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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024 (17:20 IST)

हिंदू धर्म का महाकुंभ: प्रयाग कुंभ मेले का इतिहास

Mahakumbh 2025: हिंदू धर्म का महाकुंभ: प्रयाग कुंभ मेले का इतिहास - History of Prayag Kumbh Mela
Mahakumbh 2025: कुंभ भारतीय संस्कृति का महापर्व है और इस पर्व पर स्नान, दान, ज्ञान मंथन के साथ ही अमृत प्राप्ति की बात भी कही गई है। कुंभ का बौद्धिक पौराणिक ज्योतिषी के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार भी है। इसका वर्णन भारतीय संस्कृति के आदि ग्रंथ वेदों में भी मिलता है। स्कंद पुराण और वाल्मीकि रामायण में कुंभ के इतिहास के बारे में उल्लेख मिलता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कुंभ मेले का आयोजन सतयुग काल से ही चला आ रहा है। कुछ विद्वान मानते हैं कि लगभग 6 हजार वर्षों से कुंभ मेले का आयोजन होता रहा है।ALSO READ: महाकुंभ 2025, नोट करें शाही स्नान की सही तिथियां
 
हालांकि इतिहासकार के अनुसार पहले कुंभ का आयोजन राजा हर्षवर्द्धन के राज्यकाल (664 ईसा पूर्व) में आरंभ हुआ था। चीन से भारत में आए प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी भारत यात्रा का उल्लेख करते हुए कुंभ मेले के आयोजन का उल्लेख किया है। साथ ही साथ उसने राजा हर्षवर्द्धन की दानवीरता का भी जिक्र किया है। ह्वेनसांग ने कहा है कि राजा हर्षवर्द्धन हर पांच साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे, जिसमें वह अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों में दान दे देते थे। मध्यकाल इतिहास में अकबर के दरबारी अबुल फजल ने आइने अकबरी में लिखा है कि हिन्दू लोग प्रयाग को तीर्थराज कहते हैं, यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का संगम है। ALSO READ: kumbh mela 2025: कब से शुरू होगा प्रयागराज महाकुंभ मेला, पढ़ें ऐतिहासिक जानकारी
 
जहां तक प्रयागराज में कुंभ मेले के आयोजन की बात है तो यह माना जाता है कि अमृत की बूंदे सबसे पहले प्रयागराज में ही गिरी थी इसलिए पहले कुंभ का आयोजन प्रयागराज में ही हुआ था। प्रत्येक 12 वर्षों के बाद बृहस्पति के मेष राशि में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चंद्र के मकर राशि में होने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर पूर्ण कुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रयागराज में कुल छह कुंभ स्नान पर्व होते हैं। मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या, माघी पूर्णिमा, बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि प्रयागराज कुंभ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है।ALSO READ: महाकुंभ मेला 2025: क्यों 12 साल बाद लगता है महाकुंभ, कैसे तय होती है कुंभ की तिथि?
 
वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि राम अपने वनवास काल में जब ऋषि भारद्वाज से मिलने गए तो वार्तालाप में ऋषिवर ने कहा कि हे राम, गंगा-यमुना के संगम का जो स्थान है वह बहुत ही पवित्र है आप वहां भी रह सकते हैं। श्रीरामचरितमानस में प्रयागराज के महत्व का वर्णन बहुत रोचक तरीके से और विस्तारपूर्वक किया गया है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार माघ के महीने में त्रिवेणी संगम स्नान का यह रोचक प्रसंग कुंभ के समय साकार होता है। साधु-संत प्रातःकाल संगम पर स्नान करके कथा कहते हुए ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों और तत्वों की विस्तार से चर्चा करते हैं। ALSO READ: प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियां जोरों पर, इन देशों में भी होंगे विशेष कार्यक्रम
       
प्रयागराज की महत्ता वेदों और पुराणों में विस्तार से बताई गई है। एक बार शेषनाग से ऋषिवर ने भी यही प्रश्न किया था कि प्रयागराज को तीर्थराज क्यों कहा जाता है? इस पर शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक ऐसा अवसर आया, जब सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की जाने लगी, उस समय भारत में समस्त तीर्थों को तुला के एक पलड़े पर रखा गया और प्रयागराज को दूसरे पलड़े पर, फिर भी प्रयागराज का पलड़ा भारी पड़ गया। दूसरी बार सप्तपुरियों को एक पलड़े में रखा गया और प्रयागराज को दूसरे पलड़े पर, वहां भी प्रयागराज वाला पलड़ा भारी रहा। इस प्रकार प्रयागराज की प्रधानता होने से इसे तीर्थों का राजा कहा जाने लगा। इस पावन क्षेत्र में दान, पुण्य, कर्म, यज्ञ आदि के साथ-साथ त्रिवेणी संगम का अति महत्व है।ALSO READ: भारत की इन नदियों में गिरा था अमृत मंथन से निकले कुंभ का अमृत