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Written By वार्ता

नागा साधु बन रहीं यूरोप की महिलाएं

महिला नागा साधु बाबा
PTI
सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि के कारण हमेशा विदेशियों को आकर्षित करता रहा है, लेकिन अब बड़ी तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है।

उत्तरप्रदेश मे इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ मेले में विदेशी महिला नागा साधु आकर्षण के केन्द्र में है। यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है।

फ्रांस की कोरिने लियरे हाल ही में नागा साधु बनी है। उन्हें नया नाम दिव्या गिरी दिया गया है। वह कहती है कि अब हमारी नई पहचान है। दिव्या ने 2004 में साधु की दीक्षा ली। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाइजिन, नई दिल्ली से मेडिकल टेक्नीशियन की पढ़ाई पूरी की है।

उनका कहना है कि महिलाएं कुछ चीजे अलग से करना चाहती है। जूना अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय है। हम अपना इष्टदेव दत्तात्रेय की मां अनुसूया को बनाना चाहते हैं।

भगवा कपड़ों में लिपटी दिव्या बताती है अभी भी अखाड़ों में पुरुष और महिलाओं में बराबरी नहीं आई है। फ्रांस की एक अन्य महिला अपना पुराना नाम नहीं बतातीं, लेकिन दीक्षा लेने के बाद उनका नाम अब संगम गिरि है। संगम गिरि ने अपने लिए महिला गुरुओं की तलाश शुरू कर दी है। एक नागा साधु को पांच गुरु चुनने होते हैं।

निकोले जैकिस न्यूयॉर्क में फिल्म निर्माण से जुडी थीं। वह 2001 में साधु बन चुकी है और अब कुछ महिला साधुओं के लिए संपर्क अधिकारी के तौर पर काम कर रही है।

उनका कहना है कि भारत में महिलाएं अब तक अपने जीवन में पुरुषों पर निर्भर रही है। कभी पिता कभी पति और कभी बेटे पर, लेकिन पश्चिम में ऐसा नहीं होता। महिला साधु अपने अखाड़े में तकनीक का इस्तेमाल भी खूब कर रही है।

अगले पन्ने पर जानिए क्यों बनती है नेपाल की महिलाएं नागा साधु....


PTI
आमतौर पर अब तक नेपाल से साधु बनने वाली महिलाएं ही नागा बनती थी। इसका कारण यह कि नेपाल में विधवाओं के फिर से विवाह को अच्छा नहीं माना जाता। ऐसा करने वाली महिलाओं को वहां का समाज भी अच्छी नजरों से भी नहीं देखता लिहाजा विधवा होने वाली नेपाली महिलाएं पहले तो साधु बनती थीं और बाद मे नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया से जुड़ जाती थी।

जूना संन्यासिन अखाड़ा में तीन चौथाई महिलाएं नेपाल से आई हुई है। नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं के दोबारा शादी करने को समाज स्वीकार नहीं करता। ऐसे मे ये विधवाएं अपने घर लौटने की बजाए साधु बन जाती है।

क्या निर्वस्त्र रहती हैं नागा महिला साधु, पढ़ें अगले पन्ने पर.....


WD
कुंभ में महिला नागा साधुओं को लेकर हमेशा से उत्सुकता बनी रही है। लोग यह जानने को बेचैन रहते हैं कि कैसा होता है महिला नागा साधुओं का जीवन। आमतौर पर कुंभ या महाकुंभ में महिला नागा साधु नजर नहीं आती थी। यदि होती भी थीं तो पुरुष नागा साधुओं की छांव में।

पुरुष साधुओं को सार्वजनिक तौर पर नग्न होने की इजाजत है, लेकिन महिला साधु ऐसा नहीं कर सकती। हालांकि जूना अखाड़े की महिलाओं को यह इजाजत भी मिली हुई है। वैसे महिला नागा साधु को नग्न रहने की इजाजत नहीं है। खासकर कुंभ में डुबकी लगाने वाले दिन मे तो एकदम नहीं।

महाकुंभ के शाही स्नान की शुरुआत से एक दिन पहले जूना अखाड़े के पुरुष साधुओं ने सावधान कर दिया था कि कोई भी महिला नागा नग्न स्नान के लिए नहीं जाय।

जूना अखाड़ा के महासचिव हरि गिरि कहते हैं कि महिलाओं का नग्न रहना भारतीय परंपरा मे शामिल नहीं है। इसीलिए ज्यादातर महिलाएं एक कपड़ा लपेटे हुए मिलती है। महिलाओं को अपने पताके मे जगह देने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इसकी मांग काफी पहले से की जा रही थी।

महिला नागा संन्यासिन अखाड़ा क्या है?, पढ़ें अंतिम पन्ने पर...

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इस बार कुंभ आयोजन एक मायने में बेहद खास है। पहली बार नागा साधुओं के अखाड़ें में महिलाओं को स्वतंत्र और अलग पहचान दी गई है। इसी वजह से संगम तट पर जूना संन्यासिन अखाड़ा नजर आता है।

कुंभ को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। इसके आयोजन का नियंत्रण काफी हद तक नागा साधूओं के जिम्मे होता है। पुरुषों की बहुलता वाले इस आयोजन में अब तक महिला साधु पुरुषों के अखाड़े में शामिल होती रही थीं, लेकिन अब पहली बार महिलाओं के अलग अखाड़े बने हैं।

अब तक पुरुष साधुओं के अखाड़े में महिलाओं को कमतर माना जाता था। पुरुषों के नेतृत्व के तले उन्हें कम जगह मे कम सुविधाओं के साथ रहना होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योंकि उनका अपना अखाड़ा है।

अपना नेता है और अपने संसाधन है। शौचालय की संख्या पर्याप्त है। महिलाओं के अखाड़े की सुरक्षा में पुलिस की सख्त निगरानी भी है। हालांकि अभी भी अखाड़ों में पुरुष और महिलाओं में बराबरी नहीं आई है। टेट कहां लगेगा जैसे बड़े फैसलों के लिए अभी भी अखाड़ों के पुरुषों पर ही निर्भर होना होता है। (वार्ता)