है। 
 
 
पूजन के मंत्र : 
 
भगवान विश्वकर्मा की पूजा में 'ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:', 'ॐ अनन्तम नम:', 'पृथिव्यै नम:' मंत्र का जप करना चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष की माला होना चाहिए। 
 
जप शुरू करने से पहले ग्यारह सौ, इक्कीस सौ, इक्यावन सौ या ग्यारह हजार जप का संकल्प लें। चूंकि इस दिन प्रतिष्ठान में छुट्टी रहती है तो आप किसी पुरोहित से भी जप संपन्न करा सकते हैं।

 
भगवान विश्वकर्मा के जन्म से जुड़ा प्रसंग :
 
एक कथा के अनुसार, संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीरसागर में प्रकट हुए। विष्णुजी के नाभि-कमल से ब्रहा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रहा जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नाम स्त्री से हुआ। धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया।
 
औजारों की पूजा :

 
विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिष्ठान के सभी औजारों या मशीनों या अन्य उपकरणों को साफ करके उनका तिलक करना चाहिए। साथ ही उन पर फूल भी चढ़ाएं। हवन के बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण करना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा के प्रसन्न होने से व्यक्ति के व्यवसाय में दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि होती है।
 
ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने वाले व्यक्ति के घर में धनधान्य तथा सुख-समृद्धि की कमी नहीं रहती। इस पूजा की महिमा से व्यक्ति के व्यापार में वृद्धि होती है तथा सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।