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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 26 अगस्त 2024 (10:08 IST)

sant gyaneshwar jayanti: संत ज्ञानेश्‍वर की जयंती पर जानें उनका जीवन परिचय

संत ज्ञानेश्‍वर की जयंती, जानें 7 अनसुनी बातें

sant gyaneshwar jayanti: संत ज्ञानेश्‍वर की जयंती पर जानें उनका जीवन परिचय - Biography of Saint Gyaneshwar
Highlights 
 
कब मनाई जाती है संत ज्ञानेश्‍वर जयंती।
ज्ञानेश्‍वर महाराज का जीवन परिचय।  
संत ज्ञानेश्‍वर कौन थे।
 
Saint Gyaneshwar Jivani : आज संत ज्ञानेश्वर की जयंती है। उनका जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ई. सन् 1275 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पैठण के पास आपेगांव में हुआ था। उनके पिता विट्ठल पंत एवं माता रुक्मिणी बाई थीं। 
 
आइए जान‍ते हैं उनके बारे में अनजानी बातें...
 
1. जीवन : बहुत छोटी आयु में ज्ञानेश्वर जी को जाति से बहिष्कृत होने के कारण अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। उनके पास रहने को ठीक से झोपड़ी भी नहीं थी। संन्यासी के बच्चे कहकर सारे संसार ने उनका तिरस्कार किया। लोगों ने उन्हें कष्ट दिए, पर उन्होंने अखिल जगत पर अमृत सिंचन किया। वर्षानुवर्ष ये बाल भागीरथ कठोर तपस्या करते रहे। भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में संत ज्ञानेश्वर की गणना की जाती है। ज्ञानेश्वर जी के प्रचंड साहित्य में कहीं भी, किसी के विरुद्ध परिवाद नहीं है। क्रोध, रोष, ईर्ष्या, मत्सर का कहीं लेशमात्र भी नहीं है। समग्र ज्ञानेश्वरी क्षमाशीलता का विराट प्रवचन है। 
 
2. मुक्ताबाई और ज्ञानेश्वर: इस विषय में ज्ञानेश्वर जी की छोटी बहन मुक्ताबाई का ही अधिकार बड़ा है। ऐसी किंवदंती है कि एक बार किसी नटखट व्यक्ति ने ज्ञानेश्वर जी का अपमान कर दिया। उन्हें बहुत दुख हुआ और वे कक्ष में द्वार बंद करके बैठ गए। जब उन्होंने द्वार खोलने से मना किया, तब मुक्ताबाई ने उनसे जो विनती की वह मराठी साहित्य में ताटीचे अभंग (द्वार के अभंग) के नाम से अतिविख्यात है। मुक्ताबाई उनसे कहती हैं- हे ज्ञानेश्वर! मुझ पर दया करो और द्वार खोलो। जिसे संत बनना है, उसे संसार की बातें सहन करनी पड़ेंगी। तभी श्रेष्ठता आती है, जब अभिमान दूर हो जाता है। जहां दया वास करती है वहीं बड़प्पन आता है। आप तो मानव मात्र में ब्रह्मा देखते हैं, तो फिर क्रोध किससे करेंगे? ऐसी समदृष्टि कीजिए और द्वार खोलिए। यदि संसार आग बन जाए तो संत मुख से जल की वर्षा होनी चाहिए। ऐसे पवित्र अंतःकरण का योगी समस्तजनों के अपराध सहन करता है। 
 
3. जीवन प्रसंग: उनके जीवन के एक प्रसंग के अनुसार एक बार संत ज्ञानेश्वर, नामदेव तथा मुक्ताबाई के साथ तीर्थाटन करते हुए प्रसिद्ध संत गोरा के यहां पधारे। संत समागम हुआ, वार्ता चली। तपस्विनी मुक्ताबाई ने पास रखे एक डंडे को लक्ष्य कर गोरा कुम्हार से पूछा- 'यह क्या है?' गोरा ने उत्तर दिया- इससे ठोक कर अपने घड़ों की परीक्षा करता हूं कि वे पक गए हैं या कच्चे ही रह गए हैं। मुक्ताबाई हंस पड़ीं और बोलीं- हम भी तो मिट्टी के ही पात्र हैं। क्या इससे हमारी परीक्षा कर सकते हो? 'हां, क्यों नहीं'- कहते हुए गोरा उठे और वहां उपस्थित प्रत्येक महात्मा का मस्तक उस डंडे से ठोकने लगे। उनमें से कुछ ने इसे विनोद माना, कुछ को रहस्य प्रतीत हुआ। 
 
4. नामदेव के गुरु : जब नामदेव को बुरा लगा कि एक कुम्हार उन जैसे संतों की एक डंडे से परीक्षा कर रहा है। उनके चेहरे पर क्रोध की झलक भी दिखाई दी। जब उनकी बारी आई तो गोरा ने उनके मस्तक पर डंडा रखा और बोले- 'यह बर्तन कच्चा है।' फिर नामदेव से आत्मीय स्वर में बोले- 'तपस्वी श्रेष्ठ, आप निश्चय ही संत हैं, किंतु आपके हृदय का अहंकार रूपी सर्प अभी मरा नहीं है, तभी तो मान-अपमान की ओर आपका ध्यान तुरंत चला जाता है। यह सर्प तो तभी मरेगा, जब कोई सद्गुरु आपका मार्गदर्शन करेगा।' संत नामदेव को बोध हुआ। स्वयंस्फूर्त ज्ञान में त्रुटि देख उन्होंने संत विठोबा खेचर से दीक्षा ली, जिससे अंत में उनके भीतर का अहंकार मर गया। 
 
संत नामदेव को आज सभी जानते हैं लेकिन गोरा तो नींव के पत्थर की तरह आज भी लोगों की आंखों से ओझल हैं, जबकि नामदेव को अहंकार मुक्त करने में उन्हीं का सबसे बड़ा योगदान रहा था। सच कहा जाए तो नामदेव के असली गुरु गोरा ही हुए। आखिर उन्हीं के कहने से तो नामदेव ने विठोबा खेचर से दीक्षा ली। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर नामदेव जी के गुरु थे।
 
5. यात्राएं : संत ज्ञानेश्वर ने अपने जीवन काल में अयोध्या, पंढरपुर, उज्जयिनी, वृंदावन, द्वारका, प्रयाग, काशी, गया आदि कई तीर्थस्थानों की यात्रा की। 
 
6. रचनाएं : ‘अमृतानुभव’, ‘चांगदेवपासष्टी’, ‘योगवसिष्ठ टीका’ आदि संत ज्ञानेश्वर के रचित कुछ अन्य ग्रंथ हैं। ज्ञानेश्वर ने मराठी भाषा में भगवद्‍गीता के ऊपर एक 'ज्ञानेश्वरी' नामक दस हजार पद्यों का ग्रंथ लिखा है। 'ज्ञानेश्वरी', 'अमृतानुभव' ये उनकी मुख्य रचनाएं हैं। उनकी साहित्य गंगा से राख होकर पड़े हुए सागर पुत्रों और तत्कालीन समाज बांधवों का उद्धार हुआ। भावार्थ दीपिका की ज्योति जलाई। वह ज्योति ऐसी अद्भुत है कि उनकी आंच किसी को नहीं लगती, प्रकाश सबको मिलता है। 
 
7. समाधि : भारत के एक ऐसे महान संत ज्ञानेश्वर जी महाराज ने मात्र इक्कीस (21) वर्ष की वर्ष की अल्पायु में संसार का परित्याग कर मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी को समाधि ग्रहण कर ली थी और सन् 1296 ई. में पुणे के नजदीक आळंदी (आलंदी) ग्राम में उनकी मृत्यु हुई। उनकी समाधि आलंदी के सिध्देश्वर मंदिर परिसर में स्थित है। उन्हें महाराष्ट्र के तेरहवीं सदी के महान के रूप में जाना जाता है।

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