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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 18 दिसंबर 2024 (11:09 IST)

Paush Maas 2024 : पौष मास हो गया है शुरू, जानिए इसका महत्व और कथा

Paush Maas 2024 : पौष मास हो गया है शुरू, जानिए इसका महत्व और कथा - Importance of Paush month
Paush Month 2024: हिन्दू पंचांग कैलेंडर के अनुसार इस बार वर्ष 2024 में पौष का पवित्र महीना 16 दिसंबर से शुरू हो गया है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार पौष माह को धर्म-अध्यात्म की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण कहा गया है। यह महीना धार्मिक दृष्‍टि से बहुत ही महत्व का तथा इस अवधि में सूर्य आराधना तथा  स्नान और दान का विशेष महत्व है। 

Highlights
  • पौष मास का महत्व क्या है? 
  • पौष महीना कब से चल रहा है?
  • 2024 में पौष मास की कथा क्या है?
आइए जानते हैं पौष मास का महत्व और पौष मास की चतुर्थी की कथा

पौष मास का महत्व क्या है : इस महीने में जहां तिल, गुड़, कंबल, अन्न और वस्त्र दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, वहीं इस समयावधि में भगवान सूर्य की उपासना और श्रीहरि विष्णु की पूजा का विशेष महत्व भी है। धर्म और ज्योतिष के अनुसार सूर्य के तेज और देवगुरु बृहस्पति की दिव्यता से संपन्न पौष मास आध्यात्मिक रूप से समृद्धि देने वाला माह बताया गया है। 
 
आपको बता दें कि पौष मास का दूसरा नाम धनुर्मास हैं, क्योंकि पौष महीने में सूर्य धनु राशि में रहते हैं, अत: इसे धनुर्मास भी कहा जाता है। साथ ही धनु संक्रांति से खरमास या मलमास भी लग जाता है।
 
पुराणों के मुताबिक पौष महीने में पड़ने वाले प्रत्येक रविवार तांबे के पात्र या लोटे में शुद्ध जल, लाल चंदन, लाल रंग के पुष्प डालकर भगवान विष्णु तथा सूर्य मंत्र का जाप करते हुए सूर्य अर्घ्य देना चाहिए। इस संबंध में मान्यता है कि इस काल में हर रविवार को व्रत-उपवास रख कर तथा तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है। इन दिनों श्रीमद्भागवत कथा, हवन/ अनुष्ठान और गीता पाठ शुभ माने गए है।  
 
पौष मास की कथा जानें : पौष मास में तथा चतुर्थी व्रत में पौष गणेश चतुर्थी की यह कथा पढ़ी जाती है। पौष गणेश चौथ व्रतकथा के अनुसार एक समय रावण ने स्वर्ग के सभी देवताओं को जीत लिया व संध्या करते हुए बाली को पीछे से जाकर पकड़ लिया। वानरराज बाली रावण को अपनी बगल (कांख) में दबाकर किष्किन्धा नगरी ले आए और अपने पुत्र अंगद को खेलने के लिए खिलौना दे दिया। 
 
बालीपुत्र अंगद, रावण को खिलौना समझकर रस्सी से बांधकर इधर-उधर घुमाते थे। इससे रावण को बहुत कष्ट और दु:ख होता था। तब एक दिन रावण ने दुखी मन से अपने पितामह पुलस्त्य जी को याद किया। रावण की यह दशा देखकर पुलस्त्य जी ने विचारा कि रावण की यह दशा क्यों हुई? उन्होंने मन ही मन सोचा अभिमान हो जाने पर देव, मनुष्य व असुर सभी की यही गति होती है।
 
जब पुलस्त्य ऋषि ने रावण से पूछा कि तुमने मुझे क्यों याद किया है? तब रावण बोला- पितामह, मैं बहुत दुखी हूं। ये नगरवासी मुझे धिक्कारते हैं और अब ही आप मेरी रक्षा करें। रावण की बात सुनकर वे बोले- तुम डरो नहीं, तुम इस बंधन से जल्द ही मुक्त हो जाओगे। तुम विघ्नविनाशक श्री गणेश जी का व्रत करो, जो पौष मास में पड़ती है। पूर्व काल में वृत्रासुर की हत्या से छुटकारा पाने के लिए इन्द्रदेव ने भी इस व्रत को किया था, इसलिए तुम भी इस व्रत को करो।

तब पिता की आज्ञानुसार रावण ने भक्तिपूर्वक इस व्रत को किया और बंधनरहित हो अपने राज्य को पुन: प्राप्त किया। अत: मान्यता के अनुसार पौष मास की चतुर्थी पर इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से सफलता प्राप्त होती है। पौष मास की यह व्रत कथा संकटों से मुक्ति तथा विजय दिलाने वाली मानी गई है। 

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